कोह ए मारन
Srinagar: जम्मू और कश्मीर में प्राचीन काल से ही उर्दू साहित्य को समृद्ध बनाने के लिए व्यापक स्तर पर काम हुए हैं. हालांकि समय के साथ यह विरासत कहीं गुम सी होती हुई भी दिख रही है. वहीं अब इसे संरक्षित करने को लेकर भी काम शुरु किये गए हैं. श्रीनगर शहर के सुहैल सलीम (30) ने जम्मू और कश्मीर की करामाती घाटी में उर्दू साहित्य को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए प्रयास शुरू किया है. अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘कोह-ए-मारन’ के माध्यम से, सलीम का उद्देश्य क्षेत्र के युवा विद्वानों और लेखकों को अपनी समकालीन साहित्यिक कृतियों को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करना है.
श्रीनगर जिले के रैनावाड़ी क्षेत्र से आने वाले सलीम उर्दू साहित्य के प्रबल समर्थक हैं. नई पीढ़ी को इस समृद्ध भाषा से जोड़ने की आवश्यकता को समझते हुए उन्होंने ‘कोह-ए-मारन’ के विचार की कल्पना की. पहली बार जुलाई 2021 में लॉन्च किया गया त्रैमासिक प्रकाशन, कश्मीर में, विशेष रूप से श्रीनगर में, उर्दू भाषा के छात्रों और शोध विद्वानों के लिए एक मूल्यवान संसाधन के रूप में तेजी से मान्यता प्राप्त कर चुका है.
युवा लेखकों को मिलेगा मंच
सलीम ने कहा कि “उर्दू साहित्य ज्ञान, भावना और सांस्कृतिक विरासत का खजाना है. ‘कोह-ए-मरन’ के माध्यम से, हम कश्मीर में इस भाषा के महत्व को पुनर्जीवित और फिर से जीवंत करना चाहते हैं. हमारा उद्देश्य प्रतिभाशाली युवा लेखकों को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करना है.” खुद और हमारे क्षेत्र के साहित्यिक परिदृश्य में योगदान करते हैं,” उर्दू साहित्य को बढ़ावा देने की अपनी यात्रा में, सलीम ने पहले से ही महिला कथा लेखकों पर विशेष ध्यान देने वाली कई किताबें प्रकाशित की हैं. उनके प्रकाशनों में उल्लेखनीय हैं ‘हरफी शेहरीन’ और ‘तबसुम जिया के अफसाने’, हाशिए की आवाज़ों को सशक्त बनाने और उनकी कहानियों पर प्रकाश डालने के लिए सलीम का समर्पण सराहनीय है.
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सराहनीय है सलीम का योगदान
इसके अलावा, साहित्यिक समुदाय में सलीम का योगदान उनकी पत्रिका से परे है. स्थानीय और राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित लगभग 300 लेखों के साथ, उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक विषयों पर अंतर्दृष्टिपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं. उनके विचारोत्तेजक लेखन ने उनके साथी विद्वानों और पाठकों से समान रूप से ध्यान और सम्मान प्राप्त किया है. ‘कोह-ए-मारन’ न केवल नवोदित लेखकों के लिए, बल्कि स्थापित साहित्यकारों के लिए भी एक मंच बन गया है. सलीम के नेतृत्व में कश्मीर में उर्दू साहित्य की लौ पहले से कहीं ज्यादा तेज चमक रही है.