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जब अपने ही विरोधी के लिए वोट मांगने लगे अटल बिहारी वाजपेयी, जमानत भी हो गई थी जब्त

देश में दूसरे लोकसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी. जनसंघ के टिकट पर अटल बिहारी वाजपेयी तीन सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे.

Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary

Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary

Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary:  तीन बार प्रधानमंत्री, चार दशकों से अधिक समय तक संसद सदस्य और भारत रत्न से सम्मानित, कवि-राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन और राजनीतिक करियर उपलब्धियों से भरा हुआ है. आज उनकी पुण्यतिथि है. देशभर के नेता से लेकर अभिनेता तक.. उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की है. उनकी सोच ने आज देश के भविष्य को आकार देने में मदद की है. अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़े कई रोचक किस्से हैं. ऐसा ही एक किस्सा है दूसरे लोकसभा चुनाव की.

जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे वाजपेयी

देश में दूसरे लोकसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी. जनसंघ के टिकट पर अटल बिहारी वाजपेयी तीन सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे. इतना ही नहीं एक सीट पर तो वो अपने विरोधियों के पक्ष में वोट मांगने चले गए. बहरहाल हालत ये हुई कि अटल बिहारी की जमानत जब्त हो गई.

साल था 1957. यह साल वाजपेयी के करियर के लिहाज से ऐतिहासिक भी था. हो भी क्यों न. बाजपेयी मुख्यधारा की राजतीति में प्रवेश कर रहे थे. उस साल हुए लोकसभा चुनाव में वाजपेयी ने लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ा. जहां वे मथुरा और लखनऊ में हार गए, वहीं उन्होंने बलरामपुर में जीत हासिल की और संसद सदस्य बने. हालांकि, मथुरा में उन्होंने कुछ ऐसा किया कि चर्चा में आ गए.

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स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह के लिए वाजपेयी ने मांगे वोट

दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी मथुरा संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे थे. उनके सामने विरोधी उम्मीदवार थे क्रांतिकारी ,स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह. अटल बिहारी ने खुद जनता से उनके लिए वोट मांगा था. जब ये बातें बाहर आई तो लोग बेहद हैरान थे.

बता दें कि राजा महेंद्र प्रताप साल 1915 में अफगानिस्तान में जाकर भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई थी. इतना ही नहीं वह खुद ही राष्ट्रपति भी बने थे. महेंद्र प्रताप की वजह से अटल बिहारी मथुरा से चुनाव हार गए. लखनऊ से भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो संसद पहुंचे.

अटल बिहारी वाजपेयी का कार्यकाल

बताते चलें कि वाजपेयी ने 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक और फिर 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. उन्होंने 1977 से 1977 तक प्रधानमंत्री मोराजी देसाई के मंत्रिमंडल में भारत के विदेश मंत्री के रूप में भी कार्य किया. 2018 में 16 अगस्त को दिल्ली के एम्स में उनका निधन हो गया. 2014 में सत्ता में आने के बाद, पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री को सम्मानित करने के लिए हर साल 25 दिसंबर को सुशासन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी.

-भारत एक्सप्रेस

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