NCERT Books: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने बाबरी मस्जिद, अयोध्या विवाद पर बारहवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक के पैराग्राफ को ‘संशोधित’ किया है.
पहले NCERT की समाजशास्त्र और इतिहास की किताबों में हड़प्पा सभ्यता और वैदिक सभ्यता के बीच संबंधों, राखीगढ़ी पर हुए शोधों को भी जोड़ने की तैयारी थी. लेकिन NCERT ने फिर बदलाव किए हैं. ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ को फोकस करके राजनीति शास्त्र यानी पॉलिटिकल साइंस की किताब में संशोधन किया गया है. 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को किताब में जोड़ा गया है, लेकिन इस बार केवल जोड़ा नहीं है बल्कि कुछ चीजों को हटाया भी है.
क्या है NCERT
हर साल 4 करोड़ बच्चों को NCERT की किताबें पढ़ाई जाती हैं. इन्हीं किताबों से बच्चे ज्ञान अर्जित करते हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए NCERT के सलेबस को अत्यन्त ही महत्वपूर्ण माना जाता है. 12वीं तक NCERT के सलेबस को याद रखना प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों का पहला लक्ष्य होता है. स्कूली शिक्षा पर केंद्र सरकार को सलाह देने वाली सबसे बड़ी संस्था NCERT है. शैक्षणिक वर्ष 2024-25 के लिए भी NCERT ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) को सुझाव दिए हैं.
NCERT में बदलाव
2014 के बाद से NCERT ने चार बार अपनी पाठ्यपुस्तक में संशोधन किए हैं. 2017 में पहली बार संशोधन हुआ था. मगर तत्कालीन NCERT निदेशक हृषिकेश सेनापति ने इसे संशोधन के बजाय, ‘समीक्षा’ कहा था. 2018 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुरोध पर, NCERT ने छात्रों का बोझ कम करने के लिए संशोधन का दूसरा दौर शुरू किया. लेकिन NCERT ने इसे भी संशोधन नहीं कहा, बल्कि रैशनलाइज़ेशन कहा. कोरोना का हवाला देते हुए भी NCERT ने संशोधन किए थे और अब संशोधन का यह मामला सामने आ रहा है.
एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक़, ये संशोधन बारहवीं क्लास की पॉलिटिकल साइंस की किताब ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति’ में किए गए हैं. जो किताब अब तक चलती थी, उसके आठवें चैप्टर में भारतीय राजनीति में घटी पांच प्रमुख घटनाक्रमों की लिस्ट है, जो कुछ ऐसे हैं.
1989 में कांग्रेस का पतन, 1990 में आया मंडल आयोग, 1991 से शुरू हुए आर्थिक सुधार, 1991 में राजीव गांधी की हत्या और अयोध्या मंदिर आंदोलन.
क्या हुआ है बदलाव
NCERT के पाठ्यक्रम में पहले अयोध्या विवाद पर चार पन्नों का एक पूरा सेक्शन था, जिसमें सिलसिलेवार ढंग से घटनाओं का ब्योरा था. इसमें साल 1986 में अयोध्या में ताले का खुलना, दोनों समुदायों की तरफ़ से हो रही लामबंदी, बाबरी मस्जिद का विध्वंस एवं विध्वंस के बाद जो घटा- जैसे, भाजपा शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन, सांप्रदायिक हिंसा और धर्मनिरपेक्षता पर गंभीर बहस- इन सब बातों का ज़िक्र उस चार पन्नों के सेक्शन में था.
लेकिन, राजनीति में हालिया घटनाओं के हिसाब से कॉन्टेंट को अपडेट किया गया है. नई किताब में बाबरी मस्जिद के दो और संदर्भ हटाए गए हैं. चैप्टर के शुरुआत सारांश में और अंत के एक सवाल में. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फ़ैसले और इसके बाद आए बदलावों की वजह से अयोध्या वाले चैप्टर को पूरी तरह से संशोधित कर दिया गया है.
पुरानी किताब में था यह ज़िक्र
दिसंबर, 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे – जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है – उसके विध्वंस में कई घटनाओं का अंत हुआ. इस घटना ने देश की राजनीति में अलग-अलग बदलावों को जन्म दिया. इससे भारतीय राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता के बारे में बहस तेज़ हो गई. ये घटनाक्रम भाजपा के उदय और ‘हिंदुत्व’ की राजनीति से जुड़े हैं.
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर पर सदियों से चले आ रहे क़ानूनी और राजनीतिक विवाद ने भारत की राजनीति पर असर डाला. विभिन्न राजनीतिक परिवर्तनों को जन्म दिया. राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन एक केंद्रीय मुद्दा बन गया और इसने धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र पर चर्चा की दिशा बदल दी. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले (9 नवंबर, 2019) के बाद ये बदलाव अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के रूप में परिणित हुए.
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