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Gujarat के पूर्व आईपीएस अधिकारी Sanjiv Bhatt को 28 साल पुराने मामले में 20 साल की सजा, जानिए क्या है पूरा मामला

किसी आपराधिक मामले में Gujarat के पूर्व आईपीएस अधिकारी Sanjiv Bhatt की यह दूसरी सजा है. इससे पहले साल 2019 में उन्हें जामनगर अदालत द्वारा हिरासत में मौत के मामले में दोषी ठहराया गया था.

संजीव भट्ट.

गुजरात के बनासकांठा जिले के पालनपुर शहर की एक सत्र अदालत ने बीते बुधवार (27 मार्च) को जेल में बंद पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 1996 के ड्रग जब्ती मामले में दोषी ठहराया था. गुरुवार (28 मार्च) को विशेष एनडीपीएस अदालत ने भट्ट को इस मामले में 20 साल कैद की सजा सुनाने के साथ 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. किसी आपराधिक मामले में संजीव भट्ट की यह दूसरी सजा है. इससे पहले साल 2019 में उन्हें जामनगर अदालत द्वारा हिरासत में मौत के मामले में दोषी ठहराया गया था.

1996 में क्या हुआ था

बात 1996 की है. संजीव भट्ट उस समय बनासकांठा जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) के रूप में कार्यरत थे. भट्ट पर राजस्थान के एक वकील को ड्रग जब्ती मामले में गलत तरीके से फंसाने का आरोप लगाया गया था.

संजीव भट्ट के नेतृत्व में जिला पुलिस ने राजस्थान के वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को 1996 में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) की संबंधित धाराओं के तहत गिरफ्तार किया था. भट्ट ने पालनपुर के एक होटल के कमरे से 1.15 किलोग्राम अफीम जब्त करने का दावा किया था, जिसमें उक्त वकील रह रहे थे.

हालांकि बाद में राजस्थान पुलिस ने कहा था कि राजपुरोहित को बनासकांठा पुलिस ने राजस्थान के पाली में स्थित एक विवादित संपत्ति को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर करने के लिए इस मामले में झूठा फंसाया था.

सह-आरोपी ही सरकारी गवाह बन गया

इस मामले में पूर्व पुलिस अधिकारी आईबी व्यास भी आरोपी थे. व्यास ने मामले की गहन जांच की मांग करते हुए 1999 में गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया था. व्यास को इस मामले में साल 2021 में सरकारी गवाह बनाया गया था. व्यास उस समय पालनपुर क्राइम ब्रांच में इंस्पेक्टर थे.

ड्रग्स जब्ती के बाद व्यास द्वारा पालनपुर थाने में राजपुरोहित के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट की धारा 17 के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई थी. हालांकि, सीआरपीसी की धारा 169 (साक्ष्य की कमी होने पर आरोपी की रिहाई) के तहत अंतत: व्यास द्वारा एक रिपोर्ट दायर की गई, जिसमें स्वीकार किया गया कि होटल के कमरे में रहने वाले व्यक्ति राजपुरोहित नहीं थे. इसके बाद राजपुरोहित को अदालत ने आरोपमुक्त कर दिया. पुलिस ने मामले में ‘A’ Summary Report भी दायर की थी.

राजस्थान की एक दुकान है विवाद की जड़

अक्टूबर 1996 में वकील राजपुरोहित ने मजिस्ट्रेट के समक्ष एक शिकायत दी थी, जिसमें संजीव भट्ट, आईबी व्यास, पालनपुर के अन्य पुलिस अधिकारी, उस होटल के मालिक जहां से अफीम जब्त की गई थी और गुजरात हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरआर जैन पर उन्हें मामले में झूठा फंसाने का आरोप लगाया गया था.

राजपुरोहित ने दावा किया था कि राजस्थान के पाली शहर के वर्धमान मार्केट में एक दुकान को लेकर पूर्व न्यायाधीश जैन के आदेश पर भट्ट ने उन्हें मामले में फंसाया था, जो उन्हें और एक अन्य व्यक्ति को किराये पर दी गई थी और जिसके मालिक पूर्व न्यायाधीश के एक रिश्तेदार थे. नवंबर 1996 में 17 लोगों के खिलाफ पाली के कोतवाली पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी.

20 साल तक मामला ठंडे बस्ते में था

मामला लगभग 20 वर्षों तक ठंडे बस्ते में था, जब तक कि अप्रैल 2018 में गुजरात हाईकोर्ट ने आदेश नहीं दिया कि पालनपुर एफआईआर की जांच गुजरात सीआईडी अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम द्वारा की जाए. मामले में संजीव भट्ट को सितंबर 2018 में गिरफ्तार किया गया था. वीरेंद्र सिंह यादव (अब गांधीनगर रेंज डीआईजी) की अध्यक्षता में एसआईटी जांच पूरी हो गई और भट्ट तथा व्यास के खिलाफ पालनपुर में एनडीपीएस अदालत में 2 नवंबर 2018 को आरोप-पत्र दायर किया गया.


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इन धाराओं के तहत ठहराया गया दोषी

संजीव भट्ट को एनडीपीएस एक्ट की धारा 21 (सी), 27ए (अवैध यातायात के वित्तपोषण और अपराधियों को शरण देने के लिए सजा), 29 (अपराध करने के लिए उकसाना और आपराधिक साजिश), 58 (1) और (2) (परेशान करने वाली प्रविष्टि, तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी) के तहत के तहत दोषी ठहराया गया है. इसके अलावा उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं भी लगाई गई हैं. इनमें धारा 465 (जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग), 167 (लोक सेवक द्वारा चोट पहुंचाने के इरादे से गलत दस्तावेज तैयार करना), 204 (किसी दस्तावेज को गुप्त रखना या नष्ट करना), 343 (गलत कारावास), 120बी (आपराधिक साजिश) और 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) शामिल है.

हिरासत में मौत के मामले में भी दोषी हैं भट्ट

पिछले साल संजीव भट्ट ने 28 साल पुराने ड्रग जब्ती मामले में पक्षपात का आरोप लगाते हुए मुकदमे को किसी अन्य सत्र अदालत में ट्रांसफर करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उन्होंने निचली अदालत की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग के लिए निर्देश भी मांगे थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने संजीव भट्ट की याचिका खारिज कर दी थी और ड्रग जब्ती मामले में निचली अदालत के न्यायाधीश के खिलाफ पक्षपात का आरोप लगाने के लिए उन पर 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था.

ड्रग मामले में मुकदमे के लंबित होने के दौरान जामनगर की एक सत्र अदालत ने 2019 में संजीव भट्ट को हत्या का दोषी ठहराया था. अदालत ने 1990 के हिरासत में मौत के मामले में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. हिरासत में मौत का मामला उस समय का है, जब संजीव भट्ट जामनगर जिले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) के रूप में कार्यरत थे.

-भारत एक्सप्रेस

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