

जनवरी 2014 में आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में जबरन झुग्गियों को हटाना डिप्टी कलेक्टर को महंगा पड़ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी कलेक्टर को पद से डिमोशन कर तहसीलदार बना दिया है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि प्रत्येक अधिकारी, चाहे वह कितने भी उच्च पद पर क्यों न हो, अदालत द्वारा पारित आदेशों का सम्मान करने तथा उनका पालन करने के लिए बाध्य है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अधिकारी की सजा माफ नहीं कि जा सकती, लेकिन उसके बच्चों और परिवार को भी सजा नहीं दी जा सकती. अगर अधिकारी को जेल भेजा जाता तो उसकी नौकरी चली जाती और उसका पूरा परिवार बेरोजगार हो जाता. इसलिए कोर्ट ने इंसानियत दिखाते हुए जेल की सजा हटाई, लेकिन साथ में ये भी कहा कि अफसर को एक स्तर नीचे किया जाएगा और उसे एक लाख रुपए का जुर्माना भी भरना होगा.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिया संकेत
साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि अदालत द्वारा पारित आदेशों की अवहेलना कानून के शासन की उस नींव पर हमला करती है, जिस पर हमारा लोकतंत्र खड़ा है. वैसे हम नरम रुख अपनाते हैं, लेकिन सभी को यह संदेश दिया जाना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी ऊंचा क्यों न हो कानून से ऊपर नहीं है. याचिकाकर्ता ने कहा कि डिप्टी कलेक्टर के दो बच्चे है, जो 11 वीं और 12 वीं कक्षा में पढ़ रहे हैं और वे अपनी शिक्षा जारी रखने में सक्षम नहीं होंगे और उनका कैरियर बर्बाद हो जाएगा.
जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिप्टी कलेक्टर को यह सब तब सोचना चाहिए था जब उन्होंने झुग्गी-झोपड़ियों को तोड़ा और उनके सामान के साथ उन्हें सड़क पर फेंक दिया. आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने डिप्टी कलेक्टर को अवमानना का दोषी ठहराया था. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि आज आप अपने छोटे-छोटे बच्चों की दुहाई दे रहे हैं लेकिन जिनका घर आपने उजाड़ा, उनके भी तो बच्चे थे. अधिकारी ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी.
हाई कोर्ट ने डिप्टी कलेक्टर को अवमानना का दोषी पाते हुए उसे 2 महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई थी. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया था कि उसे जेल की सजा काटनी होगी. कोर्ट ने कहा था कि उन.सभी व्यक्तियों को भारी जुर्माना देना होगा, जिन्हें उसके कार्यों से नुकसान हुआ है, और उसे पदावनति भी झेलनी होगी.
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-भारत एक्सप्रेस
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