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अष्ट बलिदानी:- भावी पीढ़ियों के लिए बुनियादी दस्तावेज

दिनांक 8 अगस्त सन् 1942 को महात्मा गांधी द्वारा “भारत छोड़ो आंदोलन” का आह्वान किया गया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के बम्बई (मुंबई) अधिवेशन में इसकी औपचारिक घोषणा हुई। महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह तीसरा बड़ा आंदोलन था। देश भर के लोग गांधी के इस आह्वान पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लामबंद हुए। यह एक सविनय अवज्ञा आंदोलन था। गांधी जी के निर्देश पर हर प्रांत के लाखों नौजवानों ने इस आंदोलन को अपनी ऊर्जा से संरक्षित एवं संगठित किया।

आजादी के आंदोलन में गाजीपुर 

बंगाल के मेदिनीपुर, महाराष्ट्र के सतारा एवं उत्तरप्रदेश के बलिया ने स्वतंत्र सरकार का निर्माण भी किया। बिहार में जयप्रकाश नारायण इस आंदोलन में सक्रिय थे। बलिया में इसका नेतृत्व चित्तू पाण्डे ने किया था। इस देश-व्यापी आंदोलन को अपार समर्थन मिल रहा था। इसी क्रम में बलिया के बगल में स्थित गाजीपुर के नौजवानों ने भी इस आंदोलन में अपने राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व आहुत किया। 160 लोग बलिदान हुए और लगभग 3000 लोगों को जेल में डाल दिया गया, लेकिन इतिहास ये कहता है कि गाजीपुर के नौजवानों की बदौलत गाजीपुर 18 अगस्त 1942 से लेकर 21अगस्त 1942 तक आजाद रहा।

18 अगस्त की कहानी का काव्यात्मक वर्णन “अष्ट बलिदानी”

इसी 18 अगस्त की कहानी का काव्यात्मक वर्णन “अष्ट बलिदानी” खण्डकाव्य का पाथेय है। आज जब देश अपने अमृत काल में प्रवेश कर चुका है तब “अष्ट बलिदानी” खण्डकाव्य के रचयिता संजीव कुमार त्यागी ने इस घटना को विश्व पटल पर सकारात्मकता के साथ रेखांकित एवं पुनर्स्थापित किया है। इतिहास और साहित्य दोनों के रास्तों में बुनियादी अंतर है, परंतु संजीव त्यागी द्वारा ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर साहित्यिक संकल्प का समष्टिगत रूप “अष्टबलिदानी” खण्डकाव्य है। कवि ने इस रचना के माध्यम से इतिहास को आधार देने के साथ-साथ हिंदी समाज को भी विस्तार दिया है।

यूनियन जैक को उखाड़ तिरंगा फहराया

मुहम्मदाबाद तहसील की वो शाम जब उपरोक्त तिथि को अमर शहीद डॉ. शिवपूजन राय के साथ अपार भीड़ ने यूनियन जैक को उखाड़ तिरंगा फहराकर आत्मोत्सर्ग किया। आठ लोगों ने देश के लिए अपनी आहुति दी। कवि ने उनका नाम बहुत ही आदर के साथ तहसील की पट्टी से भावी भारत के निर्माण में सहायक होने वाली किताबों में अंकित किया है। उक्त विषय का प्रतिपादन हिंदी कविता में अभी तक नहीं हो पाया था। संजीव त्यागी ने इस कमी की प्रतिपूर्ति की है। इसलिये “अष्ट बलिदानी” इतिहास एवं साहित्य दोनों में एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप है।

नौ सर्गों में खण्डकाव्य

कवि ने इस खण्डकाव्य को नौ सर्गों में विभक्त किया है। प्रथम सर्ग “परिचय ” और नवम एवं अंतिम सर्ग “बलिदान” है। मुक्तक, दोहा से होते हुए “तांटक” इस खण्डकाव्य का मुख्य छंद है। लावणी के विभिन्न प्रकारों का भी प्रयोग है। आज के समय में जब लंबी कवितायें न के बराबर लिखी जा रहीं हो उस समय में खण्डकाव्य के लिए आवश्यक धैर्य कवि के कविताई की पहली कसौटी है। संजीव जी इस मामले में धैर्यवान हैं। कई बार कवि विषय केंद्रित कविता के कारण पाठकों में धैर्य उत्पन्न नहीं कर पाता परन्तु विषयवार छंदों के अदल -बदल तथा भाषायी निष्ठा से एक सफ़ल कवि पाठकों को आकर्षित करता है। कविता वही बड़ी है जिसका भाव पक्ष कसा हो और उसका थॉट प्रोसेस विषयानुसार हो। अष्ट बलिदानी इस दृष्टि को मजबूती देता है।

अब दूसरे सर्ग से एक छंद की इन दो पंक्तियों को उपरोक्त दृष्टि से देखिए :

“आवश्यकता है साहस की ,पग रखने को उसपर जितनी,
उतना विवेक भी वांछित है, प्रज्ञा आवश्यक है उतनी।”

अपनी परंपरा का सम्यक बोध कवि के सृजन का मुख्य आधार है।
दिनकर जी अपने लब्धप्रतिष्ठित खण्डकाव्य में लिखते हैं :-
“जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है”
लेकिन इसको संजीव त्यागी 21 वीं शताब्दी में इस ढंग से कह रहें हैं

“पर अनियंत्रित उत्साह मनुज को,हत विवेक कर देता है,
उन्माद बली हो तो प्रज्ञा की, दृष्टि हरण कर लेता है।”
अष्ट बलिदानी मूलतः प्रारंभ से प्रस्थान तक क्रांति का उद्घोष है। छांदस चेतना का विकास है।
कवि ने तीसरे सर्ग “ललकार” में हर संकल्प के साक्षात्कार हेतु सिद्ध मंत्र की पुनर्व्याख्या की है-

“चिर साधक एकाग्रचित्त वर
महामुनीश मनस्वी सा,
एक पैर पर खड़ा कहीं पर,
बगुला श्रेष्ठ तपस्वी सा।”

गाज़ीपुर की मुहम्मदाबाद तहसील के आसपास के गांवों का उल्लेख

कवि ने गाज़ीपुर की मुहम्मदाबाद तहसील के आसपास के गांवों का जैसे सुरतापुर, कुंडेसर, चंदनी और सोनाड़ी आदि का उल्लेख करके इनको भौगोलिक मानचित्र से ऐतिहासिक मानचित्र पर स्थापित किया है। अमर बलिदानी डॉ. शिवपूजन राय, रिषेश्वर राय, वंशनारायण राय, वशिष्ठ नारायण राय,वंश नारायण राय,नारायण राय ,राजा राय और रामबदन उपाध्याय के चरणों में शत-शत नमन।

बतौर संजीव त्यागी:-

“जब तक यह वीरप्रसू धरती, ऐसे सपूत जन्माएगी।
जबतलक जवानी बलिदानों की,पावन रीति निभाएगी।
तब तक नभ में सीना ताने,सूरज से आँख मिलाऊँगा।
मैं इसी प्रकार अनंत काल तक ,साभिमान लहराऊँगा।”

अष्ट बलिदानी भावी पीढ़ियों के लिए बुनियादी दस्तावेज है। अपने पुरखों के प्रति कृतज्ञता का सर्वोत्तम भाव है।

प्रशांत कुमार
शोध-छात्र
भोजपुरी अध्ययन केंद्र, कला संकाय
काशी हिंदू विश्वविद्यालय

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