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मोमेंट ऑफ़ ट्रुथ: ओटीटी वेब सीरीज़ ‘‘XXX2’’ यंग इंडियन माइंड्स को प्रदूषित कर रही है

मोमेंट ऑफ़ ट्रुथ: ओटीटी वेब सीरीज़ ‘‘XXX2’’ यंग इंडियन माइंड्स को प्रदूषित कर रही है

वेब सीरिज के माध्यम से भारतीय मानसिकता को प्रदूषित करने की साजिश

(दिव्या कुमार)

एकता कपूर टेलीविजन की निर्विवाद शख्सियत हैं.मुझे हैरानी तब होती है जब हर बार वह चर्चा में होती हैं,फिर चाहे वह किन्हीं गलत वजहों से क्यों ना हो. मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे खराब किस्म का प्रचार भी उनके बढ़ते साम्राज्य को फायदा पहुँचा रहा है. उनकी वेब श्रृंखला, XXX सीज़न-2 ने जनता, सशस्त्र बलों और यहां तक ​​कि शीर्ष अदालत को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्माता एकता कपूर को उनकी ओटीटी श्रृंखला ‘XXX’ में “आपत्तिजनक सामग्री” दिखाने के लिए फटकार लगाई.

अदालत ने टिप्पणी की कि वे देश की युवा पीढ़ी के दिमाग को प्रदूषित कर रही हैं.सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी उस वक्त की है, जब वहाँ एएलटी बालाजी की वेब श्रृंखला में सैनिकों को कथित रूप से अपमानित करने वाली याचिका पर सुनवाई चल रही थी.  एकता कपूर ने फिल्म में जो दिखाया है उससे लोगों में नाराजगी है.उनके खिलाफ कोर्ट ने गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया था. कोर्ट उनके गिरफ्तारी वारंट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है.

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि कुछ तो करना ही होगा क्योंकि इस तरह के मनोरंजन निर्माता भारत की युवा पीढ़ी के दिमाग को प्रदूषित कर रहे हैं. एकता कपूर के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मामला पटना हाईकोर्ट के समक्ष दायर किया गया है, लेकिन इसे जल्द ही सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता. उनके वकील ने कहा कि OTT प्लेटफॉर्म पर सामग्री केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो इसके सदस्य हैं. देश में सबकी अपनी –अपनी पसंद है,लोगों को पसंद चुनने की आज़ादी है.

उनकी टिप्पणी पर, अदालत ने पूछा, “आप लोगों को किस तरह का विकल्प दे रहे हैं? आप तो इसकी बजाये युवा मन को दूषित कर रहे हैं. मैं पूरी तरह से इस बात से सहमत हूं. ये शोचनीय है, हमें वास्तव में किस प्रकार का विकल्प प्रदान किया जा रहा है! हमारे द्वारा उपभोग की जाने वाली सामग्री का प्रभाव दूरगामी होता है. यह सामग्री हमारे मन को प्रदूषित करने की ताकत रखती है.हां, यदि सही दिशा में इसका उपयोग किया जाए तो यह लोगों के मन में सकारात्मकता का संचार भी कर सकती है. वास्तव में, हॉलीवुड यही कर रहा है और आज तक अमेरिकी सपने बेच रहा है जिसमें हर कोई अपना हिस्सा चाहता है.

यही कारण है कि अमेरिकन सपनों के पीछे सभी भाग रहे हैं, ऐसे में देशी सपनों का क्या होगा? हम तब तक सपने देखते रह सकते हैं, जब तक कि हम बॉलीवुड, ओटीटी और आज के बौद्धिक कबीले के द्वारा प्रस्तुत किये जा रही हल्दी वाली लट्टे कॉफी की चुस्कियां लेते रहें, जो हमें हिन्दुस्तानी हल्दी दूध की गर्मी और इससे जुड़े परंपरा के गौरव से हमें दूर रखेगा. मैं हमारे माननीय सुप्रीम कोर्ट के जज की सामग्री के माध्यम से युवा दिमाग को प्रदूषित करने और इस मामले में कोई विकल्प नहीं रखने की टिप्पणी से एक निष्कर्ष पर पहुंचना चाहती हूं. वास्तव में ऐसा लगता है कि बॉलीवुड, ओटीटी और स्वतंत्र बुद्धिजीवियों के कंटेंट क्रिएटर्स के लिए ऐसा करना तो जैसे उनका फैशन बन गया है.

आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर धीरज शर्मा द्वारा किए गए एक अध्ययन के चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं. इन नतीजों के अनुसार भारतीय फिल्में बड़ी ही खामोशी से सिख और हिंदू समुदायों के खिलाफ काम करने में लगी हुई हैं. एकता कपूर जैसे लोग चाहें तो देसी फायदे के लिए इस बेहद सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल कर सकते हैं.मैं कह सकती हूं कि हॉलीवुड की सॉफ्ट पावर अमेरिकी चमक-दमक को न केवल गर्व के साथ, बल्कि अहंकार के साथ हर जगह अपनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु प्रेषित करने में मदद करती है. सीता रामम फिल्म के एक दृश्य में एक संवाद है जहां पाकिस्तानी अधिकारी कहते हैं, – “वे बेवकूफ भारतीय हैं, वे अपने सैनिकों का सम्मान नहीं करते हैं”.

