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पुलिस स्टेशनों में सड़ते वाहनों की समस्या

भारत में अपराधों की जांच के दौरान जब्त किए गए वाहनों की लंबी अवधि तक हिरासत में रहने की समस्या न केवल न्याय प्रक्रिया को धीमा करती है, बल्कि पुलिस, समाज और पर्यावरण पर भी बोझ बनती है. इस लेख में जानिए इसके प्रभाव और समाधान.

police station vehicle issues

भारत में अपराधों की जांच और न्यायिक प्रक्रिया में वाहन अक्सर महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में उपयोग किए जाते हैं. चाहे वह हत्या, चोरी, डकैती, तस्करी या सड़क दुर्घटना का मामला हो, वाहन जैसे कार, मोटरसाइकिल, ट्रक या अन्य साधन अपराध के दृश्य का एक अभिन्न हिस्सा हो सकते हैं. पुलिस द्वारा इन वाहनों को जब्त कर लिया जाता है और इन्हें साक्ष्य के रूप में अदालत में पेश किया जाता है. हालांकि, इन जब्त वाहनों का प्रबंधन और रखरखाव एक ऐसी समस्या बन चुका है, जो न केवल पुलिस प्रशासन के लिए सिरदर्द है, बल्कि यह पर्यावरण, संसाधनों और सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक गंभीर चुनौती बन गया है. पुलिस स्टेशनों और मालखानों में ये वाहन वर्षों तक सड़ते रहते हैं, जिससे न केवल जगह की कमी होती है, बल्कि यह व्यवस्था की नाकामी को भी उजागर करता है.

भारत में अपराधों की जांच के दौरान वाहनों की जब्ती एक सामान्य प्रक्रिया है. उदाहरण के लिए, यदि कोई वाहन किसी हिट-एंड-रन मामले में शामिल है, तो उसे फॉरेंसिक जांच के लिए जब्त किया जाता है. इसी तरह, तस्करी या डकैती जैसे मामलों में वाहनों को अपराध के साधन के रूप में देखा जाता है. भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 102 के तहत पुलिस को ऐसे वाहनों को जब्त करने का अधिकार है, जो अपराध से संबंधित हों. जब्ती के बाद, इन वाहनों को मालखाने या पुलिस स्टेशन के परिसर में रखा जाता है, जब तक कि मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती.

हालांकि, इस प्रक्रिया में कई खामियां हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत में न्यायिक प्रक्रिया अक्सर लंबी चलती है. कई मामलों में, सुनवाई में वर्षों लग जाते हैं और इस दौरान जब्त वाहन पुलिस स्टेशनों में खड़े रहते हैं. बारिश, धूप और धूल के संपर्क में रहने के कारण ये वाहन खराब हो जाते हैं और धीरे-धीरे कबाड़ में तब्दील हो जाते हैं. एक अनुमान के अनुसार, भारत के विभिन्न पुलिस स्टेशनों और मालखानों में लाखों वाहन सड़ रहे हैं, जिनमें से कई अब उपयोग के लायक भी नहीं रहे. एक अनुमान के मुताबिक इससे भारत को हर साल लगभग 20000 करोड रुपए का नुकसान हो जाता है.

जब्त वाहनों के सड़ने का प्रभाव केवल पुलिस प्रशासन तक सीमित नहीं है, इसका समाज पर भी गहरा असर पड़ता है. कई मामलों में, ये वाहन उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं, जो शायद निर्दोष हों या जिनके खिलाफ कोई ठोस सबूत न मिले. उदाहरण के लिए, एक ऑटो-रिक्शा चालक या टैक्सी ड्राइवर के लिए उसका वाहन उसकी आजीविका का मुख्य साधन होता है. जब ऐसे वाहन लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रहते हैं, तो मालिक की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है. कई बार वाहन मालिकों को अपनी आजीविका खोने के कारण परिवार का पालन-पोषण करने में कठिनाई होती है. यह सामाजिक असमानता को और बढ़ाता है, क्योंकि अधिकांश प्रभावित लोग निम्न या मध्यम वर्ग से होते हैं.

