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सुप्रीम कोर्ट ने हत्या मामले में 6 आरोपियों को साक्ष्यों की कमी के कारण बरी किया, पढ़ें क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हत्या मामले में छह आरोपियों को साक्ष्यों की कमी के कारण बरी कर दिया. ज्यादातर गवाह अपने बयानों से मुकर गए, जिससे आरोपियों पर दोष सिद्ध नहीं हो पाया.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में शामिल छह आरोपियों को भारी मन से बरी कर दिया है. क्योंकि इस मामले में अधिकांश गवाह यहां तक कि पीड़िता का बेटा भी अपने बयान से मुकर गया है. हत्या के इस मामले में कुल 87 गवाह थे, जिनमें से 71 गवाह अपने बयानों से मुकर गए है. इनमें से कुछ गवाहों की मौत हो गई है और आरोपियों पर दोष सिद्ध नही हो पाया.

जस्टिस सुधांशू धुलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कर्नाटक हाई कोर्ट के 27 सितंबर 2023 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के निर्णय को पलटते हुए छह आरोपियों को दोषी ठहराया था.

गवाहों का मुकरना और अभियोजन की विफलता

जस्टिस सुधांशू धुलिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हम इस अनसुलझे अपराध के लिए भारी मन से, लेकिन आरोपियों के खिलाफ साक्ष्यों की कमी पर कोई संदेह न रखते हुए, हाई कोर्ट का निर्णय पटलते हैं और ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल करते हुए आरोपियों को बरी करते है.

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि गवाह अदालत में आकर अपने पहले दिए गए बयानों से मुकर जाते हैं, जब्ती से इनकार करते हैं, जांच के दौरान बताए गए परिस्थितियों से अनभिज्ञता जताते हैं और चश्मदीद गवाह भी अंधे बन जाते हैं. यह एक ऐसा क्लासिक मामला है, जिसमें 87 में से 71 गवाह जिसमें चश्मदीद शामिल है, पलट गए. जिससे अभियोजन पक्ष केवल पुलिस और सरकारी गवाहों की गवाही पर टिक गया.

दोष सिद्धि के लिए ठोस साक्ष्य अनिवार्य: कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने कहा कि इस मामले का एक महत्वपूर्ण चश्मदीद गवाह मृतक का बेटा भी अपने पिता के हत्यारों की पहचान करने में विफल रहा. कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए पुलिस और आधिकारिक गवाहों की गवाही पर भरोसा किया.

अदालत ने यहां तक कहा कि एक छोटा बच्चा, जो अपने पिता की हत्या होते हुए देख रहा था, उसने भी हमलावरों की पहचान नहीं कि. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा. जब सभी गवाह पलट जाते हैं, तब केवल जांच अधिकारियों की गवाही, जो कि सिर्फ धारा 161 सीआरपीसी के बयानों और आरोपियों के स्वयं दिए गए बयानों पर आधारित हो, उसपर दोषसिद्धि नहीं कि जा सकती.

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि सच्चाई एक मृगतृष्णा की तरह होती है, जिसे केवल वैध और ठोस साक्ष्यों से ही उजागर किया जा सकता है, चाहे वे प्रत्यक्ष हों या परोक्ष. यदि केवल परोक्ष साक्ष्य हों, तो वे इस प्रकार की होनी चाहिए कि वे एक पूरी कड़ी बनाकर केवल और केवल आरोपी की दोषसिद्धि की ओर ले जाएं और किसी भी निर्दोषता की संभावना को.समाप्त कर दें.

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-भारत एक्सप्रेस 



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