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‘उत्तराखंड से प्यार करो, लेकिन उत्तराखंडियत से लगाव खत्म मत करो’ भारत एक्सप्रेस के कॉन्क्लेव में बोले पूर्व CM हरीश रावत

देवभूमि उत्तराखंड के गठन के रजत जयंती वर्ष पर भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क की ओर से देहरादून में ‘नये भारत की बात, उत्तराखंड के साथ’ नाम का मेगा कॉन्क्लेव में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सिरकत की और अपनी बात रखी.

Harish Rawat

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (फोटो- भारत एक्सप्रेस)

Bharat Express Uttarakhand Conclave: देवभूमि उत्तराखंड के गठन के रजत जयंती वर्ष पर भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क की ओर से देहरादून में ‘नये भारत की बात, उत्तराखंड के साथ’ नाम का मेगा कॉन्क्लेव शुक्रवार (13 दिसंबर) का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत शामिल हुए और सवालों के जवाब दिए.

पूर्व मुख्यमंत्री से सवाल किया गया कि वो उत्तराखंड के 24 वर्ष पूरे होने पर प्रदेश को किस प्रकार से देखते हैं? इस पर पूर्व सीएम ने कहा कि प्रदेश कई क्षेत्रों में आगे बढ़ा है, लेकिन आगे बढ़ने की रफ्तार में हमने अपना जो पुराना शब्द था, जो हमारी खासियत भी थी, वो धीरे-धीरे इरोड हो रही है. हम चाहते हैं कि नये भारत की बात में उत्तराखंडियत के साथ समाहित हो. ताकि उत्तराखंड एक चमकते हुए सितारे के साथ भारतीय संघ में दिखाई दे जो अपनी मौलिकताओं को प्रीजर्व करते हुऐ आधुनिकता का समावेश करते हुऐ निरंतर आगे की तरफ बढ़ रहा हो और देश के विकास को गति देने का कम करता हो.

जब साधन नहीं थे, तब साहस ज्यादा  था- रावत

हरीस रावत ने आगे कहा कि हम नए राज्य थे तो बच्चे थे फिर हम जरा सा और बड़े हुए अब हम गबरू जवान हो गए हैं. 24 साल का उसके ऊपर बड़ा भार होता है, लेकिन चीज जो हमारे स्वभाव में उत्तराखंड जब उत्तराखंड नहीं था उत्तर प्रदेश था, उस समय भी हम सासह, पराक्रम और प्रयत्नशील जाने जाते. उन्होंने आगे कहा आज हम देखते हैं कि हमारे लोगों में जो एक यत्न शलता थी वो धीरे-धीरे कम हो रही है. मैं एक छोटा उदाहरण बताना चाहता हूं, जब हम उत्तर प्रदेश का हिस्सा थे तो उस समय बचेंद्री पाल से लेकर के कई लोग हमारे जो एवरेस्ट पर चढ़े हर चोटी को हमारे लोगों ने फांगने की कोशिश की, वो हमारी मौलिकता थी, हमारा साहस था, हमारा वो जो उत्तराखंड था, वह हमको लेकर के जाती थी उस उंचाइयों में, जब हमारे पास साधन नहीं थे.

आज हमारे पास राज्य का पूरा सपोर्ट है लेकिन उन ऊंचाइयों को लांघने की मैंने केवल एवरेस्ट की बात या पहाड़ों की बात पर पर्वतों को लांघने की बात एक उदाहरण के तौर पर कही. हम किसी भी क्षेत्र को देख लें, उन क्षेत्रों में हमारी उपस्थिति ज्यों-ज्यों हम जवान होते जा रहे हैं, त्यों त्यों कम होती जा रही है, यह हमारे लिए बड़ी चुनौती है कि हम अपनी उस मौलिक साहस को अपने में लाए और उसको और आगे बढ़ाने का काम करें. क्योंकि हमसे लोग राज्य के रूप में अब और बेहतर अपेक्षा कर करते और वो हम नहीं कर पा रहे हैं.

