पुराने कचरे के साथ-साथ और सीवरेज डिस्चार्ज के मैनेजमेंट पर ठोस कदम नहीं उठाने पर एनजीटी द्वारा पंजाब सरकार पर लगाए गए 1026 करोड़ रुपये के जुर्माने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दिया है. कोर्ट ने पंजाब सरकार की याचिका पर केंद्र सरकार और सीपीसीबी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि आदेश न मानना और आदेश का उल्लंघन करना एनजीटी के अधिनियम 2010 की धारा 26 के तहत अपराध है. एनजीटी ने मुख्य सचिव के माध्यम से पंजाब सरकार को एक महीने के भीतर सीपीसीबी के साथ पर्यावरण मुआवजे के लिए 1026 करोड़ रुपए जमा करने को कहा था.
साथ ही ट्रिब्यूनल ने अनुपालन रिपोर्ट देने को भी कहा था. एनजीटी ने मुख्य सचिव, पंजाब राज्य और प्रधान सचिव/अतिरिक्त मुख्य सचिव, शहरी विकास को नोटिस जारी कर यह बताने को कहा था कि जल अधिनियम, 1974 की धारा 24 के तहत अपराध करने और गैर-अनुपालन के लिए मुकदमा क्यों ना चलाया जाए. यह मामला लुधियाना नगर काउन्सिल से भी जुड़ा है.
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एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि पंजाब में इस समय 53.87 लाख टन पुराना कचरा पड़ा हुआ है और दो साल पहले यह कचरा 66.66 लाख टन था. इसका मतलब के दो साल में राज्य सरकार सिर्फ 10 लाख टन कचरे को ही डिस्पोज कर पाई है और इस स्पीड से काम चलता रहा तो इसे डिस्पोज करने में 10 साल लग जाएंगे. एनजीटी ने अपने नए आदेशों में कहा था कि रिंग-फेंस खाते के निर्माण संबंधी साल 2022 के उस आदेश का मुख्य सचिव पालन करने मे विफल रहे जिसमें 2080 करोड़ रुपए देने का मुआवजा लगाया था और पंजाब सरकार ने अब तक केवल 100 करोड़ रुपए जमा किए है.
-भारत एक्सप्रेस
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