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INDIA गठबंधन से बसपा का किनारा तो फायदा किसकाे, यहां जानें क्या कहते हैं समीकरण?

Lok Sabha Election 2024: बसपा के साथ मुस्लिम और दलित वोट बैंक है. दलित वोट बैंक होने के कारण बसपा के पास कम से कम 20 फीसदी वोट हैं.

जनता को सम्बोधित करते जयंत चौधरी (फोटो सोशल मीडिया)

Lok Sabha Election 2024: लोक सभा चुनाव की तैयारी के बीच बसपा ने अकेले ही चुनाव में ताल ठोकने का फैसला किया है और तमाम कयासों को विराम लगा दिया है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने जन्म दिन के मौके पर ये पूरी तरह से साफ कर दिया है कि, वह चुनाव के बाद ही भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन यानी INDIA गठबंधन और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए में शामिल होने का निर्णय करेंगी.

माना जा रहा है कि मायावती के इस फैसले के बाद इंडिया गठबंधन और सपा-कांग्रेस को करारा झटका लगा है. तो वहीं इस बीच अब राष्ट्रीय लोकदल को इससे फायदा होगा या नुकसान. इसको लेकर भी चर्चा तेज हो गई है.

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तो वही राजनीतिक जानकार मानते हैं कि, सपा , बसपा और कांग्रेस के एक साथ न आने के राष्ट्रीय लोकदल के लिए फायदा-नुकसान की स्थिति बराबर बताई जा रही है. माना जा रहा है कि, अगर बसपा सुप्रीमो मायावती इंडिया गठबंधन के साथ आतीं तो वह पूरे गठबंधन के लिए 18 फीसदी के करीब वोट अपने साथ लातीं जो सहयोगी दलों में बंटता तो उससे पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल की स्थिति भी और मजबूत होती और पार्टी कुछ सीटों पर लड़ाई में आ जाती.

अपने दम पर चुनाव लड़ेगी बसपा

इसी के साथ ये भी कहा जा रहा है कि, अगर बसपा इंडिया गठबंधन में आती तो फिर रालोद को वो सीटें मिलने में मुश्किल होती, जिसकी वह डिमांड कर रही है. ऐसे में मायावती का गठबंधन के साथ आना या न आना दोनों तरह से ही आरएलडी के लिए फायदेमंद ही रहा है. क्योंकि इंडिया गठबंधन में बसपा के न शामिल पर रालोद का उन तमाम सीटों पर दावा करना आसान हो गया है, जहां बसपा का वोट बैंक अधिक माना जाता है. फिलहाल बसपा का अपना वोट बैंक है और वह अपने दम पर ही चुनाव लड़ने के लिए उतरेगी.

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बसपा के साथ आने से ये हो जाती मुश्किल

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि, बसपा के साथ मुस्लिम और दलित वोट बैंक है. दलित वोट बैंक होने के कारण बसपा के पास कम से कम 20 फीसदी वोट हैं. तो वहीं काफी हद कर मुस्लिम मतों को भी बसपा प्रभावित करती है. अगर बसपा इंडिया गठबंधन में शामिल होती तो रालोद के लिए पश्चिमी यूपी की उन सीटों पर दावा करना मुश्किल हो जाता है जहां जाट और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है.

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