प्रतीकात्मक तस्वीर
Ranchi: इडी की रडार पर इन दिनों देशभर के तमाम भ्रष्ट अफसर और माफिया से लेकर टैक्स चोरी करने वाले व्यापारी है. रांची स्मार्ट सिटी में होनी वाली हेरफेर में भी इडी ने अपनी नजर बना रखी है. यही वजह है कि रांची जमीन घोटाला मामले में ईडी ने इससे पहले कार्रवाई करते हुए रांची के पूर्व डेप्युटी कमिश्नर छवि रंजन (IAS) के बंगाल, बिहार और झारखंड के कई ठिकानों पर छापेमारी की थी. इसके बाद जमीन घोटाला मामले में उनकी गिरफ्तारी होने के बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. मामले में रांची के एक बड़े व्यापारी विष्णु अग्रवाल से उनके तार जुड़े होने के सबूत इडी को मिले थे. अब इडी इस बड़े व्यापारी के नेताओं और अफसरों के बीच जमीन घोटाले को लेकर हुई साठगांठ का पता लगा रही है.
विष्णु अग्रवाल के तार कहां तक
रांची के बड़े व्यवसायी विष्णु अग्रवाल के अधिकारियों से कनेक्शन और उनकी भूमिका के अलावा रांची स्मार्ट सिटी में जमीन खरीदने वाले नेताओं की भूमिका की भी जांच की जाएगी. राची में विष्णु अग्रवाल ने स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन को जमीन के एवज में लगभग 150 करोड़ रुपये दिए हैं.
नीलामी में सांठगांठ
मिली जानकारी के अनुसार विष्णु अग्रवाल ने स्मार्ट सिटी में 25.38 एकड़ के तीन प्लॉट खरीदे हैं. इनमें दो आवासीय और एक मिक्स्ड यूज के लिए हैं. स्मार्ट सिटी में अग्रवाल द्वारा लिए गए प्लॉट चैलेस रियल इस्टेट कंपनी के नाम पर रिजर्व प्राइस में खरीदे गये हैं. वहीं आवासीय प्लॉट के लिए 6.62 लाख रुपये डिसमिल की दर से भुगतान किया गया तो मिक्स्ड यूज प्लॉट 10.15 लाख रुपये डिसमिल की दर से खरीदी गयी. पैसों का भुगतान दो किस्तों में किया गया.
सस्ती दर पर जमीन पाने के लिए आजमाया यह तरीका
रियल इस्टेट से जुड़े व्यवसायियों ने सस्ते में स्मार्ट सिटी की जमीन पाने के लिए आपस में ही सांठगांठ कर ली थी. ताकि नीलामी को लेकर आपस में उनके बीच प्रतिस्पर्धा न हो. स्मार्ट सिटी में कुल छह आवासीय और दो मिक्स्ड यूज के प्लॉट की नीलामी की गई. व्यवसायियों के आपसी गठबंधन के कारण एक ही कंपनी में कई बिल्डर रिजर्व प्राइस में जमीन पाने के लिए हिस्सेदार बन गये. इस कारण नीलामी में उनको सस्ती दर पर जमीन मिल गई.
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मामले में अनदेखी से सवाल
इसके अलावा इस मामले में जो जरूरी बात निकलकर सामने आ रही है वह यह है कि जमीन की कीमत का भुगतान करने में तय समय सीमा से करीब एक महीना देरी की गई. नियमों के अनुसार ऐसे में आवंटन रद्द करने की शर्त थी, लेकिन रांची स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन ने इसके बावजूद अग्रवाल के साथ डील की.