राणव गांव में स्थित मां मंशा का मंदिर
कुलदीप पंडित
Dussehra 2023: पूरे भारत में विजयादशमी का त्योहार जोर-शोर से मनाया जा रहा है. तो वहीं दशहरा आयोजन स्थलों पर रावण का पुतला दहन के लिए तैयार हो गया है. उत्तर प्रदेश का एक गांव ऐसा है, जहां पर रावण दहन नहीं किया जाता है बल्कि उसकी पूजा की जाती है. बता दें कि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया था. तभी से हिंदू धर्म में प्रत्येक वर्ष प्रतीक स्वरूप रावण के पुतले का दहन किया जाता है और लोगों को असत्य पर सत्य की जीत का संदेश दिया जाता है.
इस गांव में नहीं होती है रामलीला
बागवत जिले के बड़ागांव में रावण के पुतले का दहन करने के बजाय यहां दशहरे पर रावण की पूजा की जाती है. मंदिर कमेटी के अध्यक्ष राजपाल त्यागी बताते हैं कि इस गांव के ग्रामीण रावण यानी लंकेश को अपना पूर्वज मानते हैं और खुद को लंकेश की पीढ़ियां. यही वजह है कि राणव की यहां पर विधि-विधान से पूजा करते हैं. इसी के साथ बड़ागांव में रामलीला भी नही होती है तो वहीं राजस्व अभिलेखों में भी इस गांव का नाम रावण उर्फ बड़ागांव ही दर्ज किया गया है और लोग इसी नाम से इस गांव को जानते हैं.
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ये है राणव गांव की मान्यता
रावण गांव के लोगों की मान्यता है कि मनसा देवी की मूर्ति को लंका ले जाने के लिए रावण ने देवी मां की घोर तपस्या की और रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर रावण को वरदान मांगने के लिए कहा. इस पर रावण ने अपने वरदान में मनसा देवी को ही लंका ले जाने के लिए वरदान में मांग लिया, लेकिन मनसा देवी ने रावण के सामने शर्त रख दी और कहा कि जहां भी तुम इस प्रतिमा को रखोगे, यह वहीं पर विराजमान हो जायगी. मनसा देवी माता की इस शर्त को रावण मान गया और उनको आकाश मार्ग से उनकी प्रतिमा को लंका ले जाने लगा. तभी बीच रास्ते में रावण को लघु शंका का आभास हुआ. दूसरी ओर मंशा देवी की प्रतिमा के लंका जाने को लेकर देव लोक के देवताओं में हड़कंप मच गया और फिर सभी देवता इकट्ठा होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे.
भगवान विष्णु बने ग्वाला
सभी देवताओं ने विष्णु भगवान को बताया कि राणव मंशा देवी को लंका लेकर जा रहा है. इस पर विष्णु भगवान ने एक ग्वाले का रूप बनाकर इसी गांव में जो कि अब बागपत का बड़ागांव है, में एक बड़े के पेड़ के नीचे गाय चराने लगे. तो वहीं दूसरी ओर लघु शंका लगने के कारण रावण ने आकाश मार्ग से देखा कि एक ग्वाला गाय चरा रहा है. इस पर वह भूमि पर उतरा और ग्वाले को माँ मंशा देवी की प्रतिमा देते हुए बोला कि मैं लघु शंका से होकर वापस आता हूं. तब तक यह प्रतिमा अपने हाथों पर रखना. इसे जमीन पर नहीं रखना. यह कहकर रावण लघु शंका करने के लिए चला गया, लेकिन ग्वाले बने विष्णु भगवान ने प्रतिमा को जमीन पर रख दिया और फिर मंशा देवी की प्रतिमा वहीं पर स्थापित हो गई.
नहीं उठी प्रतिमा
इस पर रावण ग्वाले पर क्रोधित हुआ और उसने माँ मंशा देवी की प्रतिमा को उठाने का काफी प्रयास किया, लेकिन वरदान के अनुरूप प्रतिमा वहां से हिली भी नहीं. इस पर रावण माँ मंशा देवी को प्रणाम कर वहां से चला गया. मान्यता है कि तभी से माँ मंशा देवी के मंदिर का यहां पर भव्य निर्माण हुआ और यहां पर भगवान विष्णु के दस रूपों से सुशोभित प्रतिमा विराजमान है. गांव के लोगों का कहना है कि यहां पर जो भी अपनी झोली फैलाता है, उसकी मुराद जरूर पूरी होती है. बता दें कि यह स्थान सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है.
-भारत एक्सप्रेस