विश्लेषण

जानलेवा हो सकते हैं खर्राटे!

आपको अक्सर किसी सोते हुए व्यक्ति के मुँह से खर्राटों की आवाज़ ने परेशान किया होगा। अक्सर हम इसे यह समझकर टाल देते हैं कि वो दिन भर की थकान के बाद चैन की नींद सो रहा है इसलिए खर्राटे सुनाई दे रहे हैं। परंतु मेडिकल भाषा में ऐसा नहीं है। लम्बे समय तक चलने वाली खर्राटों की आदत को डॉक्टर एक बीमारी मानते हैं। यदि समय पर इसका इलाज न किया जाए तो यह बीमारी इतनी ख़तरनाक है कि यह जानलेवा भी हो सकती है। मेडिकल भाषा में ‘ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया’ कहते हैं।

सोते समय नाक और गले में उत्पन्न होने वाली कर्कश आवाज को खर्राटे कहा जाता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, यह समस्या भी बढ़ती जाती है। एक शोध के अनुसार लगभग 57% पुरुष और 40% महिलाएं खर्राटे लेती हैं। हालांकि, खर्राटे क्या हैं, यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है जो इनको सुनता है, और कोई व्यक्ति कितनी जोर से और कितनी देर तक खर्राटे लेता है, यह हर रात अलग-अलग होता है। नींद के दौरान मांसपेशियों के रिलैक्सेशन के कारण गले में कोमल टिश्यू (ऊतकों) के फड़कने से खर्राटे आते हैं। विशेष रूप से कोमल तालु (मुंह के तालु का पिछला हिस्सा) के फड़कने से ऐसा होता है। रिलैक्सेशन से टिश्यू की कोमलता में कमी होती है, जिसके कारण इसके और अधिक फड़कने की संभावना पैदा हो जाती है। जैसे लोहे की तुलना में कपड़े के झंडे की हवा में फड़फड़ाने की संभावना अधिक होती है। साथ ही, टिश्यू रिलैक्सेशन से ऊपरी एयरवे संकीर्ण हो जाता है, और इसलिए फड़फड़ाना और अधिक आसान हो जाता है।

आपने अक्सर सुना होगा कि लोगों की नींद में मृत्यु हो गई, डॉक्टरों के अनुसार इसका कारण भी खर्राटे हो सकता है। क्योंकि सोते समय खर्राटे अक्सर सांस लेने में समस्या के लक्षण होते हैं। सोते समय सांस लेने में दिक़्क़त को ऊपरी एयरवे प्रतिरोध सिंड्रोम से लेकर ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया कहा जा सकता है। ये स्थिति इस बात पर निर्भर करती हैं कि एयरवे कितना ब्लॉक है तथा ब्लॉकेज कहां पर है। प्रभावों के कारण नींद व एयरफ़्लो संबंधी बाधाएँ हो जाती हैं। ऐसे में उन व्यक्तियों को बहुत उथली सांसें भी आती हैं। इसी कारण उन्हें दिन के समय नींद आना, थकान महसूस होना, ताजगी रहित नींद का होना, वज़न का बेवजह बढ़ना आदि जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। ग़ौरतलब है कि अमरीका समेत कई देशों में स्लीप ऐप्निया के मरीज़ों का वाहन चलाना प्रतिबंधित है।

खर्राटों लेने वाले हर व्यक्ति को ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया नहीं होता परन्तु ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया से पीड़ित अधिकतर मरीज़ खर्राटे ज़रूर लेते हैं। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया के जोखिम की बात करें तो जिन मरीज़ों को रात में सोते समय साँस लेने में दिक़्क़त का होना, गले में ख़राश का होना, सुबह उठते ही सर में दर्द होना, शरीर में वज़न बढ़ना और ब्लड प्रेशर की शिकायत होना काफ़ी चिंता जनक माना गया है। जिन लोगों में यह लक्षण दिखाई देते हैं उन्हें तुरंत डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। आपके लक्षणों को देख कर ही डॉक्टर आपको उचित सलाह देंगे।

वैसे तो शुरुआती दौर में खर्राटों से बचाव के लिए ऐसे कई आसान उपाय हैं जिन्हें किया जा सकता है। इनमें से प्रमुख हैं, सिर को ऊँचा रख कर सोना, पीठ के बल न लेट कर एक साइड पर लेटना, सोने से पहले मदिरा या नींद की दवाओं को न लेना, वज़न कम रखना, आदि। इसके अलावा खर्राटों के चलते ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया के मरीज़ों को सीपीएपी मशीन (कांस्टेंट प्रेशर एयर पंप यानी कि निरंतर दबाव वायु पंप) का भी इस्तेमाल किया जाता है। यह मशीन फेफड़ों में जाने वाली हवा को एक छोटा व निरंतर दबाव प्रदान करती है। यह दबाव गहरी नींद के दौरान श्वास नली को गिरने से रोकता है, और इस से व्यक्ति को सांस लेने में मदद मिलती है। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया से पीड़ित व्यक्तियों द्वारा सीपेप मशीन का इस्तेमाल ज़्यादा देखा गया है। लेकिन जिनको केवल खर्राटों की समस्या है, वे इसे बिना डाक्टर की सलाह के इस्तेमाल न करें। वहीं जिन लोग इस बीमारी की गंभीर अवस्था के शिकार होते हैं, उन्हें डॉक्टर की सलाह पर ऑपरेशन करवाने की ज़रूरत भी पड़ सकती है।

यदि कोई व्यक्ति ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया से पीड़ित है और इसको केवल खर्राटों जैसी एक आम समस्या समझ लेता है उसे इस बात पर गौर करना चाहिए कि अनुपचारित ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया के कारण ऐसे कई लक्षण भी सामने आ सकते हैं जो घातक साबित हो सकते हैं। इनमें अहम हैं दिल की धड़कन से जुड़ी समस्याएं तथा स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाना। परंतु सौ बात की एक बात है कि यदि हम एक संतुलित जीवन जियें और नियमित कसरत आदि करते रहें तो खर्राटों जैसी छोटी-छोटी समस्याएँ ख़ुद-ब-ख़ुद ही ठीक हो सकती हैं। सुबह-सुबह नियमित सैर पर जाने से पूरा शरीर खुल जाता है। इसलिए जहां तक हो सके हमें प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे तक सैर करनी चाहिए।

सैर करते समय अपने आधुनिक उपकरणों से दूर रहना चाहिए। आज के युग में मोबाइल फ़ोन जिस तरह से हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। जहां तक हो सके सुबह की सैर पर जाएँ तो इसे अपने साथ लेकर न जाएँ। ऐसा करने से आप केवल अपने शरीर पर ही ध्यान देंगे। सुबह-सुबह मोबाइल फ़ोन पर आने वाले फ़िज़ूल संदेशों पर नहीं। बढ़ती उम्र में शरीर में होने वाले ऐसे बदलावों पर समय रहते ध्यान देना ज़रूरी है वरना इन मामूली बदलावों के चलते कहीं बहुत देर न हो जाए। कहीं साधारण से दिखने वाले खर्राटे वास्तव में ख़तरनाक साबित न हो जाएँ।

  • लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं।
रजनीश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार

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