सुप्रीम कोर्ट.
Jammu and Kashmir: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में सरकार के गठन से ठीक पहले उपराज्यपाल द्वारा पांच सदस्यों को मनोनीत करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने की सलाह दी है. यह याचिका जम्मू कश्मीर कांग्रेस के चीफ स्पोक्सपर्सन रविंद्र शर्मा ने याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि कि उपराज्यपाल अपनी मर्जी से 5 सदस्य मनोनीत नहीं कर सकते हैं.
मनोनयन के बाद विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 95
नई सरकार बन जाने के बाद मंत्रिमंडल की सलाह से यह नियुक्तियां होगी. उपराज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाने के साथ ही जम्मू कश्मीर विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 95 हो गई है, और सरकार बनाने के लिए 48 विधायको का समर्थन जरूरी है. जम्मू कश्मीर विधानसभा में मनोनीत होने वाले 5 सदस्य केंद्र शासित प्रदेश में नई सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. उपराज्यपाल द्वारा जिन 5 सदस्यों को मनोनीत करने की प्रक्रिया चल रही है, उनमें एक महिला, एक पीओके से आया शरणार्थी, 2 कश्मीरी विस्थापित और एक अन्य शामिल हैं. हर कैटेगरी के लिए 5-6 नाम भेजे गए थे.
विधानसभा में सदस्यों को नामित करने का प्रावधान
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में संशोधन कर विधानसभा में सदस्यों को नामित करने का प्रावधान किया गया है. नौ अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पारित किया गया था. इसके साथ ही इस राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों यानी जम्मू कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठित कर दिया गया था. इसमें दो महिला सदस्यों को विधानसभा के लिए नामित करने का प्रावधान भी किया गया था. हालांकि इस कानून में 2023 में संशोधन किया गया. इसके बाद उपराज्यपाल को तीन और सदस्यों को नामित करने का अधिकार मिल गया.
अब उपराज्यपाल दो कश्मीरी प्रवासियों और पीओके से विस्थापित एक सदस्य को नामित कर सकते हैं. दो कश्मीरी प्रवासियों में से एक महिला होगी. कश्मीरी प्रवासी उसे माना जाएगा जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन किया हो और उसका नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर हो. वहीं जो भी व्यक्ति 1947-48, 1965 या 1971 के बाद पीओके से आया होगा, उसे विस्थापित माना जाएगा.
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