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77वें कान फिल्म समारोह में इस बार चार भारतीय फिल्मकारों को पुरस्कार मिले तो दूसरी ओर प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन को मुख्य पैलेस के बुनुएल थियेटर में 2024 के प्रतिष्ठित ‘पियरे आंजनेऊ एक्सीलेंस इन सिनेमैटोग्राफी’ सम्मान से नवाजा गया. संतोष सिवन को ऑफिशियल और सेरेमोनियल रेड कारपेट दी गई. इसके साथ ही इस्टोनिया की युवा छायाकार कादरी कूप को स्पेशल एनकरेजमेंट अवॉर्ड प्रदान किया गया.
फिल्मों की शूटिंग के लिए कैमरा और कैमरे का आधुनिक लेंस बनाने वाली कंपनी आंजनेऊ कान फिल्म समारोह की ऑफिशियल पार्टनर है. इस कंपनी ने 2013 में कान फिल्म समारोह के साथ मिलकर सिनेमैटोग्राफी के क्षेत्र में लाइफ टाइम अचीवमेंट और एनकरेजमेंट अवॉर्ड शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
इस बार यह सम्मान भारत के विश्व प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन को दिया गया. इस अवसर पर संतोष की मास्टर क्लास और मैजेस्टिक होटल में भव्य सेरेमोनियल डिनर का आयोजन किया गया. आंजनेऊ कंपनी ने हीं सबसे पहले एसएलआर (सिंगल लेंस रिफ्लेक्स) कैमरा और जूम लेंस का आविष्कार किया था. इतना ही नहीं इसी कंपनी के कैमरे ने नासा के रेंजर 7 चंद्रमा मिशन मे 31 जुलाई 1964 को पहली बार चंद्रमा की सतह की नजदीकी और क्लोज अप तस्वीरें भेजी थी.
कान फिल्म समारोह के निर्देशक थेरी फ्रेमों ने कहा कि सिनेमा के लिए भारत एक महान देश है और जमाने के बाद कान फिल्म समारोह में भारत की शानदार उपस्थिति देखी जा रही है. हालांकि समारोह की शुरुआत से ही भारतीय फिल्में यहां दिखाई जाती रहीं हैं.
उन्होंने संतोष सिवन की तारीफ करते हुए कहा कि वे अपनी कला में विलक्षण हैं और उन्होंने सिनेमैटोग्राफी को नई कलात्मक उंचाई दी है. आंजनेऊ कंपनी के प्रमुख इमैनुएल स्प्रोल ने कहा कि संतोष सिवन दुनिया के सबसे बड़े सिनेमैटोग्राफरों में से एक हैं. वे इस समय भारत के सबसे बड़े सिनेमैटोग्राफर हैं. उनका बॉडी ऑफ वर्क सबसे शानदार है. फ्रेंच अभिनेत्री मिलेनी लारेंट और चीनी-फ्रेंच अभिनेत्री जिंग वांग ने भी सिवन के महत्व को रेखांकित किया.
फ्रांस में भारत के राजदूत जावेद अशरफ ने सिवन की हिंदी फिल्मों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि उनका काम अद्भुत है. उन्होंने बर्लिन में मणिरत्नम की फिल्म ‘दिल से’ के प्रदर्शन को याद करते हुए कहा कि शाहरुख खान और प्रीति जिंटा के साथ दर्शकों ने संतोष सिवन के खूबसूरत छायांकन को भी पसंद किया था. प्रीति जिंटा ने फिल्म की शूटिंग के दौरान सिवन के साथ बिताए गए लम्हों को याद किया.
उन्होंने कहा कि जब आप संतोष सिवन के कैमरे के सामने अभिनय कर रहे होते हैं तो आपकी खुशी बढ़ जाती है, क्योंकि आप उन पर भरोसा कर सकते हैं, आप संतुष्टि से भर जाते हैं, क्योंकि आपको लगता है कि कुछ चमत्कार होने वाला है.
इस अवसर पर भारतीय सिनेमा की जानी मानी हस्तियों के वीडियो संदेश प्रदर्शित किए गए जिनमें शाहरुख खान, आमिर खान, मोहनलाल, गुरिंदर चड्ढा, नंदिता दास, शेखर कपूर, मीरा नायर, विद्या बालन, अनिल मेहता, मणि रत्नम आदि ने सिवन के साथ शूटिंग के अनुभव साझा किए.
संतोष सिवन ने करीब 57 फिल्मों की सिनेमैटोग्राफी की है और 17 से अधिक फिल्मों का निर्देशन किया है. हाल ही में उन्होंने आमिर खान-राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘लाहौर 1947’ और रितेश देशमुख की फिल्म ‘राजा शिवाजी’ की शूटिंग पूरी की है.
इन दिनों वे अपनी फिल्म ‘जूनी’ की शूटिंग में व्यस्त हैं. उन्होंने अपनी मास्टर क्लास में ‘जूनी’ का ट्रेलर जारी किया. यह फिल्म कश्मीर की कालजई कवयित्री हब्बा खातून के जीवन और कविता पर आधारित है.
सिवन ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सिनेमैटोग्राफी एक ऐसी कला है, जिसमें भाषा और देशों की कोई दीवार बाधा नहीं बनती. जितनी आसानी से मैं तमिल और मलयालम सिनेमा में काम करता हूं, उतनी ही सुविधा से हिंदी सिनेमा, हॉलीवुड और विश्व सिनेमा में काम करता हूं.
