टाइम्स ऑफ क्राइसिस में सिख धर्म की परोपकारी पहुंच
New Delhi : हम अच्छी तरह जानते हैं कि सभी धर्म मानवता की सेवा का प्रचार करते हैं, समाज में ऐसे कई मौके आते हैं, जब लोगों के बीच मतभेद होते हैं, उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, कई मसलों पर वो विरोध प्रदर्शन तक करते हैं. इसके अलावा, प्राकृतिक आपदा जैसी स्थिति का सामना भी करना पड़ता है.
ऐसे मौकों में सबसे ज्यादा सामूहिक भाव ‘इंसानियत’ की ज़रूरत होती है. जिसमें धर्म से ऊपर उठकर लोग एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आते हैं. इसमें सिख समुदाय का योगदान हमेशा देखने को मिलता है. सिख समुदाय हमेशा से पूरी दुनिया को धार्मिक सौहार्द, भाई-चारे और सबसे बढ़कर इंसानियत का संदेश देते आए हैं
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आपको बता दें सिख धर्म ‘सेवा’ की अवधारणा पर दृढ़ता से जोर देता है. एक सिख के लिए, ‘सेवा’ और ‘सिमरन’ धार्मिक रूप से पालन करने के लिए अनिवार्य हैं. गुरु नानक देवजी के अनुसार, सच्ची ‘सेवा’ वह है जिसमें पुरस्कार की कोई भी अपेक्षा हो और जिसका पालन इरादे की अत्यंत शुद्धता के साथ किया जाना चाहिए.
सिख धर्म परोपकार को रेखांकित करता है, मूल रूप से ‘सेवा’ की अवधारणा है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह आत्मा को शुद्ध करती है, विनम्रता पैदा करती है और समुदाय की भावना का पोषण करती है। इस विचारधारा ने दुनिया भर के गुरुद्वारों में पाए जाने वाले ‘लंगर’ या मुफ्त सामुदायिक रसोई को जन्म दिया है। ‘लंगर’ जाति, पंथ, लिंग या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी को मुफ्त शाकाहारी भोजन परोसते हैं. सिख इस प्रक्रिया में विभिन्न गतिविधियों के लिए स्वेच्छा से काम करते हैं। ‘सेवादार’ के रूप में जाने जाने वाले ये स्वयंसेवक एकता और सेवा की भावना को बढ़ावा देते हुए, ‘लंगर’ के बाद निस्वार्थ रूप से तैयार करते हैं, सेवा करते हैं और यहां तक कि सफाई भी करते हैं. दुनिया भर में कई सिख संगठन समाज सेवा के प्रयासों के लिए समर्पित हैं। उनका योगदान सिख धर्म के मूल्यों और शिक्षाओं को दर्शाते हुए वैश्विक स्तर पर लोगों का महत्वपूर्ण समर्थन करता है।
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