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Varanasi: “बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में आना सौभाग्य की बात है…”, काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में बोलीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने कलश में पानी डालकर दीक्षांत समारोह की शुरुआत की और 16 मेधावियों को अपने हाथ से मेडल पहनाया और कहा कि काशी विद्यापीठ का सामाजिक और शैक्षिक योगदान अमूल्य है.

मेधावियों के साथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

Mahatma Gandhi Kashi Vidyapeeth 45th convocation: वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के 45वें दीक्षांत समारोह में सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम में मौजूद रहीं और छात्र-छात्राओं को अपना आशीर्वाद दिया. एमए पत्रकारिता में सर्वाधिक अंक पाने पर आयुषी तिवारी को राष्ट्रपति ने श्री अतुल माहेश्वरी स्मृति स्वर्ण पदक दिया. इस मौके पर महामहिम ने 16 मेधावियों को अपने हाथों से मेडल दिए. इस मौके पर उन्होंने सभी छात्र-छात्राओं को बधाई दी और राष्ट्रपति का आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा काशी विद्यापीठ का सामाजिक और शैक्षिक योगदान अमूल्य है.

कलश में पानी डालकर की समारोह की शुरुआत

कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने कलश में पानी डालकर दीक्षांत समारोह की शुरुआत की. इस मौके पर राज्यपाल के संबोधन के बाद महामहिम ने सभी विद्यार्थियों, उनके शिक्षकों और परिजनों को बधाई दी और कहा कि, “बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में आना अपने आप में सौभाग्य की बात है. काशी का अभिप्राय है सदैव प्रकाशमान रहने और सदैव प्रकाशित रखने वाला ज्योतिपुंज. पिछले महीने काशी में देव दीपावली का पर्व भव्यता से मनाया गया.” राष्ट्रपति ने आगे कहा,” मुझे बताया गया है कि उस पर्व को 72 देशों के प्रतिनिधियों ने हमारे देशवासियों के साथ यहां मनाया. हिन्दी माध्यम में उच्च-स्तरीय शिक्षा प्रदान करने के लिए बाबू शिव प्रसाद गुप्त जी ने काशी विद्यापीठ की अपनी परिकल्पना की चर्चा महात्मा गांधी से की थी और गांधीजी ने उसे सहर्ष अनुमोदन प्रदान किया था.

 

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ये होगी सच्ची श्रद्धांजलि

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आगे कहा कि, हमारे देश की स्वाधीनता के 26 वर्ष पूर्व, गांधीजी की परिकल्पना के अनुसार आत्म-निर्भरता तथा स्वराज के लक्ष्यों के साथ, इस विद्यापीठ की यात्रा शुरू हुई थी. ब्रिटिश शासन की सहायता और नियंत्रण से दूर रहते हुए, भारतीयों द्वारा पूर्णत: भारतीय संसाधनों से निर्मित, काशी विद्यापीठ का नामकरण ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ करने के पीछे हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान व्यक्त करने की भावना निहित है. उन आदर्शों पर चलना तथा अमृत-काल के दौरान देश की प्रगति में प्रभावी योगदान देना यहां के विद्यार्थियों द्वारा विद्यापीठ के राष्ट्र-निर्माता संस्थापकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

आध्यात्मिक ज्ञान से होती है मोक्ष की प्राप्ति

महामहिम ने आगे विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ का ध्येय वाक्य है विद्ययाऽमृतमश्नुते… यह ध्येय वाक्य ईशा-वास्य उपनिषद से लिया गया है. ईश उपनिषद में यह बोध कराया गया है कि व्यावहारिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान एक दूसरे के संपूरक हैं. व्यावहारिक ज्ञान से अर्थ, धर्म और कामनाओं की सिद्धि होती है. विद्या पर आधारित आध्यात्मिक ज्ञान से अमरता यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है. वह आगे बोलीं, चिर-नवीन की परिधि में विज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान की आधुनिकतम धाराएं समाहित हैं. आप सभी विद्यार्थियों को चिर-पुराण और चिर-नवीन के समन्वय को अपनी शिक्षा, आचरण और जीवन में उतारना है. तब आप राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, भारतीय परम्पराओं से जुड़े रह कर इक्कीसवीं सदी के आधुनिक विश्व में सफलताएं अर्जित करेंगे.

पहले कुलपति थे डॉक्टर भगवान दास

राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए आगे कहा कि, दो भारत रत्नों का इस संस्थान से जुड़ना महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की गौरवशाली विरासत का प्रमाण है. भारत रत्न डॉ. भगवान दास इस विद्यापीठ के पहले कुलपति थे और पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री इस संस्था के पहले बैच के छात्र थे. इस संस्थान के विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे शास्त्री जी के जीवन मूल्यों को अपने आचरण में अपनायें. वह आगें बोलीं, इस विद्यापीठ की यात्रा हमारे देश की आजादी से 26 साल पहले गांधीजी की परिकल्पना के अनुसार आत्मनिर्भरता और स्वराज के लक्ष्यों के साथ शुरू हुई थी. असहयोग आंदोलन से जन्मी संस्था के रूप में यह विश्वविद्यालय हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम का जीवंत प्रतीक है. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के सभी छात्र स्वतंत्रता संग्राम के हमारे राष्ट्रीय आदर्शों के ध्वजवाहक हैं.

ये है विद्यापीठ के नाम का उद्देश्य

इस खास मौके पर राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों को विद्यापीठ के नाम को लेकर कहा कि काशी विद्यापीठ का नाम महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ रखने के पीछे का उद्देश्य हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान व्यक्त करना है. उन आदर्शों पर चलकर अमृत काल में देश की प्रगति में प्रभावी योगदान देना ही विद्यापीठ के राष्ट्र-निर्माण संस्थापकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. वाराणसी को लेकर राष्ट्रपति ने कहा कि वाराणसी प्राचीन काल से ही भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र रहा है. आज भी इस शहर की संस्थाएँ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दे रही हैं. वह आगे बोलीं कि, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के छात्रों और शिक्षकों से ज्ञान के केंद्र की परंपरा को बनाए रखते हुए अपने संस्थान के गौरव को समृद्ध करते रहने का आग्रह किया.

वायुसेना के विशेष विमान से वाराणसी एयरपोर्ट पर पहुंची राष्ट्रपति, रही कड़ी सुरक्षा

बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर सोमवार को सुबह 11:11 बजे वायुसेना के विशेष विमान से एयरपोर्ट पर पहुंचीं. तो वहीं उनके आगमन से पहले ही फ्लीट सुबह 9:10 बजे एयरपोर्ट पर पहुंच गई. यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने राष्ट्रपति की अगवानी की. वह राजकीय विमान से सुबह 10:45 बजे एयरपोर्ट पर पहुंच गई थीं. एयरपोर्ट पर स्वागत के बाद सुबह 11:28 बजे शहर स्थित काशी विद्यापीठ में दीक्षांत समारोह के लिए रवाना हुईं. बता दें कि एयरपोर्ट पर राष्ट्रपति का राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के साथ ही सांसद बी पी सरोज ,आयुष मंत्री दयाशंकर मिश्रा दयालु ,श्रम मंत्री अनिल राजभर ,मेयर अशोक तिवारी ,विधायक रविंदर जायसवाल, जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्य ,ज़िलाध्यक्ष हंसराजविश्वकर्मा ,ज़िलाधिकारी ,पुलिस आयुक्त सहित ज़िले के आला अधिकारियों ने अगवानी की. इस दौरान एयरपोर्ट से लेकर कार्यक्रम स्थल तक सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद रही.

-भारत एक्सप्रेस

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