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आसान नहीं है भारतवंशी ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की राह 

आसान नही है भारतवंशी ब्रिट्रिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की राह 

ब्रिटेन के नए पीएम ऋषि सुनक के लिए राह आसान नहीं

(निमिष कुमार)

भारत सहित दुनियाभर में फैले भारतीयों के लिए ये एक भारतवंशी का यूके जैसी महाशक्ति का प्रधानमंत्री बनना गर्व की बात रही. जैसे ही ये खबर सामने आई कि यूके के सत्तारूढ़ दल कंजेरवेटिव पार्टी के सांसद ऋषि सुनक को पार्टी ने ब्रिट्रिश पॉर्लियामेंट में दल का नेता चुना है, सवा करोड़ से ज्यादा भारतीय और दुनियाभर में रह रहे करीब साढ़े तीन करोड़ अप्रवासियों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई. इस घोषणा के साथ ही ब्रिट्रिश लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार किसी एशियाई मूल के व्यक्ति का दस डॉउनिंग स्ट्रीट, जो लंदन स्थित 10 डॉउनिंग स्ट्रीट ब्रिट्रिश प्रधानमंत्री का आधिकारिक कार्यालय और आवास होता है, में प्रवेश पर मुहर लग गई. लेकिन ऋषि सुनक की आगे की राह इतनी आसान नहीं है, क्योंकि ऋषि के पास पांच साल नहीं, महज दो साल से कम का वक्त है.

ब्रिट्रिश संसद की परंपरा के मुताबिक प्रधानमंत्री चुने के बाद ब्रिट्रिश पीएम को संसद में पीएमक्यू में हिस्सा लेना होता है. जिसमें प्रधानमंत्री को सदन में सांसदों के सवालों का जवाब देना होता है. ये चुने गए नए-नवेले प्रधानमंत्री का लिटमस टेस्ट जैसा होता है. ऋषि सुनक के साथ भी यहीं हुआ. सुनक के पहले पीएम रही लिज ट्रस्स तो पीएमक्यू के दौरान ही विपक्ष के निशाने पर आ गई थी, और विपक्ष के नेता केर स्टारमर उन पर भारी पड़ते दिखे. जैसे जैसे दिन बीतना शुरू हुए, यूके के पोल सर्वे ‘माय गॉव’ में लिज ट्रस् के मुकाबले केर स्टारमर बेहतर प्रधानमंत्री के रूप में देखे जाने लगे थे. महिने भर में हालात इतने बिगड़ गए कि जहां लिज़ ट्रस्स की लोकप्रियता नकारात्मक हो रही थी, केर स्टारमर 60 फीसदी से ज्यादा सकारात्मक पोल के साथ मतदाताओं की पसंद बनते जा रहे थे. जिसका सीधा मतलब था कि यदि उस वक्त चुनाव होते तो कंजरवेटिव पार्टी की बुरी हार होती और लेबर पार्टी सत्ता में आ जाती.

लिज़ ट्रस्स जिन हालात में गई और ऋषि सुनक जिन हालात में आए, वो कंजरवेटिव पार्टी के लिए बिलकुल ही अच्छे नहीं है. लिज़ ट्रस्स के 44 दिन में सत्तारुढ़ कंजरवेटिव पार्टी की ज़मीनी स्थिति इतनी बुरी हो गई थी, कि सर्वे के मुताबिक हर हफ्ते कंजरवेटिव पार्टी को चुनाव में 55 सांसदों के हारने का खतरा दिखाया जा रहा था. लिज़ ट्रस्स के प्रधानमंत्री के रुप में कार्यकाल के दौरान, जो ब्रिट्रिश संसदीय इतिहास का सबसे छोटा कार्यकाल था, कंजरवेटिव पार्टी को 222 सांसदों का नुकसान दिखाया जा रहा था.

