
राहुल गांधी (फाइल फोटो)
देश की राजनीति में गठबंधन की पेचीदगियों और क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल को लेकर अक्सर चर्चा होती रही है, लेकिन इस बार राहुल गांधी पश्चिम बंगाल को लेकर एक अलग रुख अपनाने पर विचार कर रहे है. सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली में हुई कल एक महत्वपूर्ण बैठक में राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल कांग्रेस के नेताओं को साफ संदेश दिया है कि अब गठबंधन की चिंता छोड़ो, पार्टी को मज़बूत करो.
ममता बनर्जी की नाराज़गी की परवाह किए बिना कांग्रेस को सड़कों पर उतारने की रणनीति तय की गई है. यह राहुल गांधी का एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश है—“हमारी मजबूती मानो, वरना तैयार रहो दिल्ली के नतीजों के लिए.”
करीब तीन घंटे चली इस रणनीतिक बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने आगामी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को लेकर विचार-विमर्श किया. राहुल गांधी ने यह स्पष्ट कर दिया कि फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व गठबंधन के बारे में नहीं सोच रहा है और सारा ध्यान पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर केंद्रित है.
यह संदेश ऐसे समय में आया है जब ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस के रिश्तों में तल्खी दिख रही है. राहुल गांधी का कहना था कि अगर ममता नाराज़ होती हैं तो होने दो, कांग्रेस को बंगाल की सड़कों पर फिर से मजबूती से उतारना होगा.
यूपी मॉडल की तर्ज पर बंगाल में पैठ बनाने की योजना
राहुल गांधी ने साफ कहा कि ममता बनर्जी मुस्लिम वोट बैंक और बीजेपी हिंदू वोट बैंक को साधने की कोशिश करेंगी. ऐसे में कांग्रेस को अपना नया रास्ता तलाशना होगा. उनकी रणनीति है कि कांग्रेस यूपी की तर्ज पर दलित, ओबीसी, आदिवासी और अल्पसंख्यक वोट बैंक में अपनी पकड़ बनाए.
उनका आकलन है कि यदि कांग्रेस इन तबकों में 5-10 प्रतिशत वोट बढ़ाने में सफल हो गई, तो कोई भी सरकार कांग्रेस के समर्थन के बिना नहीं बन पाएगी. यह बयान कांग्रेस के भविष्य की रणनीति का स्पष्ट संकेत है कि पार्टी सत्ता में भागीदारी का रास्ता तभी चुनेगी जब वह अपनी शर्तों पर हो.
राहुल गांधी आने वाले दिनों में कोलकाता जाकर रेप पीड़िता के परिवार से मिलने की योजना बना रहे हैं. इसे विश्लेषकों द्वारा ममता सरकार के खिलाफ सीधे राजनीतिक हमले के रूप में देखा जा रहा है. यह न केवल जनसमर्थन पाने की कोशिश है, बल्कि ममता बनर्जी को नैतिक और राजनीतिक दबाव में लाने का प्रयास भी है.
वहीं राहुल गांधी का बंगाल प्लान बताता है कि कांग्रेस अब ममता बनर्जी के साथ चलने के बजाय अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने पर ज़ोर दे रही है. गठबंधन की राजनीति से हटकर अपनी जड़ों तक लौटने और जनाधार बढ़ाने की यह कोशिश है
अब देखना यह होगा कि कांग्रेस की यह रणनीति बंगाल में जमीन पर कितना असर दिखा पाती है और क्या यह ममता बनर्जी के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरेगी, या फिर यह केवल राजनीतिक शोर तक ही सीमित रह जाएगी. यह रणनीति यदि सफल होती है तो कांग्रेस को न केवल बंगाल में नई ऊर्जा मिलेगी बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी स्थिति को मजबूत करने में मदद मिलेगी. लेकिन यह राह आसान नहीं है, क्योंकि टीएमसी और बीजेपी दोनों ही अब पूरी ताकत के साथ मैदान में हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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