कंपटीशन में कम निकल रहे हमारे युवा

आज हम सर्विसेस में भी देखते हैं, सर्विसेस में जिस समय हम राज्य नहीं थे, उस समय हायर सर्विसेस में हमारा इंटेक ज्यादा था और आज हम राज्य हैं. प्रतिशत वार, संख्या वार ज्यादा हो सकता है, प्रतिशत वाइज यदि हम देखें तो हमारे लोग कंपटीशन में कम निकल पा रहे हैं, चाहे उसमें भारत अखिल भारतीय कंपटीशन हो या राज्य स्तरीय कंपटीशन हो, तो कहीं-कहीं पर जो गुणात्मक हमारी शक्ति थी उसका जो हराश हो रहा है, उसे रोकने की जरूरत है.

जिस समय हम टूटे छत वाले मकानों के नीचे पड़ते थे, स्कूलों में पढ़ते थे चटाई में बैठ कर के पढ़ते थे उस समय हमारे लोगों ने उत्तर प्रदेश की राजकीय सेवाओं में ये आठ पहाड़ी जिले थे, उस समय उनका प्रतिशत 21 था. उत्तर प्रदेश की राजकीय सेवाओं में 21 प्रतिशत, आप अंदाज लगाइए और आज हमारे पास बढ़िया स्कूल है बढ़िया सब तरीके की सुविधाएं हैं, अभी आपको पहले व शिक्षा के निर्देशक भी रहे हैं. उन्होंने बताया कि किस तरीके से हम मॉडर्न एजुकेशन के साथ अपने विद्यार्थियों को जोड़ रहे हैं लेकिन उसका जो नेट रिजल्ट है, आउट कम है जिसकी हम अपेक्षा करते हैं वह नहीं दिखाई दे रहा.

राज्य में बढ़ रहा पलायन

हिमालय राज्य के रूप में हमारा राज्य अस्तित्व में आया और आज हिमालय ही खाली हो रही है. घोस्ट विलेज्स की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. एक बड़ा हिस्सा है राज्य का, जहां की आबादी पलायन करके नीचे की तरफ आ रही है. आज स्थिति यह हो गई है कि एक असंतुलित विकास राज्य के लिए भविष्य के लिए बहुत बड़ी प्रॉब्लम बनने जा रहा है, क्योंकि कुछ एरियाज के अंदर कुछ शहरी क्षेत्रों के अंदर सारी आबादी कंसंट्रेट हो रही है और कुछ एरियाज जो है, जहां हमने बहुत पैसा खर्च किया है. सड़कें पहुंचाई, बिजली पहुंचाई, पानी पहुंचाया, सारी सुविधाएं पहुंचाई है लेकिन वह एरिया धीरे-धीरे खाली हो रहे हैं. हमको कहीं ना कहीं उस समस्या को एड्रेस करना पड़ेगा. हेड ऑन एड्रेस करना पड़ेगा. यदि हम एड्रेस नहीं करेंगे तो यह पलाइन हमारे लिए एक बहुत बड़े अभिशाप के रूप में बन जाएगा.

उड़ता उत्तराखंड बन रहा हमारा राज्य- रावत

एक समय हम उड़ता पंजाब की बात सुनते थे. आज दुर्भाग्य है हम नशे में इतने डूब रहे हैं वह चाहे तरल वाला नशा हो या सूंघने वाला नशा हो, धीरे धीरे जो है हम उड़ता उत्तराखंड बनते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है. नौजवानों में फ्रस्ट्रेशन आ रहा है. यदि नई पीढ़ी में फ्रस्ट्रेशन आ जाएगा, तो हमारे सारे विकास और सारी बातें हमारी सारी नीतियां बेमानी हो जाएंगी. इसलिए अगली बार जो समस्या का समाधान है वह समाधान केवल एक है कि हम उत्तराखंडियत के चारों तरफ अपनी सारी डेवलपमेंट की नीतियों को कंसंट्रेट करें.

उत्तराखंड राज्य की कल्पना एक दूसरा उत्तराखंड, दूसरा उत्तर प्रदेश बनाने के लिए नहीं की गई थी या उत्तर प्रदेश की कार्बन कॉपी बनने के लिए नहीं की गई थी. इसकी कल्पना लोगों ने इसका सारा संघर्ष जोटा गया था कि यहां की मौलिकता की रक्षा करते हुए यहां के निवेश की, यहां की संस्कृति की, यहां की विशेषताओं की रक्षा करते हुए हम एक नए ढंग का मॉडल जो है भारतीय संघ में अपने राज्य को बनाएंगे, स्थापित करेंगे तो वो नहीं हो पा रहा है, वो चुनौती मैं केवल ये नहीं कह रहा हूं ये सवाल केवल आज की सरकार से नहीं है.

