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वित्तीय समावेशन में दुनिया के लिए नजीर बना भारत, 10 साल की विकास यात्रा पर विशेषज्ञ भी हैरान

बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) ने अनुमान लगाया है कि वित्तीय समावेशन की दिशा में भारत ने 100 साल का सफर 10 सालों में पूरा कर लिया है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत सरकार की प्राथमिकताओं में वंचिल लोगों तक योजनाओं को पहुंचाना है. इस वर्ग के साथ-साथ समग्र राष्ट्र के लोगों का वित्तीय समावेश तय लक्ष्य है. यह बात संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कही है. कंबोज ने कहा, “लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और सामाजिक-आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय समावेश जरूर है.”

विकास की यात्रा

उन्होंने कहा कि दुनिया 2030 के लक्ष्य के तहत सतत विकास की यात्रा के अभी आधे मुकाम पर है. फिलहाल, इस मामले में रिपोर्ट कार्ड अच्छे नहीं है. हालांकि, सतत विकास लक्ष्य ट्रैक पर है. रुचिरा कंबोज ने कहा, “हमारा मानना है कि भारत की वित्तीय समावेशन यात्रा अन्य विकासशील देशों के लिए एक उदाहरण हो सकती है. भारत यह सुनिश्चित करते हुए वित्तीय समावेशन प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है कि सभी व्यक्तियों और व्यवसायों की औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुंच हो.”

आज 80% से अधिक के पास बैंक खाते

भारत के वित्तीय समावेशन की प्रगति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2009 में, भारत में केवल 17 प्रतिशत वयस्कों के पास बैंक खाते थे और आज 80 प्रतिशत से अधिक के पास बैंक खाते हैं. इसके अलावा, 2022 तक, 600 करोड़ से अधिक डिजिटल भुगतान लेनदेन प्रति माह पूरा किया जाता है.

आधार और बायोमेट्रिक डेटाबेस

बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) ने अनुमान लगाया है कि वित्तीय समावेशन की दिशा में भारत ने 100 साल का सफर महज 10 सालों में पूरा कर लिया है. भारत वित्तीय समावेशन उपायों की एक श्रृंखला चला रहा है. इनमें आधार और बायोमेट्रिक डेटाबेस शामिल है, जो प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करता है.

संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारियों, राजदूतों, राजनयिकों और विश्लेषकों की उपस्थिति वाले सत्र में मुख्य भाषण देते हुए कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि भारत ने वित्तीय समावेशन के विचार को विकसित करने में “अग्रणी भूमिका” निभाई है.

-भारत एक्सप्रेस