साइंटिस्ट जूलियस रॉबर्ट ऑपनहाइमर
अनिरूद्ध गौड़, वरिष्ठ पत्रकार
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर अमेरिका ने एटम बम गिराकर जीत हाॅसिल की थी। विश्व के खतरनाक और पहले एटम बम इन्वेंशन टीम के लीडर रहे अमेरिकी साइंटिस्ट जूलियस रॉबर्ट ऑपनहाइमर के जीवन से जुड़ी फिल्म ’ऑपनहाइमर’ भारत सहित कई देशों की हजारों स्क्रीन पर धूम मचाए हुए है। फिल्म के स्क्रीन राइटर और वर्ड फेमस डायरेक्टर क्रिस्टोफर नोलन सहित इसके एक्टर्स की एक्टिंग और कास्टिंग को लेकर इस फिल्म की बहुत ही तारीफ हो रही है।
पहला एटम बम बनाने की होड़
ऐसे तो एटम बम बनाने की शुरुआत 1938 में ही शुरू गई थी। जब जर्मनी के तीन साइंटिस्टस ने इन्वेंशन कर यूरेनियम को ब्रेक करने की खोज कर ली थी। हिटलर की तानाशाही के चलते बहुत से जर्मन साइंटिस्ट जर्मन छोड़कर अमेरिका चले गए थे। उनमें एल्वर्ट आंइस्टीन (Albert Einstein) और लिओ सिलार्ड (Leo Szilard) जैसे कई साइंटिस्ट भीे थे। लेकिन सितंबर, 1939 में जर्मनी के पोलैंड पर हमला करने से शुरू हुए दूसरे विश्व युद्ध ने इसे और तेज कर दिया। दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से पहले इस बात से चिंतित हुए जर्मन साइंटिस्ट लिओ सिलार्ड ने समझा कि इस खोज का नाजी बम बनाने में जरूर उपयोग कर सकते हैं। कहीं अतिमहत्वाकांक्षी एडोल्फ हिटलर इस खोज से सबसे पहले एटम बम ना बना ले। फिर साइंटिस्ट लिओ सिलार्ड ने यह बात प्रसिद्ध वैज्ञानिक एल्वर्ट आइंस्टीन से साझा की तो एल्वर्ट आइंस्टीन ने पत्र लिखकर निवर्तमान अमेरिकीे प्रेसिडेंट फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट (Franklin D Roosevelt) तक पहुंचायी। इसके बाद एक गोपनीय मैनहैटन प्रोजेक्ट की शुरुआत कर अमेरिका ने नाजियों से पहले एटम बम बनाने की शुरुआत कर र्दी।
हिरोशिमा नागासाकी पर बम, सबकुछ तहसनहस
6 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर लिटिल बॉय नामक पहला एटम बम गिराया और 9 अगस्त, 1945 को नागासाकी में दूसरा प्लूटोनियम फैट मैन नामक बम गिराया था। नागासाकी में गिराए गए बम से ऑपनहाइमरको बहुत बड़ा धक्का लगा था। क्योंकि 2 लाख 20 हजार लोगों की जान चली गई। ऑपनहाइमर का मानना था कि शायद दूसरा बम गिराया जाना जरूरी नहीं था। 17 अगस्त, 1945 को ये वाशिंगटन गए और वार सेक्रेटी से मिले और पत्र देकर कहा कि न्यूक्लियर हथियारों पर बैन लगाना चाहते हैं। इनको इतना अधिक रिगरेट फील हुआ कि मैंने क्या टैक्नाॅलाजी लोगों को दे दी है। पहला बम गिराना तो वे सही मानते थे। लेकिन दूसरा बम गिराने के बाद वे डरने लगे थे कि भविष्य में क्या होगा। जबकि युद्ध के अमेरिकी लीडर्स का तर्क था कि जापान पहला एटम बम गिराए जाने के बाद भी हार मानने को तैयार नहीं था। इसलिए दूसरा बम गिराया गया।
फिल्मी कहानी से हटकर कुछ अलग भी
सेकेंड वर्ल्ड वॉर की इस घटना को करीब 78 साल बीत गए। वैसे यहां इस फिल्म की समीक्षा नहीं की जा रही। जीनियस साइंटिस्ट ऑपनहाइमर की ये कहानी फिल्मी जरूर है। लेकिन जहां फिल्म एटम बम की विनाश लीला, साइंस के ऐतिहासिक इन्वेंशन और उस समय की अमेरिकी राजनीति को बयां कर रही है। वहीं एक साइंटिस्ट के अपने प्रलयंकारी इंवेंशन से हुए हृदय परिवर्तन को भी इंगित कर रही है। जैसे आज आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस पर इसके इंवेंटर अंकुश लगाने की सिफारिश कर रहे हैं।
