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Akhilesh Yadav: शिवपाल के साथ आने के बाद क्या अखिलेश करा पाएंगे यादवलैंड में सपा की वापसी? जानिए क्या है रणनीति

UP Politics: सपा के एक नेता की मानें तो मैनपुरी का चुनाव जीतने के बाद अखिलेश अपने क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं. हर छोटे बड़े कार्यक्रम में नजर आ रहे हैं.

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सपा मुखिया अखिलेश यादव

Akhilesh Yadav: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव सैफई लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से अपने पिता की विरासत को संभालने में जुटे हैं. यादव लैंड को मजबूत करने के लिए वे पहली बार इटावा, मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, औरैया, फरुर्खाबाद और कन्नौज पर पूरी तरह से फोकस कर रहे हैं. इसे आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से उनकी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.

सपा के रणनीतिकारों का मानना है कि मुलायम सिंह के बाद इस क्षेत्र में शिवपाल की अच्छी पकड़ मानी जाती रही है. इसीलिए शिवपाल को अपने पाले में लेने के बाद अब वे यहां के हर गांव में युवाओं से सीधे जुड़ कर भविष्य की रणनीति को मजबूत बना रहे हैं. अपनी यात्राओं के दौरान वे यहां पर चाय, पकौड़ी और भुने आलू का लुफ्त उठाते भी दिखाई देते हैं. इसे सियासी नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है.

शिवपाल ने भी मान लिया अखिलेश को अपना नेता

सियासी जानकारों की मानें तो मुलायम सिंह के बाद इस इलाके में शिवपाल सिंह का जमीन पर जुड़ाव रहा है. हालांकि, अब वक्त बदल गया है. शिवपाल ने भी अखिलेश को अपना नेता मान लिया है. परिवार के नई पीढ़ी भी सियासत में आ चुकी है. ऐसे में अखिलेश यादवलैंड में कोई रिक्त स्थान नहीं छोड़ना चाहते हैं. नई पीढ़ी पर अखिलेश अपनी छाप छोड़ने में जुटे हैं. अभी की स्थिति उनके परिवार में ऐसा कोई नेता नहीं है, जो उनके बिना आगे बढ़ सके.

यादव बेल्ट को मजबूत करने में जुटें अखिलेश

सपा के एक नेता की मानें तो मैनपुरी का चुनाव जीतने के बाद अखिलेश अपने क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं. हर छोटे बड़े कार्यक्रम में नजर आ रहे हैं. चुनाव के दौरान भी वह लगातार वहीं पर सक्रिय रहे थे. मैनपुरी, सपा का प्रमुख गढ़ रहा है. यहां से सपा ने आठ बार और मुलायम सिंह ने पांच बार जीत दर्ज की थी. मुलायम की सहानभूति इस बार उपचुनाव में ऐसी दिखी कि सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए. छोटे नेता जी अखिलेश को लगने लगा है कि अगर अपने वोट बैंक को सहेज लिया जाए तो आने वाले चुनाव में अच्छा काम हो सकता है. इसी कारण वे शिवपाल को अपने खेमे लेने के बाद यादव बेल्ट को मजबूत करने में जुटे हैं.

चुनाव के बाद भी मैनपुरी में सक्रिय हैं अखिलेश

हाल में ही मीडिया में छपी कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने दिसंबर माह में मैनपुरी में पार्टी कार्यकतार्ओं को संबोधित किया. इसके अगले दिन किशनी में पार्टी के लोगों के बीच रहे. 14 दिसंबर को अपनी विधानसभा क्षेत्र करहल में रहे. 23 दिसंबर को जसवंत नगर में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. इसके बाद क्रिसमस में मैनपुरी में एक समारोह में शामिल हुए. इसके बाद फिर मैनपुरी में एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया.

राजनीतिक जानकारों के अनुसार सपा संस्थापक मुलायम सिंह ने अपने क्षेत्र को मजबूत करने में बहुत परिश्रम किया था. मैनपुरी के आस-पास के लोग उनके क्षेत्र छोड़ने के बाद लखनऊ और दिल्ली में जाकर मिलते थे. मुलायम उनकी समस्या सुनते और निपटाते थे. लोगों से उनका व्यक्तिगत जुड़ाव ही उनकी ताकत था. इसीलिए इटावा, कन्नौज, फिरोजाबाद जैसे यादव बाहुल इलाके में अपनी पार्टी को मजबूत बनाए रखा. शायद अखिलेश 2024 में इतना समय इन क्षेत्रों में न दे पाएं, इसी कारण वे मुलायम के न रहने के बाद उनकी खाली जगह को भरने और ज्यादा से ज्यादा समय यहां देने के प्रयास में लगे हैं.

सपा हर तरीके से भाजपा से लड़ने के लिए तैयार- आशुतोष वर्मा

सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डाक्टर आशुतोष वर्मा कहते हैं कि फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज जैसे इलाकों से नेता जी के जमाने से लोग प्यार देते रहे हैं. 2014 और 2019 में जरूर इन क्षेत्रों में हमें कुछ नुकसान हुआ है. लेकिन हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष (Akhilesh Yadav) इस नुकसान की भरपाई के लिए खुद इन क्षेत्रों में जा रहे हैं. यहां के लोगों से मिल रहे हैं। इन क्षेत्रों के अलावा वह झांसी, जालौन भी जा रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि इस चुनाव में सपा हर तरीके से मजबूत होकर भाजपा से लड़ने के लिए तैयार है.

यादवलैंड पर बढ़ा रही है भाजपा दखल

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि 2014 से मुलायम का गढ़ रहे यादवलैंड पर भाजपा लगातार अपनी दखल बढ़ा रही है. उसी का नतीजा रहा कि 2019 में न सिर्फ यादव बाहुल्य क्षेत्र, कन्नौज, फिरोजाबाद, जैसे इलाकों में भाजपा ने कब्जा जमा लिया. इसके साथ ही उनके सबसे मजबूत इलाके गृह जनपद इटावा में भी कमल खिलाया है. पिछले चुनाव में सपा से नाराज होने वाले तमाम कद्दावर नेताओं को भाजपा ने अपने साथ जोड़ा है. उन्हें संगठन के साथ सियासी मैदान में उतार कर नया संदेश देने का भी काम किया है. इसका भाजपा को कुछ लाभ भी मिला है.

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मुलायम सिंह के निधन के बाद भाजपा ने मैनपुरी में उनके शिष्य रहे रघुराज सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया. वहीं, इस उपचुनाव ने सपा ने अपनी रणनीति बदली. सारे विवाद भुलाकर अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल को न सिर्फ जोड़ा, बल्कि उपचुनाव से दूर रहने की परंपरा को खत्म कर घर-घर जाकर चुनाव प्रचार भी किया. उन्हें कामयाबी भी मिली. अखिलेश चाहते कि मैनपुरी से जली लौ अब धीमी न पड़े इसलिए वह यादवलैंड की बागडोर संभाले हुए हैं. इसमें 2024 में कितनी कामयाबी मिलेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

-भारत एक्सप्रेस

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