चंपई सोरेन (फाइल फोटो)
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से बगावत करके भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होने वाले पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का कोल्हान क्षेत्र में प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा. इस क्षेत्र की 14 विधानसभा सीटों में से बीजेपी केवल 3 सीटें ही जीत पाई, जबकि झामुमो ने 10 सीटों पर कब्जा किया और कांग्रेस ने 1 सीट पर जीत दर्ज की. एनडीए की हार के बाद चंपाई सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी पहली प्रतिक्रिया दी.
चंपाई सोरेन ने लिखा, “जोहार साथियों, जैसा कि हमने पहले भी कहा था, झारखंड में बढ़ते बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ हमारा आंदोलन केवल एक राजनीतिक या चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि एक सामाजिक अभियान है.
जोहार साथियों,
जैसा कि हमने पहले भी कहा था, झारखंड में लगातार बढ़ रहे बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ हमारा आंदोलन कोई राजनैतिक या चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि एक सामाजिक अभियान है। हमारा स्पष्ट तौर पर मानना है कि वीरों की इस माटी पर घुसपैठियों को किसी भी प्रकार का संरक्षण नहीं मिलना…
— Champai Soren (@ChampaiSoren) November 24, 2024
हमारा दृढ़ विश्वास है कि वीरों की इस भूमि पर घुसपैठियों को कोई भी संरक्षण नहीं मिलना चाहिए. पाकुड़, साहिबगंज जैसे कई जिलों में आज आदिवासी समाज अल्पसंख्यक बन चुका है. अगर हम वहां के भूमिपुत्रों की जमीन और उनके परिवारों की अस्मत की रक्षा नहीं कर पाए, तो हमारा अस्तित्व क्या होगा?”
चंपाई सोरेन ने आगे कहा, “चुनाव के बाद, वीर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और वीरांगना फूलो-झानो को नमन करते हुए, हम संथाल परगना की वीर भूमि पर अपने आंदोलन का अगला चरण बहुत जल्द शुरू करेंगे. सरकारें आएंगी और जाएंगी, पार्टियां बनेंगी और बिगड़ेंगी, लेकिन हमारा समाज हमेशा कायम रहेगा और हमारी आदिवासी पहचान बची रहनी चाहिए, वरना सब कुछ समाप्त हो जाएगा. इस वीर भूमि से फिर एक बार उलगुलान होगा. जय आदिवासी! जय झारखंड!!”
चंपाई सोरेन का यह संदेश साफ तौर पर उनकी विचारधारा और आदिवासी समुदाय के अधिकारों को लेकर उनके आक्रोश को व्यक्त करता है. उनके अनुसार, यह संघर्ष केवल चुनावी नहीं, बल्कि एक सामाजिक और अस्तित्व की लड़ाई है.
-भारत एक्सप्रेस
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