विश्व कल्याण से पीछे हुईं महत्वाकांक्षाएं
फादर ऑफ एटोमिक बम जूलियस रोबर्ट ऑपनहाइमर के जीवन की कहानी यह भी याद दिलाती है कि व्यक्ति कितना भी महत्वाकांक्षी, रचनात्मक, जुनूनी और कठोर क्यों ना हो। विश्व कल्याण के आगे अपनी महत्वाकांक्षाओं को भी पीछे कर लेता है। 16 जुलाई, 1945 की सुबह के करीब 5 बजकर 30 मिनट पर अमेरिका के न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान में एक विशाल बम धमाका होता है। यह विश्व का पहला न्यूक्लियर बम का टैस्ट था जिसका कोड नाम TRINITY TEST होता है। एक्सपैक्टेशन से कहीं अधिक बड़ा धमाका देख ऑपरहैइमर हैरान रह जाते हैं। धमाके से बना मशरूम क्लाउड करीब 12 किमी ऊपर तक जाता है। यह सच है कि जब ऑपनहाइमरजैसे साइंटिस्ट को आभास होता है उनकी इंवेंशन कितनी भयानक और वीभत्स बनी है। वे सोचने लगते हैं उनकी इंवेंशन विश्व कल्याण के लिए कितनी विध्वंसक है? तो उनके मुंह से श्रीमद्भागवत गीता के 11वें अध्याय के 32वें श्लोक की लाइन निकलती है और कहते हैं कि ‘Now I become death, the destroyer of worlds’ (कालोऽस्मि लोकक्षयकृतप्रवृद्धो लोकांसमाहर्तुमिह प्रवृत्तः द्य) यानी अब मैं काल बन गया, लोकों का विनाश करने वाला। वे भविष्य के परिणाम को सोचकर बेहद विचलित हो गए।
इंसानियत से परे कुछ नहीं
यह सत्य है कि कितना भी बड़ा वैज्ञानिक और प्रशासक क्यों ना हो जब स्वचिंतन कर अपने कार्यों की भयावतापूर्ण परिणाम देखता है तो शांत होकर शून्य में चला जाता है। आखिर उनके अंदर भी तो एक इंसान का दिल बसता है। ऐसे ही ऑपनहाइमर के दिल और दिमाग पर प्रभाव पड़ा और वह एटम बम के डिटोनेशन के परिणाम को देखने के बाद काफी दिन तक शांत रहे और कम बोलने लगे थे।
सफलता से आगे मानव कल्याण
महत्वाकांक्षाएं हमें सफलता की ओर जरूर ले जाती है। लेकिन मानव कल्याण से बढ़कर कुछ भी नहीं होता। भारत के प्रतापी सम्राट अशोक मौर्य ने भी सभी राजाओं और उनके राज्यों पर विजय जरूर प्राप्त कर ली। वे चक्रवर्ती सम्राट बन गए। लेकिन जब कलिंग से हुए युद्ध में नरसंहार, जनहानि और पीड़ा को देखा तो सम्राट अशोक का मन मानव और जीव के प्रति दया के भाव से भर गया। बौद्ध धर्म अपनाकर धर्म के अनुयायी बन गए। जापान में गिरे एटम बमों से लाखों निर्दोष लोगों की जान गई तोे ऑपनहाइमर गिल्ट भी महसूस करने लगे।
महान हस्तियों पर भारत के धर्मशास्त्रों का प्रभाव
खास बात ये है कि डिप्रेशन जैसी बीमारी से प्रभावित हुए जूलियस रॉबर्ट ऑपनहाइमर के जीवन को श्रीमद्भगवत गीता के इंग्लिश ट्रांसलेशन ने इतना प्रभावित किया था कि श्रीमद्भगवत गीता को ओरिजिनल लैंग्वेज संस्कृत में पढ़ने के लिए उन्होंने संस्कृत भाषा तक सीख डाली। वे 20वीं सदी के सबसे खतरनाक साइंटिस्ट जरूर थे। परंतु ऑपनहाइमर ने जब भारतीय धर्म ग्रंथ श्रीमद्भगवत गीता का इंग्लिश वर्जन पढ़ा और समझा तो उनके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया। कहा जाए तो कई विश्व की महान हस्तियों को भारतीय दर्शन ने प्रभावित किया है। एप्पल के संस्थापक स्टीव जाॅव श्रीहनुमान के अवतार माने जाने वाले नीम करोली बाबा के भक्त बन गए। ऐसे कई साइंटिस्ट और वैश्विक हस्तियां है जो भारतीय फिलाॅसोपी और धर्मग्रंथों से प्रभावित हुए।
