
Suicide Cases
आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों को इस तरह के मामलों में संवेदनशील होना चाहिए. आरोपियों और उसके परिवार को जबरदस्ती परेशान न किया जाए. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि निचली अदालतों को इस तरह के मामलों में आरोप तय करते समय इसका ख्याल रखना चाहिए.
कोर्ट ने कहा ऐसे मामलों में यंत्रवत आरोप तय नहीं करना चाहिए. आईपीसी की धारा 306 का इस्तेमाल करने से पहले इसकी बारीकी से जांच होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के मामले में उकसाने को साबित करने के लिए कड़े मापदंड है. जिसके लिए कई तरह के सबूतों की जांच आवश्यक होती है. कोर्ट ने जांच एजेंसियों को इस कानून के उपयोग करने से पहले सुनिश्चित जांच करने का आदेश दिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लेकर आगे क्या कहा?
आगे कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 306 (जो आज बीएनएस की धारा 108 हो गया है) को केवल आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के परिवार की भावनाओं को शांत करने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी और मृतक के बीच बातचीत को व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए. आईपीसी की धारा 306 जो अब भारतीय न्याय संहिता में धारा 108 हो गई है. जिसमें गैर जमानती वारंट, सत्र अदालत में उसका ट्रायल, 10 साल की सजा और जुर्माना का प्रावधान है. मगर अब इस धारा 108 की भी व्याख्या आगे के मामलों में जाहिर है.
बता दें कि यह मामला बैंक का लोन ना चुकाने से जुड़ा हुआ है. लोन ना चुकाने के चलते एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर लिया था. इसमें बैंक मैनेजर के खिलाफ पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने के तहत मुकदमा दर्ज किया था. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बैंक मैनेजर पर लगे आरोप सही नही है.
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-भारत एक्सप्रेस
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