Bharat Express

डॉ. मनमोहन सिंह: एक अराजनैतिक अर्थशास्त्री, जो बना देश के आर्थिक पुनर्जागरण का पुरोधा

आज पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह जब सदा के लिए मौन हो गए हैं, उनका वो कथन मुझे याद आता है जब उन्होंने कहा था कि “मुझे उम्मीद है कि मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति ज्यादा दयालु होगा.”

Dr Manmohan singh photo

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह

डॉ. राजाराम त्रिपाठी


भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में डॉ. मनमोहन सिंह का नाम उन शिखर पुरुषों में शुमार होता है, जिन्होंने अपनी विद्वता, सादगी और दूरदर्शिता से राजनीति को नई दिशा दी. सत्ता से परे: मनमोहन सिंह और भारत का आर्थिक पुनर्जागरण की कहानी उस प्रेरणा से शुरू होती है, जब एक साधारण परिवार का बालक गहरी मेहनत और लगन से कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पहुंचा.

भारत के एक अराजनैतिक अर्थशास्त्री के मूक योद्धा प्रधानमंत्री बनने की कहानी का सबसे अहम मोड़ 1991 में आया, जब देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था. विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका था, और भारत पर आर्थिक दिवालियापन का खतरा मंडरा रहा था. इस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने डॉ. सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया. उनके नेतृत्व में देश ने एक नया आर्थिक मॉडल अपनाया, जिसने भारत को ही बदल दिया: डॉ. मनमोहन सिंह की प्रेरक यात्रा को आकार दिया.

1991 के सुधारों से पहले भारत की अर्थव्यवस्था बंद थी और आत्मनिर्भरता की कालातीत नीतियों में जकड़ी हुई थी. डॉ. सिंह ने वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की ओर बढ़ते हुए भारतीय बाजारों को दुनिया के लिए खोल दिया. यह एक ऐसा कदम था जिसने लाखों युवाओं को रोजगार के अवसर दिए और भारत को आईटी और सेवा क्षेत्र में विश्वस्तरीय बनाया. एक अर्थशास्त्री, जो प्रधानमंत्री बना और भारत का भविष्य गढ़ा, यह वाक्य उनके आर्थिक सुधारों की ताकत को सटीक रूप से परिभाषित करता है.

2004 में, जब वे प्रधानमंत्री बने, तो भारत को एक ऐसा नेता मिला, जो शांत, धैर्यवान और काम पर विश्वास करने वाला था. डॉ. सिंह का नेतृत्व ठोस नीतियों और उनकी ईमानदारी पर आधारित था. प्रधानमंत्री जो बोलते नहीं, बल्कि काम से देश बदलते थे, यह बात उनके व्यक्तित्व और कार्यशैली का प्रमाण है.

खेती के घाटे के अर्थशास्त्र और किसानों के दुख के मर्म को जिसे स्वनामधन्य माटी पुत्र तथा कृषक हृदय सम्राट कहलवाने वाले नेता नहीं समझ पाए उसे इस अराजनैतिक खांटी अर्थशास्त्री ने समझा. कर्ज के मकड़जाल में फंसे, हर तरफ से निराश आत्महत्या करने को मजबूर, दम तोड़ते किसानों की पीड़ा को उन्होंने गहराई से महसूस किया था. इसीलिए वह कर्ज कर्ज के चक्रव्यूह में फंसे किसानों की जान बचाने के लिए, और खेती की पानी की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने के लिए कर्ज-माफी की योजना लेकर आए. किसानों के प्रति उनका समर्पण अविस्मरणीय था. उनकी ऋण माफी योजना ने लाखों किसानों को नया जीवन दिया. उनकी महात्वाकांक्षी योजना “ग्रामीण रोजगार योजना” (MGNREGA) ने गांवों में रोजगार पैदा किया और गरीबों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया. किसानों और देश के प्रति डॉ. सिंह का अटूट समर्पण उनकी सामाजिक नीतियों का सार है.

डॉ. सिंह के कार्यकाल में अमेरिका के साथ महत्वपूर्ण परमाणु समझौता हुआ, जिसने भारत को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान की. यह समझौता उनकी कूटनीतिक सूझबूझ और साहसिक निर्णय लेने की क्षमता का प्रमाण था. उन्होंने दिखाया कि विकास के मूक निर्माता: मनमोहन सिंह की विरासत भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने की राह थी.

उनकी सादगी, सज्जनता और नैतिकता उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा थीं. एक बार उन्होंने कहा था, “मैं इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराने के लिए काम नहीं कर रहा, बल्कि देश के लिए काम कर रहा हूं.” यह विचार उन्हें मनमोहन सिंह: भारतीय राजनीति में शांति और दृढ़ता का प्रतीक बनाता है.

आज जब हम उनकी यात्रा पर नजर डालते हैं, तो सादगी से सत्ता तक और सुधारों की क्रांति का यह अध्याय हमें बताता है कि नेतृत्व केवल भाषणों से नहीं, बल्कि नीतियों और उनके प्रभाव से तय होता है. डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत केवल नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रेरणा है, जो दिखाती है कि राजनीति सेवा का माध्यम हो सकती है.

सदैव संयमित लहजे, विनम्र लहजे में अपनी बात कहने वाले मनमोहन जी शब्द खर्च करने के मामले में बेहद कंजूस थे. मनमोहन सिंह का मौन तो प्रचंड गलाबाजों, ढपोरशंखों पर भी भारी पड़ता था.

आज जब मनमोहन सिंह सदा के लिए मौन हो गए हैं, उनका वो कथन मुझे याद आता है जब उन्होंने कहा था कि “मुझे उम्मीद है कि मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति ज्यादा दयालु होगा. किंतु ऐतिहासिक पितृ पुरषों का कद बौना करके ,अपना कद बड़ा दिखाने की छुद्र कवायदों तथा इतिहास की बड़ी लकीरों को मिटाकर इतिहास के पुनर्लेखन और हिस्ट्री-करेक्शन के दौर मे ‘अश्वत्थामा मरो नरो वा कुंजरो’ के सत्य, अर्धसत्य तथा असत्य बीच पेंडुलम की तरह झूल रहा इतिहास मनमोहन सिंह के साथ कितना न्याय कर पाएगा यह तो भविष्य की गोद में छिपा भावी इतिहास ही बताएगा. हालांकि वो दिन देखने को हमारी यह पीढ़ी जिंदा नहीं रहेगी, जिसने मनमोहन सिंह को देश का इतिहास गढ़ते, और इतिहास को जस का तस घटते, और एक शानदार अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को इतिहास पढ़ते अपनी आंखों से देखा था.

डॉ. मनमोहन सिंह, आप केवल एक प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि देश के लिए मार्गदर्शक थे, हैं और रहेंगे. आपके नेतृत्व ने यह सिखाया कि जब नीतियां सही दिशा में हों, और नीयत साफ हो, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है.

भारत के किसान, मजदूर, और आम जनता आपके योगदान को कभी नहीं भूलेंगे. यह देश आपके प्रति कृतज्ञ है और हमेशा रहेगा. “आपकी सादगी में ही आपकी महानता है, और आपकी विरासत देश के भविष्य को मार्गदर्शन देती रहेगी.”

  • लेखक अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक हैं.


इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read