संस्कृत स्काॅलर थे ऑपनहाइमर
जूलियस रोबर्ट ऑपनहाइमर संस्कृत स्काॅलर थे। विशेष रूप से वे श्रीमद्भगवत गीता को अपने जीवन को प्रभावित करने वाली एक महत्वपूर्ण किताब बताते थे। उनकी लीडरशिप में मनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत जब दुनिया का पहला न्यूक्लियर बम एक्सप्लोडेड हुआ तो उनके मुख से श्रीमद्भगवत गीता के 11वें अध्याय का 32वां श्लोक निकला था कि
कालोऽस्मि लोकक्षयकृतप्रवृद्धो लोकांसमाहर्तुमिह प्रवृत्तः द्य।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः 32
अर्थात मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के प्रवृत्त हुआ हूँ। इसलिये जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे अर्थात् तेरे युद्ध न करने पर भी इन सबका नाश हो जायेगा ।।32।।
अपराध बोध से भर गए थे ऑपनहाइमर
जूलियस रॉबर्ट ऑपनहाइमर ने शक्तिशाली बम बनाया और एक बड़े युद्ध पर विराम लग गया। बम गिरने के बाद जापान के नागासाकी और हिरोशिमा में जो लाखों लोगों की जान गई। उससे ऑपनहाइमर अपराध बोध से भर गए। वह नहीं चाहते थे कि आगे ऐसा या इससे विध्वंसक बम बनाया जाए। जो दुनिया को एक बहुत बड़े खतरे में डालें।
ऑपनहाइमर का सोचना था कि एटम बम बनाने वाली टीम की लीडरशिप नहीं एक्सेप्ट करते तो दूसरे युद्ध के नतीजे कुछ अलग हो सकते थे। नाजी बम बना लेते या नही। दुनिया के नक्शे पर क्या अंजाम होता यह तो वक्त ही बताता। लेकिन कोई कितना भी महत्वाकांक्षी, क्रूर और कट्टर इंसान क्यों ना हो उसके भी दिल में एक इंसानियत होती है। फिल्म से एक बार फिर से पहले एटम बम पर चर्चा उठी है। फिल्मांकन से 78 साल बाद फिर लोग प्रलयंकारी घटना पर सोच रहे हैं। इस घटना के कुछ पहलू हैं कि ऑपनहाइमरका हृदय क्यों बदल गया।
नागासाकी पर गिराए बम के दो महिने बाद ही ऑपनहाइमर अमेरिकी प्रेसीडेंट फ्रेंकलिन के बाद नए बने प्रेसीडेंट हैरी एस ट्रूमैन से मिले। फिर उनसे सीधा कहते हैं कि “I have blood on my hand” इसपर प्रेसीडेंट ट्रूमैन उनकी नही सुनते। फिर भी ऑपनहाइमर आगे यूएस एटोमिक इनर्जी कमीशन में रहकर भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने पर काम करते रहते हैं। उनका मानना था कि इन हथियारों पर एक कंटोल बनाया जाए। फिर 1949 में जब प्रेसीडेंट ट्रूमैन यूएस एटोमिक इनर्जी कमीशन को हाइड्रोजन बम बनाने की योजना पर उन्हें काम करने को कहते हैं तो वे उसका सख्ती से विरोध करते है। हाइड्रोजन बम इन्वेंशन से खुद को अलग कर क्या वे अपनी इन्वेंशन का प्रायश्चित करना चाहते थे। जबकि हाइड्रोजन बम बनाने से मना करने पर ऑपनहाइमर को ब्लैकलिस्टिड कर हटा दिया गया। उन्हें गंभीर आरोप में बड़ी जाॅंच का भी सामना करना पड़ा। यही नहीं उनकी इंवेंशन पर तीन बार नोबल पुरस्कार के लिए नाॅमीनेशन के बाद भी उन्हें नोबल पुरस्कार नहीं मिला।
विश्व के 9 देशों के पास एटम बम
वर्तमान में विश्व में रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस, इजरायल, यूनाइटेड किंगडम, भारत, पाकिस्तान और नाॅर्थ कोरिया 9 ऐसे देश हैं जिनके पास न्यूक्लियर हथियार हैं। सबसे अच्छी और बड़ी बात है कि हिरोशिमा और नागाशाकी पर एटम बम गिराने की घटना के बाद पिछले 78 वर्षो में कई देशों के बीच युद्ध हुए हैं लेकिन किसी ने भी एटम बम का इस्तेमाल नहीं किया है।