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MP Election 2023: कांग्रेस का आदिवासी दांव, क्या कांतिलाल भूरिया साबित होंगे मास्टर-स्ट्रोक? बजरंग दल को बैन करने की कही थी बात

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Vidhan Sabha Election 2023) के मद्देनज़र कांग्रेस ने अपनी कैंपेन कमेटी (Congress Campaign Committee) का ऐलान कर दिया है.

कांतिलाल भूरिया को चुनाव अभियान कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Vidhan Sabha Election 2023) के मद्देनज़र कांग्रेस ने अपनी कैंपेन कमेटी (Congress Campaign Committee) का ऐलान कर दिया है. कैंपेन कमेटी की सूची देखने के बाद लगता है कि कांग्रेस इस बार प्रदेश के आदिवासी समुदाय पर विशेष फोकस बनाए हुए है. रणनीतिक रूप से बीजेपी को पटखनी देने के लिए कांग्रेस ने आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले कांतिलाल भूरिया को बड़ी जिम्मेदारी दी है. उन्हें कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है. साफ लफ्जों में कहा जाए तो चुनावी कैंपेन के सेनापति कांतिलाल भूरिया रहेंगे.

कांतिलाल भूरिया के अलावा मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपने कुनबे में किसी भी तरह के विद्रोह को दूर करने का भी रास्ता खोजे हुए है. कैंपेन कमेटी की सूची में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख कमलनाथ, नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी, अरुण यादव, अजय सिंह, विवेक तनखा और सज्जन सिंह वर्मा समेत कुल 34 नेताओं के नाम शामिल हैं.

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कांग्रेस का मास्टर-स्ट्रोक कांतिलाल भूरिया

22 प्रतिशत आदिवासी बहुल राज्य वाले मध्य प्रदेश में कांतिलाल भूरिया को कैंपेन कमेटी की कमान सौंपना कांग्रेस की ओर से मास्टर-स्ट्रोक बताया जा रहा है. गौरतलब है कि प्रदेश कांग्रेस में पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ पहले से ज्यादा पावर में हैं और भूरिया को अभियान समिति का चेहरा बनाना उन्हीं की रणनीति का हिस्सा है.

कमलनाथ की कोशिश भूरिया के जरिए आदिवासी वोटों पर पकड़ बनाने और बीजेपी के अदिवासी मुहिम को काउंटर करने की योजना है. पिछले चुनावी गणित पर नजर डालें तो कांतिलाल भूरिया का प्रभाव प्रदेश की 30 विधानसभा सीटों पर आदिवासी समुदाय के बीच सीधे-सीधे रहेगा.

आदिवासी सेंटिमेंट पर जोर

2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासी समुदाय से निराशा हाथ लगी थी. वहीं, कांग्रेस को इस तबके से काफी वोट मिला था. उदाहरण के तौर पर इंदौर संभाग में 19 सीटें आदिवासी अंचल में आती हैं. लेकिन, यहां पर बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा था. ऐसे में बीजेपी आदिवासियों को अपने पाले में लाने के लिए मुहिम स्तर पर काम कर रही है. आदिवासी सीटों पर पकड़ बनाने के लिए अजय जमवाल के नेतृत्व में विशेष जनसंपर्क मुहिम चल रही है.

लेकिन सीधी पेशाबकांड, नीमच में आदिवासी युवक की घसीटकर हत्या, नेमावर हत्याकांड जैसे मुद्दों ने बीजेपी के लिए बड़ा डेंट डाल दिया है. कांग्रेस इन मुद्दों के जरिए इस समाज का विश्वास अपने पाले में हासिल करती दिखाई दे रही है. अब भूरिया का नेतृत्व हासिल होने से कांग्रेस आदिवासी समुदाय के भीतर और ज्यादा पैठ बना सकती है.

बजरंग दल पर बैन

आदिवासी समुदाय कट्टर हिंदुत्व ब्रिगेड से खुद को अलग करके देखता है. इस साइकोलॉजी को कांतिलाल भूरिया बाखूबी समझते हैं. उन्होंने पिछले दिनों हिंदू संगठन बजरंग दल पर एक टिप्पणी की थी. अपने बयान में उन्होंने कहा था कि यदि कांग्रेस की सरकार सत्ता में आती है, तो वह बजरंग दल को बैन कर देगी. उनके इस बयान के बाद काफी हंगामा मचा था.

राजनीति के जानकारों ने तब भूरिया के इस बयान को सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बताया था. अब भूरिया जब कैंपेन कमेटी के मुखिया बने हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि आदिवासी बहुल इलाके में प्रचार का कोण दलित विरोधी नीतियों को साधने के साथ-साथ हिंदुवादी संगठनों को घेरना भी रहेगा.

गैर-आदिवासी इलाकों में कमलनाथ का सॉफ्ट हिंदुत्व

मध्य प्रदेश में बहुसंख्यक आबादी की भावनाएं क्या हैं, इससे भी कांग्रेस मुंह नहीं मोड़ना चाहती. पिछले कुछ सालों में पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ ने अपनी छवि हनुमान भक्त के तौर पर गढ़ी है. राजनीति के जानकार इस अवतार को ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का नाम दे रहे हैं और उनका मानना है कि इससे बीजेपी के ‘हिंदुत्व’ को कांग्रेस काउंटर कर सकती है.

-भारत एक्सप्रेस



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