कश्मीर में 22 से 24 मई तक हुई G20 की बैठक में 29 देशों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की. वहीं चीन ने इस आयोजन का आधिकारिक तौर पर बहिष्कार किया तो पाकिस्तान ने भी सम्मेलन को बाधित करने की पूरी कोशिश की, लेकिन दोनों अपने मंसूबों में पूरी तरह से फेल साबित हुए. भारत ने इस आयोजन को श्रीनगर में शांतिपूर्ण तरीके से कराकर दुश्मन देशों को कड़ा संदेश देने की कोशिश. चीन की तमाम कोशिशों के बाद भी अन्य देशों ने बैठक को लेकर कोई विरोध दर्ज नहीं कराया. कश्मीर की घाटी में जी-20 की बैठक को कराने के पीछे सरकार की मंशा विरोधियों को कड़ा संदेश देने के साथ ही ये भी दिखाना था कि अब घाटी में शांति है और कोई भी आयोजन बिना किसी रोक-टोक के करवाया जा सकता है. इसके अलावा घाटी को लेकर फैलाए जा रहे झूठ से वैश्विक समुदाय के सामने पर्दा उठाना था. जिसे केंद्र सरकार ने बाखूबी किया.
गौरतलब है कि श्रीनगर में G20 की बैठक की घोषणा के बाद से पाकिस्तान ने कश्मीर के आसपास गलत प्रचार कर बैठक को रोकने के लिए राजनयिक चैनलों के माध्यम से इस्लामिक देशों और G20 सदस्यों के बीच आम सहमति बनाने की कोशिश की. वहीं इस बैठक में सऊदी अरब, चीन और तुर्किए ने अधिकारियों को G20 कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नहीं भेजा. जिसको लेकर पाकिस्तान ने इसे अपनी बड़ी जीत बताते हुए जमकर ढिंढोरा पीटा. वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने बैठक में अड़चन पैदा करने के इरादे से पाक अधिकृत कश्मीर का दौरा किया. जहां बिलावल ने जी-20 बैठक आयोजित करने के भारत के फैसले के खिलाफ कश्मीरियों के साथ एकजुटता दिखाने की अपील की, लेकिन उनकी इस यात्रा का जी-20 की बैठक पर कोई असर दिखाई नहीं दिया.
श्रीनगर में हुई G20 TWG की बैठक ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा. जिसमें कश्मीर की शांति, स्थिरता और कश्मीर में हो रहे विकास के साथ ही सामान्य स्थिति की बहाली ने ध्यान आकर्षित किया. कश्मीर के बदलते हालात और विकास के लिए चलाई जा रही योजनाओं से जम्मू और कश्मीर के अलावा लद्दाख अंतरराष्ट्रीय आयोजनों और पर्यटन स्थलों के रूप में लोकप्रियता हासिल कर रहा है.
-भारत एक्सप्रेस
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