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Economic Survey: भारत की नाममात्र जीडीपी वृद्धि वित्त वर्ष 2025-26 में 9.8-10.3% रहने की संभावना: बैंक ऑफ बड़ौदा रिपोर्ट

बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत की नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद (Nominal GDP) वृद्धि वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) में 9.8% से 10.3% के बीच रहने की संभावना है.

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Economic Survey: बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत की नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद (Nominal GDP) वृद्धि वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) में 9.8% से 10.3% के बीच रहने की संभावना है. यह अनुमान मुख्य रूप से स्थिर आर्थिक सुधार, मजबूत घरेलू मांग, और सरकार की बुनियादी ढांचा विकास नीतियों पर आधारित है.

क्या कहती है रिपोर्ट?

बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट के मुताबिक, वास्तविक जीडीपी (Real GDP) वृद्धि वित्त वर्ष 2026 में 6.5% से 7% के बीच रह सकती है, जबकि महंगाई (Inflation) का औसत 4.5% से 5% रहने का अनुमान है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में मजबूत प्रदर्शन कर रही है और आगामी वित्त वर्ष में भी यह रुझान जारी रहने की उम्मीद है.

बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा,

“भारत की आर्थिक वृद्धि की गति लगातार बनी हुई है। सेवा और विनिर्माण (Manufacturing) क्षेत्र में सकारात्मक रुझान, बुनियादी ढांचे में निवेश और सरकारी सुधारों के कारण अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है. हालांकि, वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और भू-राजनीतिक तनावों का असर आर्थिक वृद्धि पर कुछ हद तक पड़ सकता है.”

नाममात्र जीडीपी और वास्तविक जीडीपी में अंतर

– नाममात्र जीडीपी (Nominal GDP): यह मौजूदा बाजार कीमतों के आधार पर अर्थव्यवस्था का कुल उत्पादन मापता है, जिसमें महंगाई को भी शामिल किया जाता है.
– वास्तविक जीडीपी (Real GDP): यह महंगाई को समायोजित (Adjusted for Inflation) करके आर्थिक उत्पादन को मापता है, जिससे वास्तविक आर्थिक विकास की सही तस्वीर मिलती है.

बैंक ऑफ बड़ौदा के विश्लेषण के अनुसार, महंगाई में मामूली वृद्धि के बावजूद, मजबूत घरेलू मांग और सरकार की प्रगतिशील आर्थिक नीतियों के कारण भारत की नाममात्र जीडीपी दो अंकों के स्तर तक पहुंच सकती है.

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आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

1. मजबूत घरेलू मांग – शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता मांग में वृद्धि हो रही है, जिससे औद्योगिक उत्पादन और सेवा क्षेत्र को मजबूती मिल रही है.
2. बुनियादी ढांचे में निवेश – सरकार की मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, और राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) जैसी योजनाएं निवेश को बढ़ावा दे रही हैं.
3. विनिर्माण और निर्यात में वृद्धि – उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं (PLI) और वैश्विक बाजारों में भारत के बढ़ते प्रभाव से व्यापार में बढ़ोतरी हो रही है.
4. महंगाई और ब्याज दरें – महंगाई पर काबू पाने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की नीतियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। यदि ब्याज दरें स्थिर रहती हैं, तो आर्थिक वृद्धि को समर्थन मिलेगा.
5. वैश्विक अर्थव्यवस्था का असर – वैश्विक आर्थिक मंदी, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों से भारत की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है.

निवेशकों के लिए क्या मायने रखती है यह वृद्धि?

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर भारत की नाममात्र जीडीपी 10% के करीब रहती है, तो यह निवेशकों के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा. मजबूत आर्थिक वृद्धि के कारण शेयर बाजार, बैंकिंग और रियल एस्टेट सेक्टर में तेजी देखने को मिल सकती है. इसके अलावा, FDI (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) और घरेलू निवेश भी बढ़ने की संभावना है.

भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद लगातार मजबूत हो रही है. बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट दर्शाती है कि अगले वित्त वर्ष में नाममात्र जीडीपी वृद्धि 9.8-10.3% के बीच रह सकती है, जबकि वास्तविक जीडीपी 6.5-7% तक पहुंच सकती है. सरकार की विकास नीतियां, मजबूत उपभोक्ता मांग और निवेश के बढ़ते अवसर भारत की आर्थिक मजबूती को और आगे ले जाने में मदद करेंगे.



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