मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश के एम नटराज ने संविधान पीठ को बताया कि इस मामले पर एम्स के डॉक्टरों के साथ बैठक हुई है। इसमे कुछ संभावित दिशा-निर्देश पर बात हुई है।
जस्टिस के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ मामले में सुनवाई कर रही है।
कोर्ट ने कहा अगर कोई व्यक्ति कहता है कि मुझे इलाज नहीं चाहिए तो क्या कोई कानूनी रोक है?
MTP एक्ट का मसौदा तैयार करने वाले डॉक्टर ने कहा कि इस पर कानूनी रोक है क्योंकि जब हम इलाज के लिए अस्पताल जाते हैं तो वहा दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं।
जस्टिस बोस ने कहा कि सामान्य स्थिति में कानून मरने का अधिकार नही देता हैं लेकिन विपरीत स्थितयों में क्या ?
इस पर जस्टिस रविकुमार ने कहा कि इसीलिए सवाल है कि क्या सम्मान के साथ मरने का अधिकार भी है?
वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि हर किसी को इलाज से इनकार करने का अधिकार है। यहां स्थित ये है कि व्यक्ति अस्पताल को यह पहले ही अपने हस्ताक्षर में लिख कर देता है कि वह कृतिम तरीको से जीवित नही रहना चाहता है।
यहां अगर कोई व्यक्ति बेहोश है या अपनी इच्छा व्यक्त करने में असमर्थ है तो उसे वेंटिलेटर पर रखा जाना है। वह यह कहते हुए एक अग्रिम निर्देश देता है कि अगर ऐसा होता है तो मैं कृत्रिम तरीकों से जीवित नहीं रहना चाहता। वह इस पर हस्ताक्षर करता है और अस्पताल को देता है।
जस्टिस बोस ने कहा कि आप इसे व्यक्ति से जोड़कर उसके ऊपर डाल रहे है।
भूषण ने सहमति जताते हुए कहा क्योंकि सही दिमाग होने पर उन्हें ऐसा करने का अधिकार है। उस समय परिजन भी उसे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
वकील अरविंद दातार ने कोर्ट को बताया कि एम्स के पास आज भी एक ऐसा फॉर्म है।जिसमें मरीज चाहे तो अपना लाइफ सपोर्ट वापस ले सकता है।
जस्टिस बोस ने पूछा तो फिर आपको हमसे किसी निर्देश की क्या जरूरत है। जब अस्पताल में पहले से ऐसा चल रहा है?
जवाब में दातार ने कहा कि हालांकि यह फॉर्म होश में रहने वाले मरीज के साइन की जरूरत होती है।
जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि हम यह समझना चाहते हैं कि इस विषय में सुरक्षा उपाय क्या हैं और किन चीजों को बदलने की जरूरत है?
जस्टिस जोसेफ ने कहा कहा कि भारत के आर्थिक सामाजिक परिवेश को देखते हुए विचार करने की जरूरत है क्योंकि अगर किसी व्यक्ति को टनल कैंसर हो जाता है और वह कह देता है कि वह इस में इलाज नहीं चाहता, तो उस स्थिति में क्या होगा?
उन्होंने कहा अगर मुझे 30 साल की उम्र में कैंसर हो जाए और मैं 55 साल तक जीवित रहता हूँ।
दातार ने कहा कहा कि इन दोनों स्थितियों में यहां पर अग्रिम निर्देश और मेडिकल कमेटियों की भूमिका होती होगी।
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि जीवन के मूल्यवान है उसका अवमूल्यन नहीं किया जा सकता।