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Malayalam Cinema में Casting Couch का चलन आम, यौन उत्पीड़न के साथ बदतर स्थितियों में काम करती हैं महिला कलाकार

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री (Malayalam Film Industry) में महिलाओं की स्थिति पर जस्टिस के. हेमा समिति की रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई है, जिसमें महिलाओं के उत्पीड़न के कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay/Social Media)

केरल स्थित मलयालम फिल्म इंडस्ट्री (Malayalam Film Industry) में महिलाओं की स्थिति पर जस्टिस के. हेमा समिति की रिपोर्ट जारी कर दी गई है. इस रिपोर्ट में तमाम चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जो महिला कलाकारों को लेकर इस इंडस्ट्री में खराब माहौल की ओर इशारा करते हैं.

इस रिपोर्ट में मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ होने वाले अत्यधिक भेदभाव और शोषण पर प्रकाश डालते हुए महत्वपूर्ण खुलासे किए गए हैं. इसमें कास्टिंग काउच (Casting Couch), सेट पर बुनियादी सुविधाओं की कमी, वेतन में असमानता और अपराधियों की मांगों को पूरा करने से इनकार करने पर बहिष्कार जैसे मुद्दे शामिल हैं.

‘माफिया’ का राज

रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष-प्रधान मलयालम फिल्म इं​डस्ट्री में ‘माफिया’ का राज है, जिसमें कुछ शीर्ष अभिनेता भी शामिल हैं और महिला कलाकारों को बेहद कष्टकर परिस्थितियों में काम करना पड़ता है.

समिति ने कहा है कि महिला कलाकारों की बातें सुनने के बाद उसके सदस्य सदमे में थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि हर फिल्म के लिए बनने वाली आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee/ICC) निष्प्रभावी है, इसलिए राज्य सरकार को फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के हितों का ख्याल रखने के लिए नए तरीके खोजने चाहिए.

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने पिछले सप्ताह इस शर्त के साथ रिपोर्ट जारी करने की अनुमति दी थी कि रिपोर्ट में किसी कलाकार का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाएगा और सभी संवेदनशील जानकारियों को हटा दिया जाएगा.

शिकायत करने पर करते हैं परेशान

बीते 19 अगस्त को जारी कुल 289 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि फिल्म इंडस्ट्री के ‘माफिया’ (Mafia) को निर्देशकों, निर्माताओं और पुरुष अभिनेताओं का एक वर्ग नियंत्रित करता है. जो कोई भी शिकायत करता है उसे दरकिनार कर दिया जाता है और उसे अनगिनत परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

एक एक्ट्रेस ने गवाही दी कि उसे एक ऐसे व्यक्ति के साथ 17 बार शॉट लेना पड़ा, जिसने उसे परेशान किया था और इस वजह से निर्देशक और अन्य लोग नाराज थे.

एक अन्य एक्ट्रेस ने कहा कि अंतरंग दृश्यों और विवरण के बारे में बताने के लिए निर्देशक से कई बार अनुरोध करने के बावजूद निर्देशक ने उन्हें सूचित नहीं किया. शूटिंग खत्म होने के बाद जब उन्होंने निर्देशक से इन दृश्यों को हटाने के लिए कहा, तो उल्टा उन्हें इन दृश्यों को सार्वजनिक करने की धमकी दी गई.

जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को सौंपी गई.

कास्टिंग काउच का चलन

रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि फिल्म उद्योग में ‘कास्टिंग काउच’ का प्रचलन है, जिसका सबसे बुरा असर उन महिला कलाकारों पर पड़ता है जो छोटी भूमिकाएं निभाती हैं – खासकर अगर वे बड़े रोल के लिए सोच रही हैं. अगर नई महिला कलाकारों को फिल्मों में भूमिका चाहिए तो उन्हें उन लोगों के साथ सोने के लिए राजी होना पड़ता है, जो निर्णय लेने की स्थिति में हैं.

इस बात की ओर इशारा करते हुए कि उत्पीड़न, प्रोजेक्ट की शुरुआत से ही शुरू हो जाता है, समिति ने कहा कि प्रोडक्शन कंट्रोलर या जो भी सिनेमा में भूमिका के लिए प्रस्ताव देता है, वह सबसे पहले महिला/लड़की से संपर्क करेगा या अगर कोई महिला किसी भी व्यक्ति से सिनेमा में मौका पाने के लिए संपर्क करती है, तो उसे बताया जाता है कि उसे ‘समझौता’ करना होगा.

जो लोग नहीं जानते, उनके लिए बता दें कि इन शब्दों का इस्तेमाल अक्सर इंडस्ट्री के अंदरूनी लोग यौन संबंधों को दर्शाने के लिए करते हैं, जो प्रभावी रूप से महिलाओं को मांग पर सेक्स के लिए उपलब्ध रहने का निर्देश देते हैं.


