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लीपापोती से केंद्र सरकार नाखुश, सीबीआई करेगी जिमखाना के घोटालों की जांच?

दिल्ली जिमखाना क्लब में भ्रष्टाचार की जांच के लिए नियुक्त सरकारी निदेशकों के कामकाज और विवादित फैसलों पर खुद कंपनी कार्य मंत्रालय ने ही सवाल खड़ा कर दिया है. सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री आवास की सुरक्षा को खतरे में डालकर वहां ड्रोन उड़ाने की घटना को भी बेहद गंभीरता से लिया गया है. शायद यही कारण है कि क्लब में हुई अनियमितताओं की जांच सीबीआई से कराने की पहल की गई है. क्लब में नए निदेशक के तौर पर नियुक्त वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ विनय सहस्रबुद्धे का नाम भी इशारा कर रहा है कि जल्द ही कुछ बड़े फैसले लिए जा सकते हैं.

यह है पूरा मामला

दरअसल जिमखाना क्लब में करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार और फर्जी तरीके से परिजनों को सदस्यता बांटने जैसे गंभीर आरोपों के चलते कंपनी कार्य मंत्रालय ने यहां जांच कराने की मुहिम छेड़ी थी. इस कड़ी में एनसीएलटी ने बीते साल यहां प्रशासक नियुक्त करने का आदेश भी दे दिया. लेकिन मंत्रालय में तैनात एक अधिकारी ने जांच में अड़ंगा लगाते हुए ईमानदार और सख्त छवि वाले अधिकारी मनमोहन जुनेजा को नियुक्ति के महज एक सप्ताह में ही इस पद से हटा दिया. जिसके बाद विनोद यादव और ओम पाठक की नियुक्ति हुई. लेकिन दोनों ही जांच करने के बजाए अपने तथाकथित फैसलों के कारण खुद आरोपों से घिर गए.

यही वजह रही कि मंत्रालय ने इस साल अप्रैल में यहां छह लोगों को बतौर निदेशक नियुक्त कर दिया. लेकिन इनमें से कई निदेशक खुद अपने कारनामों के कारण विवाद का शिकार बन गए. जिसके बाद छह में से एक निदेशक और पूर्व आईपीएस अधिकारी के. आर. चंद्रा ने इस्तीफ़ा दे दिया. आरोप है कि पूर्व आईपीएस मलय कुमार सिन्हा की अध्यक्षता वाले निदेशक मंडल ने तत्काल यह जानकारी मंत्रालय को देना जरूरी नहीं समझा.

उड़ाई नियमों की धज्जियां

दरअसल क्लब के संविधान में लिखा है कि किसी भी फैसले को लेने या लागू करने के लिए जरूरी है क्लब की जनरल मीटिंग में कम से कम छह सदस्य या निदेशक उपस्थित हों. चूकि छह में से एक सदस्य ने इस्तीफ़ा दे दिया था तो जनरल कमेटी को किसी भी मामले में फैसले लेने का अधिकार ही नहीं था. आरोप है कि अध्यक्ष मलय सिन्हा और सचिव आशीष वर्मा की कमेटी ने नियमों की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इन्होंने बिना प्रक्रिया का पालन किए दिल्ली गोल्फ क्लब के पूर्व सचिव राजीव होरा को जिमखाना का सचिव नियुक्त कर दिया. आरोप यह भी है कि प्रधानमंत्री आवास की सुरक्षा खतरे में डालकर ड्रोन उड़ाने के मामले में भी सुरक्षा एजेंसियों को गुमराह करने का प्रयास किया गया.

मंत्रालय नाराज, माना की गई है गड़बड़ी

यही वजह रही कि मंत्रालय ने 20 सितम्बर को आदेश जारी कर कहा कि वह क्लब के निदेशक के तौर पर मंत्रालय की संयुक्त सचिव अनीता शाह अकेला की नियुक्ति कर रहा है. ताकि जनरल कमेटी का कोरम पूरा हो सके और यह भी कहा कि इसके बाद कमेटी पांच सदस्यों द्वारा लिए गए निर्णयों की फिर से समीक्षा करेगी. इसी के साथ नियमों को धता बताकर नियुक्त किए गए क्लब सचिव के मामले को संज्ञान में लेते हुए कहा गया है कि अब निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से नए सचिव का चुनाव होगा.

सीबीआई ने भी शुरू की जांच !

सरकारी प्रशासक और निदेशकों की नियुक्ति के बावजूद बीते डेढ़ साल में किसी भी घोटाले और अनियमितता की जांच की दिशा में ठोस पहल नहीं की गई. बल्कि खुद सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासक और निदेशकों पर गंभीर आरोप सामने आए हैं. शायद यही वजह है कि इस मामले में सीबीआई से जांच कराने का फैसला लिया गया. बीते माह सीबीआई टीम ने घोटाले से जुड़े दस्तावेज जुटाने के लिए 06 और 07 अक्तूबर को क्लब में दस्तक दी. इस दौरान क्लब में हुए घोटालों और डेविस कप से जुड़े दस्तावेज मांगे गए. सीबीआई की सक्रियता के बाद माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इस मामले में कोई भी ढिलाई नहीं बरतना चाहती.

सहस्रबुद्धे की नियुक्ति

इसके बाद क्लब में तीन और लोगों को बतौर निदेशक नियुक्त कर दिया गया. जिनमें भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और सांसद रह चुके डॉ विनय सहस्रबुद्धे भी शामिल हैं. उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नजदीकी और भरोसेमंद नेता माना जाता है. सूत्रों की माने तो केंद्र सरकार पीएम आवास के साथ ड्रोन उड़ाने से लेकर अन्य मामलों तक में लगातार बरती जा रही उदासीनता और सरकारी निदेशकों पर लग रहे गंभीर आरोपों से खुश नहीं है. यही वजह है कि डॉ सहस्रबुद्धे को यहां बतौर निदेशक नियुक्त किया गया है. माना यह भी जा रहा है कि जल्द ही कुछ कड़े फैसले सामने आ सकते हैं.



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