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Allahabad HC: “हिंदी हमारी मां है…अन्य भाषाएं मौसी”, न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने बनाया अनोखा कीर्तिमान, मातृभाषा में सुनाए 13 हजार से ज्यादा फैसले

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट में हिंदी में बहस और फैसला देने का चलन लगातार बढ़ रहा है. इस कड़ी में जस्टिस गौतम चौधरी ने हिंदी में फैसले सुनाने का रिकार्ड बनाया है. उन्होंने महज अपने चार साल के कार्यकाल में 13 हजार से ज्यादा फैसले हिंदी में सुनाए है. जस्टिस गौतम ने गोरखपुर के डॉ. कफिल खान का फैसला भी हिंदी में सुनाकर ऐतिहास रच दिया था. किसी भी हाई कोर्ट का हिंदी में आया यह सबसे चर्चित फैसला है. जस्टिस गौतम चौधरी का कहना है कि हिंदी हमारी मां है और बाकी की सभी भाषाएं मौसी. इसलिए वह पहले अपनी मां को प्राथमिकता देते हुए अपने फैसले हिंदी में सुनाते हैं.

वहीं, जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी, जस्टिस शेखर कुमार यादव समेत कई अन्य जजों ने पिछले कुछ सालों में हिंदी में फैसले सुनाए हैं, लेकिन जज गौतम चौधरी ने हिंदी में फैसले सुनाने का रिकॉर्ड बना दिया है.

13 हजार से अधिक हिंदी में फैसले सुनाने का कीर्तिमान

बताया जाता है कि जस्टिस गौतम चौधरी में हिंदी भाषा से बहुत प्यार और उनमें इस भाषा जुनून हैं. उनका मानना है कि जनता से हिंदी को जोड़ने का काम केवल संस्थाएं ही नहीं, बल्कि आम लोग भी कर सकते हैं. बस इसके लिए अपनी मातृभाषा जुनून होना चाहिए. जस्टिस गौतम ने अपने 4 साल के कम के कार्यकाल में 13 हजार से अधिक हिंदी में फैसले सुनाने का कीर्तिमान बनाया है. खबरों के मुताबिक, चौधरी अपनी पीठ में 35 से 40 फैसले सुनाते हैं. इसमें सभी तरह के फैसले होते हैं, कुछ अंतरिम तो कुछ फाइनल. बता दें कि ज्यादातर फैसले सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में हिंदी में सुनाए जाते हैं.

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कॉन्वेंट स्कूल में इंग्लिश मध्यम से पढ़ाई की

जस्टिस गौतम चौधरी ने 12 दिसंबर 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस के रूप में शपथ ली थी. अपनी शुरुआत से ही उन्होंने हिंदी में फैसले सुनाने का काम शुरू कर दिया. डॉक्टर कफिल खान के मामले में भी उन्होंने हिंदी में ही फैसला सुनाया. उनके इस फैसले का स्वागात सभी ने किया और ऐतिहासिक फैसला माना जाता है. इसकेअलावा उन्होंने तमाम मामलों की याचिकाओं, पुनरीक्षण अर्जियों पर फैसले हिंदी में ही दिए हैं. वैसे तो जस्टिस चौधरी ने कॉन्वेंट स्कूल में इंग्लिश मध्यम से पढ़ाई की है, लेकिन उनका हिंदी से अलग ही लगाव है और वे हिंदी को और आगे ले जाना चाहते हैं.

– भारत एक्सप्रेस

 

 

Rahul Singh

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