सांकेतिक फोटो
दिल्ली हाई कोर्ट ने रियल एस्टेट कारोबारी प्रणव अंसल को कथित रूप से धमकी देने, साजिश के तहत झूठी जानकारी एवं झूठे सबूत देने के मामले में समन जारी किया है. अंसल प्रापर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक प्रणव अंसल रियल एस्टेट के दिग्गज कारोबारी सुशील अंसल के बेटे हैं. उसने कहा कि इस मामले में प्रणव के खिलाफ प्रक्रिया शुरू करने के पर्याप्त आधार है। उन्होंने यह कहते हुए प्रणव अंसल को आरोपी के तौर पर समन जारी किया और उन्हें 31 जुलाई को पेश होने को कहा.
इस्तीफा देने का बनाया था दवाब
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट देवांशी जनमेजा ने यह समन एक शिकायत पर जारी किया है जिसमें आरोप लगाया गया है कि प्रणव और अन्य लोगों ने शिकायतकर्ता सुनील मंगल पर कंपनी में अपने पद से इस्तीफा देने के लिए दबाव डाला था. साथ ही उन्हें और उनकी पत्नी को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी थी. मजिस्ट्रेट ने शिकायत के आधार पर कहा कि उसके बाद मंगल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अपना बकाया वेतन हासिल करने के लिए तीन दीवानी मुकदमे किए. इसके जवाब में प्रणव और अन्य ने हनुमान मंदिर और हौज खास पुलिस थाना में शिकायतकर्ता और उसकी पत्नी के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करा दिए.
याचिका खारिज
हाईकोर्ट ने कारागारों में भीड़ को कम करने के मद्देनजर विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा करने की गुहार करने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता गौतम कुमार लाहा में उठाये गए मुद्दे पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ऐसे में उनकी याचिका को स्वीकार करने का कोई औचित्य नहीं है. इस दशा में याचिका खारिज की जाती है.
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि जनहित याचिका उन विचाराधीन कैदियों के हित में दाखिल की गई है जो भीड़भाड़ वाली जेलों में बंद हैं. उन्होंने कहा था कि हर महीने कम से कम एक बार बैठक करने के लिए एक समिति नियुक्त किए जाने का निर्देश दिया जाए जिससे यह तय किया जा सके कि किस कैदी को संबंधित अदालत के आदेश से जमानत पर रिहा किया जा सकता है. केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा था कि याचिकाकर्ता के मुद्दे पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है. वह चाहे तो अपनी मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं। उन्होंने पीठ से कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की विचाराधीन कैदी समीक्षा समिति के लिए मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) को सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में ही अपने रिकॉर्ड में रख रखा है.
-भारत एक्सप्रेस
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