इसके अलावा, पुलिस स्टेशनों के बाहर खड़े वाहन अक्सर आस-पास के निवासियों के लिए परेशानी का कारण बनते हैं. ये वाहन सड़कों को अवरुद्ध करते हैं, पार्किंग की समस्या पैदा करते हैं और कई बार असामाजिक तत्वों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं. ऐसा देखा गया है कि, जब्त वाहनों की देखभाल के लिए कोई जिम्मेदार व्यक्ति नियुक्त नहीं होता. परिणामस्वरूप, वाहनों के महत्वपूर्ण हिस्से, जैसे बैटरी, टायर या इंजन के पुर्जे, गायब हो जाते हैं. यह न केवल भ्रष्टाचार को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ हो रही है, जो न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करता है.

इस समस्या के समाधान के लिए नीतिगत और संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है. पहला कदम यह हो सकता है कि वाहनों की जब्ती और रिहाई की प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए. प्रत्येक जब्त वाहन का रिकॉर्ड एक केंद्रीकृत डेटाबेस में दर्ज किया जाना चाहिए, जिसमें वाहन की स्थिति, जब्ती की तारीख और मामले की प्रगति की जानकारी हो. इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि वाहन अनावश्यक रूप से लंबे समय तक हिरासत में न रहें.

दूसरा, फॉरेंसिक जांच की प्रक्रिया को और तेज करना होगा. वर्तमान में, कई पुलिस स्टेशनों में फॉरेंसिक सुविधाओं की कमी है, जिसके कारण वाहनों को लंबे समय तक रखना पड़ता है. सरकार को क्षेत्रीय स्तर पर फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं की स्थापना करनी चाहिए, ताकि जांच जल्दी पूरी हो सके. इसके साथ ही, डिजिटल साक्ष्य, जैसे वाहन की तस्वीरें और 3डी स्कैन, को अदालतों में स्वीकार करने की नीति बनानी चाहिए. इससे भौतिक वाहन को लंबे समय तक रखने की आवश्यकता कम होगी.

जब वाहन साक्ष्य के रूप में उपयोग के लिए आवश्यक न हों, तो उनकी नीलामी या वैकल्पिक उपयोग की प्रक्रिया को तेज करना होगा. एक ऑनलाइन नीलामी पोर्टल, जहां वाहनों की स्थिति और नीलामी की प्रक्रिया सार्वजनिक हो, इस समस्या को हल कर सकता है. इसके अलावा, कुछ मामलों में, जब्त वाहनों को सरकारी उपयोग, जैसे पुलिस या आपातकालीन सेवाओं के लिए, पुन: उपयोग में लाया जा सकता है, बशर्ते वे कार्यशील स्थिति में हों.

पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, सड़ते वाहनों को रीसाइक्लिंग के लिए भेजा जाना चाहिए. भारत में वाहन रीसाइक्लिंग उद्योग अभी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन इसे बढ़ावा देने से न केवल पर्यावरण को लाभ होगा, बल्कि यह आर्थिक अवसर भी पैदा करेगा. इसके साथ ही, इन वाहनों को सुरक्षित रखने की दृष्टि से हर ज़िले के स्तर पर एक बड़ा मालखाना होना चाहिए जहाँ इन्हें रखा जाए, न कि पुलिस थानों में.

इस समस्या का समाधान तभी संभव है, जब नीतिगत सुधार और तकनीकी नवाचार को एक साथ लागू किया जाए. वाहनों को साक्ष्य के रूप में उपयोग करने की प्रक्रिया को और अधिक कुशल, पारदर्शी और समयबद्ध बनाना होगा. केवल एक समग्र दृष्टिकोण ही इस समस्या को जड़ से खत्म कर सकता है. जिससे यह भी सुनिश्चित होगा कि अपराध में शामिल वाहन न केवल न्याय प्रक्रिया में सहायक हों, बल्कि समाज और पर्यावरण पर भी बोझ न बनें.

*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के संपादक

-भारत एक्सप्रेस 



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