इसके अलावा प्रधानमंत्री के रुप में लिज़ ट्रस्स के पहले से ही बदहाल अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए किए गए आर्थिक प्रयोग भी बुरी तरह से असफल साबित होने लगे. पीएम बनते ही लिज़ की सरकार मिनी बजट लाई, जिसमें टैक्स से जुड़े कई फैसले लिए गए. ब्रिट्रेन के लोगों के बीच में इन फैसलों का संदेश गया कि लिज़ ट्रस्स सरकार केवल अमीरों का फायदा करना चाहता है, वो भी ऐसे वक्त में जब ब्रिट्रेन में महंगाई अपने चरम पर है. यूके की आम जनता के लिए रोजमर्रा जिंदगीं जीना मुहाल हो गया है.

ऋषि सुनक एक ऐसे वक्त में ब्रिट्रेन के प्रधानमंत्री बने है, जिसे आम लोगों के लिए ‘नरक से भी बदतर जिंदगीं का वक्त’ कहा जा रहा है. महंगाई दर 20 फीसदी के रिकार्ड स्तर तक को छू चुकी है. ब्रिट्रेन की ठंडी जलवायु में अब आम लोगों के लिए अपने घरों को गर्म रखना मुश्किल हो गया है, क्योंकि बिजली खर्चों में अमूमन 200 पॉन्ड याने 19000 भारतीय रूपये प्रति महीना की बढ़ोतरी हो गई है. इसी तरह साप्ताहिक किराना- सब्जी सहित खाने पीने की वस्तुओं पर खर्च औसतन 400 पॉन्ड से बढ़कर 700 पॉन्ड हो गया है. भारतीय मायने में समझे तो हर व्यक्ति के हर महिने रसोई खर्च में 1200 पॉन्ड याने करीब सवा लाख रूपये की बढ़ोतरी हो गई है. महंगाई इतनी हो गई है कि लंदन के महापौर सादिक खान ने जब सरकारी स्कूलों में छोटे बच्चों को मध्यांह भोजन देने की बात की, तो लोग इस सुविधा को 12वीं कक्षा तक के सभी बच्चों को देने की मांग करने लगे, क्योंकि लंदनवासियों का कहना था कि इस तरह से कम से कम बच्चों को एक वक्त का पौष्ट्रिक खाना तो मिलेगा.

ऋषि सुनक इकॉनामिक्स के छात्र रहे है, दुनिया के बेहतरीन अमेरिकी विश्वविद्यालय स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है. राजनीति के पहले वे दुनिया की बेहतरीन फाइनेंसियल मैनेजमेंट कंपनियों में काम कर चुके हैं. प्रधानमंत्री बनने के पहले बोरिस जॉनसन की सरकार में वे वित्तमंत्री की भूमिका में थे. लेकिन जिस तरह से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ब्रिट्रिश पॉन्ड रिकार्ड स्तर पर कमजोर हुआ है, ऐसे हालात में ऋषि सुनक के लिए किसी भी पूवर्वर्ती प्रधानमंत्री की तुलना में आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां ज्यादा है. याद रहे ब्रिट्रेन के आर्थिक हालातों को देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि ब्रिट्रेन 1929 की ‘महान आर्थिक मंदी’ की राह पर जा सकता है। आज ब्रिट्रेन के लोगों की चिंता है कि ठंड के महिनों में उनके घर गर्म कैसे रहेंगे, क्या वे दो वक्त का पौष्ट्रिक खाना पा सकेंगे, क्या वे अपना घर किराया या मकान की किश्त दे पाएंगे, बच्चों को स्कूलों में पढ़ा पाएंगे? भारतवंशी ऋषि सुनक ऐसे वक्त में ब्रिट्रेन के प्रधानमंत्री बने हैं.

(दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स के स्कॉलर रहे लेखक आर्थिक पत्रकार है और ग्लोबल इकॉनामी- फॉरेन अफेयर्स कवर करते हैं.)

 

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