
दिल्ली हाई कोर्ट ने इंडिया का नाम बदलकर ‘भारत’ करने और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन करने की मांग को लेकर दायर याचिका पर 12 मार्च को सुनवाई करेगा. याचिका में कहा गया है कि अंग्रेजी नाम इंडिया देश की संस्कृति और परंपरा का प्रतिनिधित्व नहीं करता है और इसका नाम बदलकर भारत करने से नागरिकों को औपनिवेशिक बोझ से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी. अब समय आ गया है कि देश को उसके मूल और प्रामाणिक नाम यानी भारत से पहचाना जाए; खासकर तब जब हमारे शहरों का नाम बदलकर भारतीय लोकाचार के साथ पहचान बनाई गई है. नमहा द्वारा दायर याचिका में केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर उनके प्रतिनिधित्व पर निर्णय लेने का निर्देश देने की मांग की गई है, क्योंकि 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश का नाम बदलने के लिए एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था लेकिन निर्देश दिया था कि याचिका को एक प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाए.
ये भी पढ़ें- दिल्ली HC ने DU और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं पर विचार करने को कहा
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 2020 से भारत संघ के किसी भी विभाग द्वारा प्रतिनिधित्व पर न तो विचार किया गया है और न ही निर्णय लिया गया है. याचिका में कहा गया है कि एक साल से अधिक समय तक इंतजार करने के बाद याचिकाकर्ता ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत एक आवेदन दायर कर प्रतिनिधित्व के लंबित रहने और स्थिति के बारे में जानकारी मांगी. दिसंबर 2021 में याचिकाकर्ता को सूचित किया गया कि मामला 3 जून, 2020 को तत्कालीन एएसजी केएम नटराज को सौंपा गया था और आवेदन को सीपीआईओ, लोकसभा और राज्यसभा को स्थानांतरित किया जा सकता है, क्योंकि संसद भवन के सचिव के माध्यम से भारत संघ को प्रतिवादी के रूप में शामिल किया गया था. याचिका में कहा गया है कि इसके बाद से याचिकाकर्ता अपने प्रतिनिधित्व की स्थिति जानने के लिए इधर-उधर भाग रहा है, जिस पर भारत संघ के किसी भी संबंधित विभाग द्वारा न तो विचार किया गया है और न ही निर्णय लिया गया है. इसमें कहा गया है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को अपने देश को भारत कहने का समान अधिकार देता है.
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.