Bharat Express

जापान की ‘आपदा’, भारत में ‘अवसर’

2008 में 12 करोड़ 80 लाख के उच्चतम शिखर से जापान की आबादी केवल डेढ़ दशक में घटकर 34 लाख से अधिक की गिरावट के साथ 12 करोड़ 46 लाख रह गई है।

March 12, 2023
japan

प्रतीकात्मक तस्वीर

क्या अगले कुछ वर्षों में दुनिया से जापान का नामो-निशान वाकई मिटने जा रहा है? सवाल हैरान करता है और क्योंकि इसका संबंध जापान से है इसलिए परेशान भी करता है। जो देश साल-दर-साल सुनामी, भूकंप, ज्वालामुखी जैसी भयंकर प्राकृतिक आपदाओं से टकराकर, गिरकर और फिर बार-बार खड़े होकर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की जिजीविषा रखता हो, उसके माद्दे पर सवालिया निशान यकीनन किसी बड़े खतरे का संकेत ही हो सकता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस बार ये खतरा बिन बुलाए नहीं आया है, बल्कि जापान को हर बार आपदा से उबारने वाले उसके नागरिकों ने ही न्योता देकर बुलाया है। खुलासा जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के सलाहकार मसाको मोरी की ओर से हुआ है जिसके अनुसार यदि उनका देश अपनी जन्म दर में आई गिरावट को धीमा नहीं करता है तो जल्द ही उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। मोरी के शब्दों में यह एक देश के गायब होने जैसा होगा। ये वाकई दिलचस्प बात है कि जहां दुनिया बढ़ती आबादी से परेशान है, वहीं जापान के लिए उसकी कम होती आबादी सिरदर्द बन रही है।

अपनी बात के समर्थन में मोरी ने जो रिपोर्ट पेश की है, उसमें इसकी ठोस वजह भी बताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में जापान में पैदा हुए लोगों की तुलना में लगभग दोगुने लोगों की मृत्यु हुई, जिसमें 8 लाख से कम जन्म हुए और लगभग 15 लाख 80 हजार मौतें हुईं। 2008 में 12 करोड़ 80 लाख के उच्चतम शिखर से जापान की आबादी केवल डेढ़ दशक में घटकर 34 लाख से अधिक की गिरावट के साथ 12 करोड़ 46 लाख रह गई है। चिंताजनक बात ये है कि गिरावट की दर लगातार बढ़ रही है। इसका परिणाम ये हो रहा है कि एक तरफ जापान में बूढ़ी आबादी बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ बच्चे कम होते जा रहे है। इससे वहां सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूरी युवा हाथ घटने से अर्थव्यवस्था के सामने भी संकट के हालात हैं। देश की सेना में युवा भर्तियां रुक जाने से उस पर किसी दूसरे देश का कब्जा होने तक का खतरा है। हालात नहीं बदले तो जापान की जनता को भविष्य में ऐसा अराजक दौर भी देखना पड़ सकता है जिसमें जीने की परिस्थितियां बेहद पीड़ादायी हो सकती हैं। ऐसी नौबत न आए इसके लिए अब जापान की सरकार देश के नागरिकों को और बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित कर रही है। वहां बच्चों की परवरिश के लिए अभिभावकों को छुट्टियों के साथ-साथ भारी रकम तक देने की योजना पर गंभीरता से काम हो रहा है।

दो साल पहले इसी तरह की खबरें चीन से भी सामने आईं थीं। वहां अस्सी के दशक से लागू एक बच्चे वाली नीति के कारण कुल आबादी में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ रहा था जबकि लिंगानुपात में महिलाओं की संख्या घट रही थी। इससे सबक लेते हुए चीन की सरकार ने परिवारों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति देने के लिए 2016 में एक-बच्चे की नीति को संशोधित किया। फिर साल 2021 में इसने और रियायतें देकर नागरिकों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दी। लेकिन चीन में आबादी नियंत्रण के लिए दशकों तक जो सख्ती की गई, उससे बने अभूतपूर्व संकट को टालने में ये प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। 60 साल में पहली बार चीन की आबादी नकारात्मक वृद्धि के दौर में दाखिल हो गई है, यानी वहां जितने लोगों की मौत हो रही है उतने नए जन्म नहीं हो रहे हैं।

