शरद पवार, सुप्रिया सुले व अजित पवार
Sharad Pawar Resigns: एनसीपी का नया बॉस कौन? यह सवाल हर तरफ चर्चा का विषय बना हुआ है. सभी की निगाहें शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उनके भतीजे अजित पवार की ओर टिकी हैं. दोनों के बयान और उनकी गतिविधियों पर राजनीतिक के जानकार लोग बारीकी से नजर बनाए हुए हैं. वैसे 19 अप्रैल को सुप्रिया सुले ने एक बयान देकर सनसनी फैला दी थी. एनसीपी में हो रही उठा-पटक के बीच उन्होंने कहा था कि आगामी 15 दिनों में दो बड़े ‘धमाके’ होंगे. पहला धमाका तो हो गया. मंगलवार को शरद पवार ने 24 साल बाद एनसीपी के अध्यक्ष पद से हटने का ऐलान कर दिया. लिहाजा, अब दूसरे धमाके को लेकर महाराष्ट्र से लेकर देश की राजनीति सकपकाई हुई है.
शरद पवार के इस ऐलान के भी जानकार कई मतलब निकाल रहे हैं. मसलन, जो इतिहास पवार का रहा है, उसके मुताबिक आसानी से किसी पद को छोड़ना उनके व्यक्तित्व का हिस्सा हो ही नहीं सकता. जिन लोगों ने पवार की राजनीति को करीब से देखा है, उन्हें साफ तौर पर लगता है कि इसके पीछे राजनीति के पितामह के पास जरूर कोई न कोई भूमिका होगी. लेकिन, यह भूमिका किस स्तर की है? किसके लिए है? क्या रिजल्ट लेने की मंशा है? ये सारे सवाल पवार के ही माइंडगेम का हिस्सा हैं और वे ही इसका जवाब भी दे सकते हैं.
‘रोटी पलटने का वक्त आ गया…’
वैसे पार्टी की कमान किसके हाथ में होगी- शरद पवार ने इसका हिंट पहले ही दे दिया था. अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती- राजनीतिक आत्मकथा’ के विमोचन से कुछ दिन पहले ही पवार ने कहा था कि अब रोटी पलटने का वक्त आ गया है. अगर रोटी नहीं पलटी गई तो जल जाएगी. दरअसल, काफी समय से अजित पवार पार्टी के भीतर दबाव वाली राजनीति कर रहे थे. कुछ दिन पहले उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें उड़ीं. हालांकि, अजित ने साफ किया कि वे मरते दम तक अपनी पार्टी एनसीपी में ही रहेंगे. लेकिन, साथ ही साथ शरद पवार के सामने ही कह दिया कि एनसीपी नेता उन्हें बार-बार फैसला वापस न लेने को कहें.
शरद पवार के फैसले के बाद भतीजे अजित के बयान को भी गंभीरता से परखने की जरूरत है. उन्होंने बड़े सीधा और सपाट लहजे में शरद पवार के निर्णय का स्वागत कर दिया. उन्होंने कहा, “कभी-कभी ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं. साहेब के नेतृत्व में पार्टी का अगला अध्यक्ष चुना जाएगा तो दिक्कत क्या है? सभी निर्णय साहेब के मार्गदर्शन में होंगे. वह फैसला बदलने वाले नहीं हैं. यह फैसला किसी दिन लिया जाना था.”
विद्रोह को निपटाने का तरीका तो नहीं…
कुछ लोग शरद पवार के पार्टी छोड़ने के फैसले को एनसीपी में व्याप्त विद्रोह को शांत करने के एक तरीके के रूप में देख रहे हैं. शरद पवार इस तरह के फैसले से पार्टी के भीतर अपने सेंटिमेंट को फिर से पुनर्जिवित और पुख्ता करना चाहते हैं. जैसे बाल ठाकरे अपनी पार्टी शिवसेना में किया करते थे. जैसे ही उन्हें लगता कि पार्टी में उनकी पकड़ ढीली हो रही है, उन्होंने कम से कम दो बार ऐसी घोषणाए की थीं और बाद में पार्टी की कमान भी संभाल ली थी.
लेकिन, गौर करने वाली बात ये है कि जब राजनीतिक वारिस बनाने की बात आई तो ठाकरे ने भी अपने भतीजे राज ठाकरे को छोड़ अपने बेटे उद्धव को ही चुना. ऐसे में क्या शरद पवार भी अपना राजनीतिक वारिस भतीजे को छोड़ सुप्रिया सुले को बनाएंगे? क्या सुले के लिए ही तो नहीं इतनी बड़ी राजनीतिक ज्यामिति खींची जा रही है, जिसकी भविष्यवाणी सुले ने दो ‘धमाकों’ के तौर पर किया था.
इन नेताओं को अध्यक्ष चुनने की जिम्मेदारी
एनसीपी का नया अध्यक्ष जिन लोगों द्वारा चुना जाएगा, उनके निजी संपर्क भी पवार फैमिली से काफी मायने रखते हैं. कौन सा नेता सुप्रिया सुले के करीब है और कौन सा अजित पवार के… इसकी समझ परिस्थिति को काफी हद तक साफ कर सकती है. बहरहाल, अध्यक्ष चुनने वाली समिति में प्रफुल्ल पटेल, पीसी चाको, सुनील तटकरे, अजित पवार, सुप्रिया सुले, छगन भुजबल, अनिल देशमुख, राजेश टोपे, दिलीप वलसे,धनंजय मुंडे, जयदेव गायकवाड़ शामिल हैं. इनके अलावा पार्टी की अग्रणी श्रेणी के प्रमुख शामिल हैं.
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