यह सवाल आज की सरकार से भी है, पहले की सरकारों को भी इस पर ध्यान देना चाहिए था और जो आने वाली सरकारें हैं उनको भी इसी लक्ष्य बढ़ना पड़ेगा. इसलिए मैं लोगों से कहता हूं कि उत्तराखंड को अपना अवि मान कर के चलो और इसीलिए मैंने आपको भी सलाह दी कि भाई जब अगली बार आप लोग कॉनक्लेव करें हमारी सरकार से कहिए कि उत्तराखंड से प्यार करो मगर उत्तराखंड से परहेज मत करो, ये प्यार तभी पूरा हो पाएगा.

हम कार्बन कॉपी बनने के लिए अस्तित्व में नहीं आए

विपक्ष की जिम्मेदारी के सवाल पर पूर्व सीएम ने कहा कि, देखिए मैंने कहा ना कि हम कार्बन कॉपी बनाने के लिए अस्तित्व में नहीं आए. हम उत्तराखंड राज्य का संघर्ष, यहां की मौलिकता की रक्षा करने की के लिए और उसको लेकर के आगे बढ़ने के लिए किया गया और आज वो मौलिकता है, हमारे वह सारे गुण जो मानवी गुण थे, हमारे अंदर कि हम चैलेंज को स्वीकार करते थे. पहले अभाव में हम आगे बढ़ते थे, अभाव में हम कंपीटेटिव थे और आज हमारे पास सारा सपोर्ट सिस्टम है, अपना सिस्टम है, हम कंपटीशन हम जो हैं दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जा रहे हैं, क्यों पिछड़ रहे हैं इसलिए पिछड़ रहे हैं कि हम कार्बन भी बनने की कोशिश कर रहे हैं और उसमें जो है अपने मौलिक गुणों को हमने तिलांजलि दे दी है तो यह कोई डबल इंजन ट्रिपल इंजन बल्कि लोगों ने तो फोर इंजन कर दिया मैं तो लोगों से कभी कहते रहता हूं.

लोकतंत्र की गाड़ी दो टायरों पर चलती है, एक पक्ष है दूसरा विपक्ष है. आप सत्ता के टायर में तो इतनी हवा भर दे रहे हो कि वो टायर मदमस्त हो जा रहा है. वो दाएं बाएं राह भटकने लग जा रहा है और दूसरे टायर में आप हवा ही नहीं भर रहे हो तो इसलिए आपका जो लोकतांत्रिक विकास है राज्य का वह गड़बड़ा रहा है, देश का भी गड़बड़ा रहा है, जो बात मैंने कही ये केवल उत्तराखंड के लिए सत्य नहीं है, जितना भारतीय लोकतंत्र है उसके लिए भी सत्य है कि आप पक्ष के साथ विपक्ष को भी मजबूत करिए.

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चुनाव का खेल कुछ नियमों के तहत चलता है

लोकतंत्र में जो चुनाव का खेल है, वो कुछ नियमों के तहत चलता है. यदि आप उन नियमों को तोड़ देंगे जैसे कहा जाता है कि आप जाति धर्म संकीर्णता इसके नाम पर वोट नहीं मांगेंगे और आज धर्म के नाम पर वोट मांगा जा रहा है. यदि आप धर्म को और राम को दोनों को चुनाव में दांव पर लगाएंगे तो जीत तो आपकी होगी. यदि आप एक धर्म निरपेक्षता की बात करोगे, जो हमारा संविधान कहता है यदि आप संविधान की मौलिकता की बात करेंगे, आज संसद में भी उस पर डिबेट हो रहा है.

संविधान के मूल तत्वों की बात करेंगे तो लड़ाई बराबर की होगी

संसद के भारतीय संविधान के मूल तत्वों की बात करेंगे तो फिर लड़ाई बराबर की होगी तो आज बराबर का फीड तो है ही नहीं. एक तरफ आपने धर्म को खड़ा कर दिया है और राम को खड़ा कर दिया है. जब आप नारा लगाएंगे कि बंटोगे तो कटोगे और आप इतिहास को पुराने इतिहास के जाख्मों को कुरेदने की कोशिश करेंगे और लोगों की भावनाओं को कुरेद करके आप उन भावनाओं के आधार पर वोट मांगने का काम करोगे तो पेड़ बोया बबूल का तो आम कहां से खाए.

-भारत एक्सप्रेस



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