‘साहब मेरे पास दिल्ली आने के लिए पैसे नहीं हैं… कृपया पुरस्कार डाक से भेज दीजिए.’ ये शब्द पद्मश्री पुरस्कार विजेता हलधर नाग के हैं. हलधर नाग को 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद्मश्री से सम्मानित किया था. उस दौरान उनके पास 3 जोड़ी कपड़े, एक टूटी हुई रबर की चप्पल, एक चश्मा और 732 रुपये नकद थे. यही उनकी सारी पूंजी थी.
हलधर नाग का जन्म 31 मार्च, 1950 में ओडिशा के बरगढ़ जिले में हुआ. वे बहुत ही गरीब परिवार से हैं. तीसरी कक्षा में जब वे पढ़ रहे थे तो उनके पिता का देहांत हो गया था, जिसकी वजह से उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़कर घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ी.
उन्होंने होटल में बर्तन धोने का काम किया. बाद में एक सज्जन व्यक्ति ने उन्हें स्कूल में खाना बनाने का काम दिया. 16 साल तक इस काम को करने के बाद उन्होंने एक बैंकर से मिलकर 1,000 रुपये बैंक से लोन लिए और स्कूल के पास स्टेशनरी की दुकान खोलकर उसी से अपना गुजारा करने लगे.
स्टेशनरी की दुकान चलाने के दौरान वे कुछ न कुछ लिखते रहते थे, उन्होंने अपने लिखने के शौक को मरने नहीं दिया. 1990 में उन्होंने अपनी पहली कविता कोशली भाषा में ‘धोरो बरगज’ एक स्थानीय पत्रिका में छापने को दिए. इसके साथ चार और कविताएं भी छपने के लिए दी. जिसे लोगों ने खूब सराहा.
हालांकि अभी भी उन्हें जिस मुकाम तक पहुंचना था वो बाकी था. कहा जाता है 1995 में ‘राम सवारी’ जैसी धार्मिक पुस्तकें लिखकर वे लोगों को जागरूक करते रहे. पहले तो लोगों को उन्होंने अपनी कविताएं जबरदस्ती सुनाई. 2016 आते-आते उनकी कविताएं पूरे देश में लोकप्रियता के आसमान पर पहुंच गईं. उनके द्वारा लिखे साहित्य पर तमाम छात्र पीएचडी कर रहे हैं. हलधर नाग ने अपनी रचनाओं से साहित्य जगत को समृद्ध किया है.
ओडिशा की संबलपुरी-कोशली भाषा में हलधर नाग द्वारा लिखी गईं कविताएं प्रसिद्ध हैं. आश्चर्य की बात यह है कि अभी तक जो भी काव्य रचनाएं उन्होंने की हैं, लगभग सभी कविताएं उन्हें जुबानी याद हैं.
उन्हें साल 2016 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जब सम्मान के लिए उनके नाम की घोषणा हुई और उन्हें इस बात की जानकारी दी गई तो उन्होंने सरकार को एक पत्र लिखकर बताया कि उनके पास दिल्ली आने के लिए पैसे नहीं है, इसलिए पद्मश्री पुरस्कार को डाक के जरिये भेज दिया जाए. हलधर नाग अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक सुधार का लोगों को संदेश देते रहते हैं.वह ओडिशा में लोक कवि रत्न के नाम से मशहूर हैं.
हालांकि बाद में किसी तरह जब वे पद्मश्री पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली पहुंचे तो राष्ट्रपति भवन में उन्हें देखकर हर कोई अचंभित था. हलधर नाग नंगे पैर सफेद धोती और गमछा पहने राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे.
-भारत एक्सप्रेस
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