पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट 11 सितंबर को सुनवाई करेगा. याचिका में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें केंद्र सरकार की संगठन पर लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध की पुष्टि की गई है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने प्रतिबंधित संगठन के वकील से कहा कि वह यूएपीए न्यायाधिकरण के आदेश की जांच करते समय कोर्ट के अधिकार क्षेत्र की रूपरेखा को परिभाषित करने के लिए एक संक्षिप्त नोट दें.
अतिरिक्त सालिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता यूएपीए न्यायाधिकरण के आदेश को गुण-दोष के आधार पर चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि इसकी अनुमति नहीं है. यह निर्णय सभी प्रासंगिक सामग्रियों पर विचार करने के बाद लिया गया था.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि न्यायाधिकरण ने जिन तथ्यों एवं सबूतों पर विचार करने के बाद आदेश पारित किया वह कानून के खिलाफ है. उसके पक्ष पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
पीएफआई ने यूएपीए न्यायाधिकरण के 21 मार्च के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें केंद्र ने 27 सितंबर, 2022 को उसे प्रतिबंधित करने के फैसले की पुष्टि की गई थी. केंद्र ने आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ कथित संबंधों एवं देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश के लिए पीएफआई पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया है.
सितंबर 2022 में एनआईए की छापेमारी एवं पूरे देश भर में की गई कार्रवाई में पीएफआई से कथित रूप से जुड़े 150 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था या गिरफ्तार किया गया था.
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-भारत एक्सप्रेस
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