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Kalki Mahotsav: अवधेशानन्द गिरि महाराज ने कहा- ‘सनातन धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए श्री कल्कि अवतार होना है’

Kalki Mahotsav: कल्कि धाम के पीठाधीश्वार आचार्य प्रमोद कृष्णम् के निमंत्रण पर कल्कि महोत्सव के 108 कुण्डीय शिलादान महायज्ञ में जूनापीठाधीश्वर अवधेशानन्द गिरि महाराज मुख्य अतिथि के तौर पर पधारे.

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कल्कि महोत्सव.

Avdheshanand Giri in Kalki Mahotsav: कल्कि धाम के पीठाधीश्वार आचार्य प्रमोद कृष्णम् के निमंत्रण पर उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हाल ही में हुए कल्कि महोत्सव के 108 कुण्डीय शिलादान महायज्ञ में जूनापीठाधीश्वर अवधेशानन्द गिरि महाराज मुख्य अतिथि के तौर पर पधारे. 108 कुण्डीय शिलादान महायज्ञ में अवधेशानन्द गिरि महाराज ने स्वर्ण शिला का पूजन किया. बता दें भव्य कार्यक्रम में प्रसिद्ध कवि डॉक्टर कुमार विश्वास, प्रख्यात भजन गायक कन्हैयालाल मित्तल के अलावा हजारों सन्त, महापुरुष और देश की अनेक गणमान्य विभूतियां उपस्थित रहीं.

कार्यक्रम में प्रख्यात कवि डॉक्टर कुमार विश्वास का प्रेरक उद्बोधन हुआ. जबकि, भजन गायक कन्हैया लाल मित्तल ने भजनों से वहां मौजूद तमाम श्रोताओं का गणमान्य व्यक्तियों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

कल्कि धाम में भगवान कल्कि का आगमन निश्चित: अवधेशानन्द गिरि महाराज

कल्कि महोत्सव में अपने उद्बोधन में “पूज्यश्री जी” ने कहा कि इस श्री कल्कि धाम में भगवान कल्कि का आगमन निश्चित है. सनातन धर्म संस्कृति के रक्षण के लिए श्री कल्कि अवतार होना है. पवित्र कार्तिक मास में जब चन्द्र की कौमुदीय कला अमृत वर्षण कर रही है, ऐसे में भगवान श्री कल्कि का उत्सव मनाया जा रहा है. यह भगवान का अनुग्रह ही है कि हम कल्कि महोत्सव के साक्षी बने हैं.

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“आत्मवत् सर्वभूतेषु” तथा “वसुधैव कुटुंबकम्” का दिया संदेश

स्वामी अवदेशानंद गिरी ने अपने आशीर्वचन में आगे कहा कि बीते साल हम सभी इस पुण्य धरा पर उस दृश्य के साक्षी थे कि जब देश के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने श्री कल्कि धाम का शिलान्यास किया. इस “कल्कि धाम” से सनातन धर्म का “ज्ञान आलोक” सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करेगा. साथ ही यहां के शिक्षण संस्थान और संस्कार जागरण केन्द्र समस्त संसार में सनातन संस्कृति का शंखनाद करेंगे.

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हम सनातन धर्मावलंबी पूरे विश्व को अपना कुटुंब मानते हैं, जबकि पश्चिमात्य देश विश्व को बाजार मानते हैं. “आत्मवत् सर्वभूतेषु” तथा “वसुधैव कुटुंबकम्” का भाव हम में सदा से ही रहा है. “आत्मन: प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत” अर्थात् जो हमें स्वयं को अच्छा ना लगे, वैसा दूसरों के साथ व्यवहार ना करें, चिर काल से यही हमारी सोच रही है.

बताते चलें कि इस अवसर पर देश के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे अनेक पूज्य सन्तगण, सामाजिक क्षेत्रों के विशिष्ट गण और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं कि की उपस्थिति रही.

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-भारत एक्सप्रेस

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