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नागालैंड में सैन्य कार्रवाई में मारे जाने में शामिल सैन्यकर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, आपराधिक कार्रवाई रद्द

Nagaland Firing Case: सेना द्वारा की गई कार्रवाई के बाद वहां हिंसा भड़क गई थी. जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई थी. जबकि जेना की कार्रवाई के दौरान 6 लोग मारे गए थे.

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सुप्रीम कोर्ट.

Nagaland Firing Case: 4 दिसंबर 2021 में नागालैंड में एक सैन्य कार्रवाई के दौरान मारे गए आम नागरिकों के मारे जाने के मामले में शामिल सैन्यकर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने नागालैंड के मोन में नागरिकों की हत्या में शामिल सैन्य कर्मियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है. हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी साफ कर दिया है कि सेना अपनी ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है. यह याचिका सैन्यकर्मियों के पत्नी की ओर से दायर की गई थी.

सैन्य कार्रवाई के दौरान भड़की थी हिंसा

बता दें कि सेना द्वारा की गई कार्रवाई के बाद वहां हिंसा भड़क गई थी. जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई थी. जबकि जेना की कार्रवाई के दौरान 6 लोग मारे गए थे. कुल 13 लोगों की मौत हो गई थी. राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार से ऑपरेशन में शामिल सैन्यकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी. जिसे केंद्र सरकार ने डेढ़ साल पहले उन सेनाओं पर कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लिया था, जिसे चुनौती दी गई थी. आरोप था कि 4 दिसंबर 2021 को ये सैनिक नागालैंड के मोन जिले में उग्रवादियों पर धावा बोलने के लिए गए थे, लेकिन इस अभियान में 13 आम नागरिकों की हत्या हो गई थी. इस घटना के बाद नागालैंड पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया था.

नागालैंड सरकार ने दायर की थी रिट याचिका

नागालैंड सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर की थी. इस अनुच्छेद के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की जा सकती है. राज्य सरकार ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उनके पास एक मेजर सहित सेना के जवानों के खिलाफ पुख्ता सबूत है. फिर भी केंद्र सरकार ने मनमाने ढंग से उन पर मुकदमा चलाने के मंजूरी देने से इंकार कर दिया था.

बता दें कि जुलाई 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इन जवानों पर मुकदमा चलाने पर रोक लगा दी थी. क्योंकि तब इनकी पत्नियों की तरफ से याचिका दायर की गई थी की राज्य सरकार बिना केंद्र सरकार के मंजूरी लिए उनके पतियों पर मुकदमा चला रही है. उन्होंने एफआईआर को रद्द करने की भी मांग की थी. जिसके बाद नागालैंड सरकार ने केंद्र सरकार से मंजूरी लेने की कोशिश की थी, लेकिन पिछले साल केंद्र सरकार ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया था.

-भारत एक्सप्रेस

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