यह सुनने में जितना खराब और निंदनीय लगता है, उतने ही दुख की बात ये भी हो सकती है कि ये बात सच हो है. इस देश में कृतघ्न जनता द्वारा सैनिकों के साथ गंभीर रूप से अनादरपूर्ण व्यवहार किया जाता है.यहां तक ​​कि पढ़े-लिखे लोग भी, जिन्होंने किसी वैचारिक बहाने से कई मौकों पर कुछ छद्म-धर्मनिरपेक्षता के नाम पर आतंकवादियों के प्रति नरमी दिखाई है. इस सब के मद्देनजर टीवी की दुनिया की महारानी, एकता कपूर अपनी वेब सीरीज़ XXX सीज़न-2 के कारण विवादों से घिरी हुई हैं.

यहां एक और ऐसी ही आपत्तिजनक विषयवस्तु दिखाई देती है, जिसमें एक सेना अधिकारी और उसकी पत्नी के माध्यम से सेना के एक जवान की भावनाओं को आहत किया गया है. बिहार के बेगूसराय गांव ने शुरू में उसके खिलाफ याचिका दायर की थी.एक देशभक्त भारतीय के रूप में मैं इसके प्रति पूरी तरह जुड़ाव  महसूस करती हूं. भारतीय मनोरंजन उद्योग ने एक विशेष बहुसंख्यक समुदाय की या असली भारतवासी अथवा असली देशभक्ति को तथा ही लक्ष्य हासिल करने की भावनाओं को आहत किया है. मुझे आश्चर्य है कि हमारे बॉलीवुड के भारत का क्या हुआ होगा; आज की तथाकथित जागृत धर्मनिरपेक्षता में श्रीमान मनोज कुमार कहाँ हैं आप? क्या अब आपको भी बहुत देसी या राष्ट्रवादी करार दिया जाएगा? इसका जवाब स्पष्ट है कि यह दुखद बात है.

कभी हिंदी सिनेमा में देशभक्ति के गौरव के प्रतीक भी आज एक मीम बनकर रह गए हैं. एक प्रभावशाली युवा दर्शक भी बगैर किसी भारतीय गौरव के मनोरंजन की यात्रा में आगे बढ़ रहा है. इसके बजाय हमें एक ऐसी संस्कृति परोसी गई है जहां भारतीय, सेना, रीति-रिवाज, भाषा सभी को नीची नजर से देखा जाता है. इससे भी बुरी बात यह है कि इस तरह की सामग्री ड्राइंग रूम की गपशप का ही महज एक जरिया हैं जहां औपनिवेशिक अहंकार के साथ उनका मजाक उड़ा कर आनंद लिया जाता है. मेरे लिए ये वर्तमान विवाद सिर्फ दुखद यादों की तरह है और देख कर तकलीफ होती है कि आखिरकार साम्राज्यवाद ने इन्डियन्स पर अथवा भारतीयों पर जीत हासिल कर ली है. क्षमा चाहूंगी इससे पूर्व कि इन दो शब्दों पर फिर एक विवाद हो जाये (ओह !!!), मैं कहना चाहूंगी कि मेरा मतलब हिंदुस्तानी मानसिकता पर विजय प्राप्त कर ली है.

बॉलीवुड और ओटीटी पर भारत विरोधी कंटेंट को अपना पसंदीदा विषय बनाने की बात को ध्यान में रख कर यह राहत की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है. दृश्य माध्यम की सॉफ्ट पावर के अवचेतन स्तर पर लंबे समय तक चलने वाले प्रभाव को देखते हुए इस जघन्य परंपरा को काबू में रखा जाना चाहिए जो कि लोगों की सोच को बदल सकती है. यहां तक ​​कि शीर्ष अदालत के कहे के मुताबिक ये लोगों के मानस को प्रदूषित भी कर सकती है.

अब ओटीटी और मनोरंजन क्षेत्र में कड़े कानूनों का समय आ गया है. यहां तक ​​कि नेटिज़न्स भी ‘प्यार और प्लास्टिक’ के XXX सीज़न-2 एपिसोड से खुश नहीं थे, जिसमें विशेष रूप से आपत्तिजनक कहानी दिखाई गई है। यह उन सभी के लिए एक सबक होना चाहिये जो कंटेंट क्रिएटर्स के रूप में सॉफ्ट पावर का बेजा इस्तेमाल  करते हैं. मैं उनसे सकारात्मक बदलाव करने, मनोरंजन पर ध्यान देने व कथावस्तु को सशक्त बनाने का आग्रह करती हूं, और ये भी अपेक्षा करती हूं कि लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने या भड़काने के लिए सामग्री बनाना अब बन्द होगा क्योंकि यह अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जय हिन्द!

(लेखिका एक स्वतंत्र मीडिया पेशेवर, कम्यूनिकेशन कोच,रेडियो सेलीब्रेटी, एंकर और कलाकार हैं. उन्हें प्रकृति, जानवरों, आध्यात्मिकता और संस्कृति से गहरा लगाव है)

 

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