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दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदला, अब बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा

दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदल गया है. शुक्रवार को शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इसकी घोषणा की. अब सराय काले खां चौक को बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा.

Birsa Munda Chowk

दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदल गया है. शुक्रवार को शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इसकी घोषणा की. अब सराय काले खां चौक को बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा. केंद्रीय मंत्री ने इस चौके के पास भगवान बिरसा मुंडा की एक भव्य प्रतिमा का भी अनावरण किया. स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के मौके पर सरकार ने इसकी घोषणा की.

प्रतिमा अनावरण के मौके पर केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि, आज मैं ये घोषणा कर रहा हूं कि यहां आईएसबीटी बस स्टैंड के बाहर स्थित चौक को भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा. उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा और चौक का नाम देखकर केवल दिल्ली के निवासी ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बस स्टैंड पर आने वाले लोग भी उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त करेंगे. चौक का नाम बदलने का उद्देश्य बिरसा मुंडा की महान विरासत को सम्मानित करना है, ताकि इस स्थान पर आने वाले लोग उनके संघर्ष और योगदान के बारे में जान सकें और उनसे प्रेरित हो सकें.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया, जिसके साथ सराय काले खां चौक का नाम बदलकर “बिरसा मुंडा चौक” रखा गया. इस बदलाव का उद्देश्य बिरसा मुंडा की आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका और उनकी विरासत को सम्मानित करना है, ताकि यहां आने वाले लोग उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें और उनके योगदान के बारे में जान सकें.

बिरसा मुंडा, जो छोटानागपुर पठार के मुंडा जनजाति से ताल्लुक रखते थे, भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता माने जाते हैं. उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ लड़ाई में आदिवासी समुदायों को जागरूक किया और उन्हें अपनी ज़मीन और अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी. मुंडा ने 19वीं सदी के अंत में एक सशस्त्र क्रांति का नेतृत्व किया, जिसे “उलगुलान” के नाम से जाना जाता है. उनका आंदोलन अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों की ज़मीन और संसाधनों पर कब्ज़ा करने के खिलाफ था, जिससे उनके लोग बंधुआ मजदूरी की ओर बढ़ रहे थे.

बिरसा मुंडा ने स्वदेशी धार्मिक मान्यताओं के साथ जीववाद को जोड़ा और एक ईश्वर की पूजा करने की परंपरा स्थापित की. वे “धरती आबा” यानी पृथ्वी के पिता के रूप में आदिवासी समुदाय के बीच अत्यधिक सम्मानित थे. उनका प्रभाव इतना गहरा था कि महज 25 वर्ष की आयु में 9 जून 1900 को उनकी मृत्यु के बावजूद उनका योगदान आज भी याद किया जाता है.


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बिरसा मुंडा की प्रेरणा से, भारत सरकार ने 2021 में 15 नवंबर को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की, जो आदिवासी समुदाय के योगदान और उनके संघर्ष को सलाम करता है. अब, सराय काले खां चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक रखा गया है, ताकि उनकी विरासत और उनकी न्याय की लड़ाई को नई पीढ़ी के बीच सम्मान और पहचान मिले.

-भारत एक्सप्रेस



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