उन्होंने कहा कि एक बार जापान के सिनेमैटोग्राफर एसोसिएशन ने आमंत्रित किया और मैं उन लोगों के साथ 50 दिन रहा. मैंने देखा कि वे मेरी फिल्म ‘दिल से’ के मशहूर गीत ‘छइया छइया’ गा रहे थे.
उन्होंने कहा कि मैं हमेशा एक खराब पति रहा हूं, जिसने काम के चक्कर में अपनी पत्नी और बेटे को अक्सर अकेला छोड़ दिया. आज वे यहां हैं और शायद उन्हें खुशी हो रही होगी. उन्होंने अपने माता-पिता और दादी को याद किया, जिनसे उन्होंने केरल की समृद्ध संस्कृति को सीखा. मैं हमेशा मलयाली सिनेमा का आभारी रहूंगा जहां मैंने बेसिक ज्ञान हासिल किया.
उन्होंने कहा कि जिस पैशन, कमिटमेंट और स्टाइल के साथ कान फिल्म समारोह आयोजित किया जाता है, उससे हम भारतीय लोगों को सीखना चाहिए. ये लोग केवल एक्टर डायरेक्टर को ही नहीं तकनीशियन को भी इज्जत और सम्मान देते हैं.
सिनेमा को बनाने में तकनीशियनों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. उनके बिना आप फिल्में नहीं बना सकते. अपनी लंबी सिनेमाई यात्रा के बारे में उन्होंने कहा कि यह अमेजिंग रहीं हैं. मैं इसलिए सिनेमैटोग्राफर बना क्योंकि मुझे यात्राएं करनी थी और दुनिया को देखना था. आप देखिए कि एक जीवन तो केवल हिंदुस्तान को भी शूट करने के लिए काफी नहीं है. मैं अभी तक भारत में ही कई ऐसी जगहों पर शूटिंग नहीं कर पाया, जिन्हें मैं वर्षों से शूट करना चाहता हूं.
उन्होंने कहा कि मुझे 10 साल पहले जब अमेरिकन सिनेमैटोग्राफिक सोसायटी की सदस्यता मिली तो मैं आसानी से हॉलीवुड में बस सकता था, लेकिन मैंने भारत में रहना पसंद किया, क्योंकि मैं यहां जो सिनेमा सोच सकता हूं वह वहां नहीं हो सकता. भारत में भी करने को इतना सारा काम है कि कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है. हालांकि मुझे दुनिया में कहीं भी काम करने का अवसर मिलता है तो मैं काम करता हूं और वापस अपने देश भारत आ जाता हूं.
उन्होंने कहा कि किसानों पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाते हुए मैंने महसूस किया दुनिया में सबसे अच्छा काम खेतीबाड़ी है. अगर मैं सिनेमैटोग्राफर नहीं होता तो किसान होता. मैंने सोचा कि मेरा बेटा शहरी प्रदूषण से दूर प्राकृतिक माहौल में पले तो मैंने पॉन्डिचेरी में कुछ जमीन खरीदी और एक घर बनाया. उसे भी यह सब अच्छा लगता है. मैं सिनेमा से ब्रेक लेकर खेतीबाड़ी करूंगा. मैं दोनों काम एक साथ नहीं कर सकता. अभी मेरी जितनी शूटिंग बाकी है, वह सब पूरी करके मैं सिनेमा से लंबा ब्रेक लूंगा और खेतीबाड़ी करूंगा.
यह पूछे जाने पर कि जब हम भारतीय सिनेमा के बारे में सोचते हैं तो केवल मुंबइया सिनेमा ही ध्यान में आता है, जो सच नहीं है. बंगाल, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु का सिनेमा भी बहुत बड़ा है तो हम एक भारतीय सिनेमा किसे कहेंगे.
उन्होंने कहा कि अब हालात बदल रहे हैं. ऐसा धीरे-धीरे होने लगा है. अब हम एक नया शब्द प्रयोग में लाने लगे हैं- पैन इंडियन फिल्म. हाल के वर्षों में दक्षिण भारतीय फिल्में उत्तर भारत खासकर बॉलीवुड में बहुत लोकप्रिय हुईं. बॉलीवुड ने भी दक्षिण का फॉर्मूला अपनाना शुरू किया. वहीं बिग हीरो, सुपर हीरो, लार्जर दैन लाइफ और ओटीटी के कारण आपको थियेटर के लिए बहुत बड़ा करना पड़ रहा है दिखाना पड़ रहा है.
संतोष सिवन ने कहा कि अब बॉलीवुड में भी दक्षिण का लार्जर दैन लाइफ का फॉर्मूला डॉमिनेट कर रहा है, इसलिए अब बॉलीवुड भी बदल रहा है. कलाकारों और निर्देशकों की आवाजाही हो रही है, हालांकि मेरा मानना है कि अंतत: दोनों एक नहीं हो सकते. मसलन मलयाली सिनेमा का खास चरित्र है. उन्हें अपना हाउस प्लान चाहिए हीं चाहिए.
संदीप रेड्डी वांगा और एटली जैसे दक्षिण के फिल्म निर्देशकों द्वारा बॉलीवुड फिल्में बनाने के ट्रेंड पर उन्होंने कहा कि यह तात्कालिक प्रवृत्ति है. आप याद कीजिए कि राज कपूर और करण जौहर ने भी ऐसे प्रयोग किए थे, पर क्या हुआ? ये कभी एक नहीं हो सकते. भारत में हर तरह के सिनेमा का चरित्र बना रहेगा, क्योंकि यह संस्कृति से जुड़ा हुआ है.
-भारत एक्सप्रेस
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