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उत्पीड़न को सामान्य बना दिया गया

एक कलाकार ने समिति को बताया कि कोई भी पुरुष कलाकार या क्रू सदस्य सेक्स की मांग कर सकता है और एक महिला को इसके लिए तैयार रहना होता है.

इस तरह के उत्पीड़न को सामान्य बनाने के लिए महिलाओं को अक्सर बताया जाता है कि कुछ प्रसिद्ध और सफल महिला अभिनेताओं ने ऐसी मांगों को पूरा करके ही प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि पाई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘फिल्म इंडस्ट्री में कई लोगों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि सभी महिलाएं केवल इसलिए इस फील्ड में आती हैं या बनी रहती हैं क्योंकि वे पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाती हैं.’

आश्चर्य की बात नहीं है कि समिति द्वारा बातचीत में शामिल कई पुरुषों ने सिनेमा में यौन उत्पीड़न को कमतर आंकने की कोशिश की और कहा कि यह अन्य क्षेत्रों में भी होता है, जिससे इन गंभीर और जघन्य कृत्यों को सामान्य बना दिया गया.

महिलाओं का विरोध

हालांकि, कई महिलाओं ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सिनेमा में उत्पीड़न अक्सर तब शुरू हो जाता है जब महिला उद्योग में काम करना भी शुरू नहीं करती. उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी मांगें अन्य क्षेत्रों में आम नहीं हैं. वे कहती हैं, ‘अगर कोई महिला सिनेमा में काम करना चाहती है, तो या तो सिनेमा के लोग उससे संपर्क करेंगे या उसे किसी से मिलना होगा, लेकिन सिनेमा में काम करने वाले लोग सेक्स की मांग करते हैं.’

सेक्स की खुली मांग

एक और चौंकाने वाली बात यह है कि कई पुरुष यह मान लेते हैं कि जो महिलाएं ऑन-स्क्रीन अंतरंग दृश्य करने को तैयार हैं, वे ऑफ-सेट भी ऐसा करने को तैयार हैं, जो इंडस्ट्री में पुरुषों में व्यावसायिकता और शिल्प की समझ की कमी को दर्शाता है, इसलिए इंडस्ट्री में पुरुष बिना किसी शर्मिंदगी के सेक्स की खुली मांग करते हैं.

रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि इस इंडस्ट्री में महिलाएं अक्सर अकेले काम पर जाने में असुरक्षित महसूस करती हैं और आमतौर पर माता-पिता या करीबी रिश्तेदारों के साथ ही सेट पर जाती हैं.

यौन उत्पीड़न का सामना

इसके अलावा यह भी कहा गया है कि रात में अभिनेत्रियों के कमरे के दरवाजे खटखटाए जाते हैं और अगर वे दरवाजा नहीं खोलती हैं, तो ‘विजिटर’ हिंसक तरीके से दरवाजा पीटते हैं.

रिपोर्ट में इंडस्ट्री में फैली एक आम गलतफहमी को भी उजागर किया गया है कि महिलाएं सिर्फ आर्थिक लाभ के लिए सिनेमा में आती हैं और इसलिए वे कुछ भी सहने को तैयार रहती हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारे सामने रखे गए साक्ष्यों के विश्लेषण के बाद हम इस बात से संतुष्ट हैं कि महिलाओं को उद्योग जगत के जाने-माने लोगों से भी यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जिनका नाम समिति के समक्ष रखा गया था.’ साथ ही यह भी कहा गया है कि समिति को इन दावों पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं मिला.

रिपोर्ट आने में 5 साल लग गए

एक और चौंकाने वाली जानकारी यह है कि शूटिंग लोकेशन पर अच्छे खाने के लिए भी महिलाओं को समझौता करना पड़ता है. इसमें यह भी बताया गया है कि महिला निर्माता भी पुरुष-प्रधान (Male Dominated) फिल्म लॉबी के निशाने पर हैं. संक्षेप में रिपोर्ट बताती है कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की चमक केवल सतही है.

आशंका है कि 2019 में प्रस्तुत इस रिपोर्ट को जारी करने के रोकने के लिए भी प्रयास किए गए, जिसकी वजह से इसके सार्वजनिक होने में पांच साल का समय लगा. जब आखिरकार रिपोर्ट सामने आई, तो नाम और कुछ विवरण अब भी जारी नहीं किए गए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह बात सामने आई है कि Women in Cinema Collective (WCC) के गठन के बाद ही महिलाओं ने यौन उत्पीड़न से संबंधित अपने बुरे अनुभवों को एक-दूसरे के सामने प्रकट करना शुरू किया.’ इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि तब तक कई पीड़ित महिलाएं ऐसे भयावह अनुभवों को अपने तक ही सीमित रखती थीं.

-भारत एक्सप्रेस

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