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Women’s Day 2024: महिलाओं में ये 5 तरह के कैंसर होते हैं खतरनाक, जानें क्या हैं लक्षण, किन चीजों का रखें ध्यान

International Women’s Day 2024: आजकल कैंसर की समस्या से लगभग हर कोई जूझ रहा है. यह एक गंभीर बीमारी है, जो किसी को भी अपना शिकार बना सकती है. वहीं 5 तरह के कैंसर हैं, जो आमतौर पर महिलाओं में देखने को मिलते हैं.

Cancer In Women's

Cancer In Women's

International Women’s Day 2024: आजकल कैंसर की समस्या से लगभग हर कोई जूझ रहा है. यह एक गंभीर बीमारी है, जो किसी को भी अपना शिकार बना सकती है. वहीं 5 तरह के कैंसर हैं, जो आमतौर पर महिलाओं में देखने को मिलते हैं. इनमे शामिल है ब्रेस्ट कैंसर, कॉलेरेक्टल कैंसर, माउथ कैंसर, ओवेरियन कैंसर और सर्वाइकल कैंसर. वहीं भारत में स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है.

महिलाओं में कैंसर के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए हेल्थ शॉट्स ने मारेंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, डॉ नितिन सिंघल, से बातचीत की. उन्होंने महिलाओं में होने वाले पांच प्रमुख कैंसर (cancer in female) के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं. साथ ही इसके लक्षण, कारण एवं बचाव के उपाय के बारे में बताया है. तो आइए जानते हैं इसके बारे में-

ब्रेस्ट कैंसर (Breast cancer)

ब्रेस्ट कैंसर भारत में महिलाओं में पाए जाने वाला सबसे आम कैंसर है. आंकड़ों की बात करें तो भारत में हर साल लगभग डेढ़ सौ ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों को डायग्नोसिस किया जाता है. वहीं शहरी महिलाओं में गांव की महिलाओं की तुलना में ब्रेस्ट कैंसर के आंकड़े ज्यादा देखने को मिलते हैं. सर्वे की मानें तो शहर में प्रत्येक 22 में से एक महिला को ब्रेस्ट कैंसर होने का जोखिम रहता है. वहीं ग्रामीण क्षेत्र के आंकड़ों की बात करें तो प्रत्येक 60 महिला में से एक महिला को कैंसर का खतरा बना रहता है

सर्वाइकल कैंसर (cervical cancer)

सर्वाइकल कैंसर भारतीय महिलाओं में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा डायग्नोसिस किये जाने वाला कैंसर है. कुछ साल पहले तक यह पहले नंबर पर आता था परंतु धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ने से इसके आंकड़ों में गिरावट देखने को मिली है. बात यदि जानलेवा कैंसर की करें तो यह पहले स्थान पर है. सर्वाइकल कैंसर से महिलाओं की मृत्यु सबसे ज्यादा होती है.

इसके लक्षण

योनि से जरूरत से ज्यादा सफेद रंग का डिस्चार्ज बाहर निकलना इस कैंसर का एक आम लक्षण है. परंतु कभी कबार वाइट डिस्चार्ज होना सामान्य है, तो अब इन दोनों में अंतर कैसे पहचाने. इस पर डॉक्टर ने बताया कि यदि आपको यूटीआई और अन्य समस्याएं नहीं है, और एंटीबायोटिक्स इत्यादि लेने के बाद भी यह डिस्चार्ज बंद नहीं हो रहा है, तो इस लक्षण को नजरअंदाज न करें और डॉक्टर से जरूर मिलें. वहीं यौन संबंध बनाते वक्त ब्लीडिंग होना और कमर के निचले हिस्से में दर्द रहना सर्वाइकल कैंसर के लक्षण हो सकते हैं.

ओवेरियन कैंसर (ovarian cancer)

दिन प्रतिदिन ओवेरियन कैंसर की संख्या बढ़ती जा रही है. बात यदि भारतीय आंकड़ों की करें तो हर साल लगभग 50,000 ओवेरियन कैंसर से पीड़ित मरीजों को डायग्नोसिस किया जा रहा है. डॉक्टर कहते हैं कि “इस कैंसर का सबसे बड़ा खतरा यह है कि 80% व्यक्ति तब इलाज के लिए आते हैं, जब उनका कैंसर तीसरे स्टेज या उससे आगे पहुंच चुका होता है. क्योंकि इस समस्या में नजर आने वाले लक्षण बिल्कुल आम दिनों के जैसे हैं. इसलिए इसके लक्षणों को पहचानना थोड़ा मुश्किल है.

ओवेरियन कैंसर के लक्षण

इनके लक्षणों में शामिल है, पेट में भारीपन महसूस होना, पेट के निचले हिस्से में दर्द रहना, भूख न लगना और बार-बार पेशाब आना. यदि यह सभी लक्षण दो हफ्तों से ज्यादा समय तक बने रहते हैं, या यह दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे हैं, तो डॉक्टर से मिले और चेकअप करवाएं. यदि शुरुआती चरण में इसे डायग्नोसिस कर लिया जाये तो लगभग 80 से 90% लोग इससे रिकवर हो जाते हैं.  इसके इलाज में सर्जरी और कीमो थेरेपी एक अहम रोल निभाती है.

कोलोरेक्टल कैंसर (colorectal cancer)

कोलोरेक्टल कैंसर को पेट या बड़ी आंत का कैंसर भी कहा जाता है. इस कैंसर का सबसे बड़ा कारण है खराब लाइफस्टाइल, स्ट्रेस, वेट गेन, गलत खानपान और जरूरत से ज्यादा शराब का सेवन.

पहचानिए कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण

इसके लक्षण की बात करें तो मल त्याग करते वक्त खून आना, इस कैंसर की शुरुआत में कब्ज की समस्या लोगों को काफी परेशान करती है. साथ ही मल त्याग करने में भी काफी ज्यादा दर्द और जलन महसूस होता है. अचानक से वजन गिरना भी आंतों के कैंसर के लक्षण है. यदि यह लक्षण 2 हफ्ते से ज्यादा समय तक बने रहते हैं, तो इन्हें नजरअंदाज न करें.

थायराइड कैंसर (Thyroid Cancer)

थायराइड की वजह से कई महिलाएं कैंसर का शिकार होती हैं. ये कैंसर वैसे तो किसी भी उम्र में हो सकता है. लेकिन मेनिपॉज के दौरान या इसके बाद इसके होने के चांसेज बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं. चालीस से पचास साल की उम्र तक इसके ठीक होने की संभावना ज्यादा होती है.

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