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गैर-नागरिकों को आरटीआई से वंचित करना भारतीय संविधान के खिलाफ

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) भारत के नागरिकों के साथ-साथ गैर-नागरिकों के लिए भी है। गैर-नागरिकों को इससे इनकार करना भारत के संविधान के साथ-साथ आरटीआई अधिनियम के खिलाफ भी है।
न्यायमूर्ति प्रतिबा मनिंदर सिंह ने कहा कि आरटीआई अधिनियम की धारा 3 के अनुसार सभी नागरिकों के लिए सूचना का अधिकार है। लेकिन यह अधिकार गैर नागरिक को वंचित नहीं करती है और न ही रोकती है। गैर नागरिकों को इससे वंचित करना आरटीआई अधिनियम के उद्देश्य के खिलाफ होगा। इस तरह के पूर्ण प्रतिबंध को आरटीआई अधिनियम में नहीं पढ़ा जा सकता है। न्यायमूर्ति ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि गैर-नागरिकों को उसी तरह की जानकारी दी जा सकती है जो कानून व संविधान के तहत है। जब भी गैर-नागरिक जानकारी मांगता है तो उसे सकारात्मक रूप से लेते हुए अधिकारियों के विवेक पर निर्भर होगा कि वे ऐसी जानकारी का खुलासा करें या नहीं।
कोर्ट ने यह बात केंद्रीय तिब्बती स्कूल प्रशासन (सीटीएसए) में लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पद पर तैनात एएस रावत की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही। रावत ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा उन पर ढ्राई हजार रुपए का जुर्माना लगाए जाने के आदेश को चुनौती दी थी। यह जुर्माना तब लगाया गया जब पीआईओ ने दावा ताशी नाम के एक शिक्षक को जानकारी देने से इंकार कर दिया, जिसने सीटीएसए से अपने पुष्टिकरण पत्र के साथ-साथ अन्य लाभों के बारे में जानकारी मांगी थी।
ताशी के तिब्बती नागरिक होने के आधार पर सूचना देने से मना कर दिया गया था। सीआईसी ने पीआईओ को आवेदक को सूचना देने का आदेश दिया और उसके आचरण को दुर्भावनापूर्ण करार देते हुए उस पर जुर्माना लगाया था।



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