(प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
अंडरग्रेजुएट मेडिकल छात्रों के लिए फोरेंसिक मेडिसिन मॉड्यूल में प्रतिगामी (Regressive) विषयों को फिर से शामिल करने पर हुए हंगामे के बाद शीर्ष चिकित्सा शिक्षा नियामक यानी राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने अपना नया पाठ्यक्रम पूरी तरह से वापस ले लिया है.
एक आधिकारिक अधिसूचना में कहा गया है, ‘उपर्युक्त दिशा-निर्देशों को संशोधित किया जाएगा और नियत समय में अपलोड किया जाएगा.’ यह इस बात को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण है कि नया एमबीबीएस सत्र अक्टूबर में शुरू होने की संभावना है.
कई हटाए गए विषय शामिल थे
एक रिपोर्ट के अनुसार, संशोधित फोरेंसिक मेडिसिन पाठ्यक्रम में ‘सोडोमी (Sodomy) और लेस्बियनिज्म (Lesbianism)’ को अप्राकृतिक यौन अपराधों की श्रेणी में वापस लाया गया था. इसमें हाइमन (Hymen) के महत्व, कुंआरेपन (Virginity) और शीलभंग (Defloration) की परिभाषा और इसकी वैधता और चिकित्सा-कानूनी महत्व जैसे विषयों को भी फिर से पेश किया गया था.’
2022 में पाठ्यक्रम से हटाया गया था
मद्रास हाईकोर्ट के निर्देशों के तहत गठित एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के आधार पर पाठ्यक्रम को LGBTQI+ के अनुकूल बनाने के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) द्वारा 2022 में इन सभी को समाप्त कर दिया गया था.
हालांकि अब वापस ले लिए गए पाठ्यक्रम में मनोचिकित्सा मॉड्यूल में किए गए बदलावों में सेक्स, जेंडर आइडेंटिटी और सेक्सुअल ओरिएंटेशन की बेहतर समझ का विस्तार से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इसे पूरी तरह से वापस नहीं लिया गया है. इसमें पिछले पाठ्यक्रम की तरह ‘जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर’ का उल्लेख नहीं किया गया है.
विकलांगता अधिकार कार्यकर्ताओं की आपत्ति
विकलांगता अधिकार कार्यकर्ताओं ने यह भी बताया कि पाठ्यक्रम ने छात्रों के लिए फाउंडेशन कोर्स के हिस्से के रूप में विकलांगता पर सात घंटे के प्रशिक्षण को समाप्त कर दिया.
न ही इसने नैतिकता मॉड्यूल के हिस्से के रूप में इस विषय को शामिल किया. कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है, जो विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों के पाठ्यक्रम में विकलांगता को शामिल करने का आह्वान करता है.
-भारत एक्सप्रेस