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झारखंड में हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी, नए CM की शपथ हुई, लेकिन यह सियासी लड़ाई अभी खत्‍म नहीं हुई, क्‍योंक‍ि…

झारखंड में नई सरकार के गठन की प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई है. हालांकि, झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) के ही विधायक अभी एकजुट नहीं हो पा रहे. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि बहुमत का आंकड़ा पार करने के लिए चंपई सोरेन के पास क्‍या वाकई पर्याप्त संख्या है?

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झारखंड के नए मुख्यमंत्री चंपई सोरेन बाएं, पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बीच में, इनसेट में झामुमो विधायक

Jharkhand New CM 2024: झारखंड इन दिनों सरकार की फेर-बदली के चलते चर्चा में है. वहां राज्‍य सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी हो चुकी है. हेमंत के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके चंपई सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के 47 विधायकों का साथ मिलने का दावा किया है, हालांकि अभी विधायक एकत्रित नहीं हो पा रहे. कल, उन्हें विधानसभा में बहुमत परीक्षण का तो सामना करना पड़ेगा ही, और नए घटनाक्रमों से संकेत मिलता है कि लड़ाई अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है.

47 विधायकों में से एक पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ मजबूती से सामने आया है, जिनके इस्तीफे से नई सरकार के गठन की प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई है. सूत्रों ने बताया कि झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) के एक अन्य विधायक भी नाराज हैं और उनके कल होने वाले शक्ति परीक्षण में भाग लेने की संभावना जताई जा रही है. अपने विधायकों को एकजुट रखने में व्यस्त झामुमो ने इस बात पर जोर दिया है कि 81 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा पार करने के लिए उसके पास पर्याप्त संख्या है.

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हेमंत सोरेन की पार्टी झामुमो के एक विधायक ने आज कहा कि हेमंत सोरेन ने उनकी सलाह नहीं मानी और नजरअंदाज कर दिया और इसके कारण उन्हें जेल जाना ही पड़ा. मौके पर मीडिया से बात करते हुए, झामुमो विधायक Lobin Hembrom ने कहा कि केंद्रीय कानून, पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 को राज्य में अभी तक लागू नहीं किया गया है.

जबकि उनमें से पहले दो कानूनों का उद्देश्य आदिवासियों के भूमि अधिकारों की रक्षा करना है, वहां पेसा अधिनियम ग्राम सभा को आदिवासियों को हो रहे शोषण के शिकार से बचाने का अधिकार देता है. साथ ही उन्होंने कहा, “ग्राम सभा के पास अब किसी भी प्रकार की शक्ति नहीं है. यदि पेसा अधिनियम लागू किया गया, तो यह और अधिक शक्तिशाली होगा. जब इनमें से कोई भी ढाल (आदिवासियों के लिए) लागू नहीं किये जाने के बाद हमें इस मंच, ‘झारखंड बचाओ मोर्चा’ का गठन करने के लिए पूरी तरह से मजबूर होना पड़ा.”

विधायक ने कहा कि वह झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) से सारे रिश्ते-नाते तोड़ देंगे. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि शिबू सोरेन के नेतृत्व में इतने संघर्ष के बाद झारखंड का गठन हुआ था, लेकिन आज भी इन मुद्दों का जमीनी स्तर पर किसी भी तरह का कोई भी समाधान नहीं हुआ है और लोग अब मुझे गद्दार कह रहे हैं.

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