
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों में वकीलों की जिम्मेदारी बनता है कि वे अपने मुवक्किलों को विवाद को सुलझाने का सलाह दे, न कि दूसरे पक्ष के खिलाफ आरोप लगाए. अगर विवाद नहीं सुलझता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि पक्षकार विरोधी पक्ष के वकील के साथ दुर्व्यवहार करें जस्टिस प्रतिबा मनिंदर सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए पत्नी के वकील के साथ दुर्व्यवहार करने वाले पति को फटकार लगाई.
कोर्ट ने कहा कि यह अदालत पक्षकारों की हताशा और खीझ से अवगत है. क्योंकिं वैवाहिक विवाद में उनका पूरा निजी जीवन ठहर सा जाता है. वे भावनात्मक रूप से आधात का भी अनुभव करते हैं. इस तरह के मामलों में वकीलों का भी न केवल अपने मुवक्किल के प्रति बल्कि अदालत व समाज के प्रति बड़ी जिम्मेदारी होती है. वकीलों को एक दूसरे के खिलाफ आरोप लगाने एवं उन्हें बढ़ावा देने के बजाए विवादों के.समाधान के लिए मुवक्किलों को.सलाह देनी चाहिए.
पत्नी के वकील से दुर्व्यवहार पर फटकार
कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक मामलों में आरोपों को बेहद व्यक्तिगत रूप से लिया जा सकता है, जिसके कारण मुवक्किल विरोधी वकीलों के साथ दुर्व्यवहार कर.सकते है. कोर्ट ने अपने पति को प्रथम दृष्टया अदालती अवमानना का दोषी पाया था. क्योंकि उसने अदालत में दुर्व्यवहार एवं पत्नी के वकील के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. मामला भरण-पोषण से संबंधित था.
कोर्ट ने कहा कि पूरा दोष पति पर ही नहीं डाला जा सकता है. ऐसा लगता है कि कुछ परिस्थितियों ने उसे इस तरह का व्यवहार के लिए बाध्य किया है. उसे पत्नी के वकील से कोई शिकायत थी तो उसे उसके लिए उचित कार्रवाई करनी चाहिए थी, न कि उसके साथ गाली गलौज. वैसे पति ने फिर माफी मांग ली और वचन दिया कि वह अपने पत्नी को अदालती आदेश के अनुसार 15 लाख रुपये दे देगा.
आगे कोर्ट ने फिर से उसे फटकार लगाते हुए अवमानना के नोटिस को खारिज कर दिया. लेकिन उसे वकील से माफी मांगने एवं पत्नी को एक लाख रुपये खर्च देने को भी कहा. कोर्ट ने यह निर्देश पत्नी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया जिसके पति के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने एवम उसे छह महीने की सजा देने की मांग की थी.
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-भारत एक्सप्रेस
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