बड़ी चुनौती मानसिकता में आए बदलाव की है। चीन की आबादी में आज हर 10 महिला पर 11 पुरुष हैं। इसमें जापान की ही तरह बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है लेकिन अगर ये मान लिया जाए कि युवाओं में भी इसी तरह का लिंगानुपात है तो इससे पता चलता है कि चीन के हर 11 में से एक युवा मर्द को अपनी ही उम्र की जीवनसाथी तलाशने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। चीन के मूल्यों में भी बदलाव आ रहा है। कई सर्वे से जाहिर हुआ है कि करियर और महंगे रहन-सहन की चुनौती के कारण चीन की अधिकांश महिलाएं अब एक बच्चा भी नहीं पैदा करना चाहतीं। चाइना पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर के डेटा के मुताबिक चीन में बिना बच्चे वाली औरतों की जो तादाद साल 2015 में 6 प्रतिशत थी, वो साल 2020 में बढ़कर 10 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है।

चीन के बाद भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश है। वैसे संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल अप्रैल के मध्य तक हम चीन को पीछे छोड़कर दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश बन जाएंगे। दशकों से हम भी अपनी आबादी के विकास को धीमा करने के लिए सचेत प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हमने चीन की तरह सख्ती किए बिना जनसंख्या को स्थिर करने पर जोर दिया है। इमरजेंसी की अवधि को छोड़ दिया जाए तो परिवार नियोजन की दिशा में हमारे प्रयास जागरुकता और स्वैच्छिक दृष्टिकोण पर ही केन्द्रित रहे हैं। अनुमान है कि स्थिर होने से पहले हमारी आबादी अभी अगले चार दशक तक और बढ़ेगी। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डाटाबेस ‘आवर वर्ल्ड इन डाटा’ के अनुसार, भारत की जनसंख्या साल 2066 से कम होने लगेगी। हालांकि इस सदी के अंत तक भारत 153 करोड़ लोगों के साथ सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा और चीन में 76 करोड़ 60 लाख लोग होंगे। इस सबके साथ क्योंकि भारत आगे भी ‘डेमोग्राफ़िक डिजास्टर’ की आशंकाओं को गलत साबित करता रहेगा इसलिए हमारी आबादी चीन से ज्यादा होने से भी कोई चिंता की बात नहीं दिखती है।

वर्तमान में भारत की 47% आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है। यानी दुनिया भर में 25 साल से कम उम्र के लोगों में हर पांच लोगों में से एक भारतीय है। मौजूदा भारत की दो तिहाई आबादी ने 90 के दशक के बाद जन्म लिया है जब भारत ने आर्थिक सुधार की शुरुआत कर दी थी। अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर का अनुमान है कि अमेरिका की 38 वर्ष और चीन की 39 वर्ष की तुलना में भारत की औसत आयु 28 वर्ष है। इस लिहाज से हमारी आबादी इस वक्त चीन और अमेरिका से एक दशक युवा है यानी हमारे पास अगले पूरे एक दशक को अपने नाम करने का सुनहरा अवसर है। वहीं 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के भारतीयों की हिस्सेदारी साल 2063 तक 20 फीसद से कम रहेगी और अनुमान है कि साल 2100 तक भी ये 30 फीसद तक नहीं पहुंच पाएगी। यानी

यहां भी तेजी से ‘बूढ़े’ हो रहे दूसरे देशों के मुकाबले भारत को अपने युवा औसत का लंबे समय तक फायदा मिलता रहेगा। सामाजिक पैमाने पर भी भारत के सामने चीन जैसी समस्या नहीं है क्योंकि सरकार के स्तर पर जोर-शोर से हो रहे प्रयासों से देश में लिंगानुपात में भी लगातार सुधार हो रहा है और हम आबादी के एक संतुलित बनावट के बेहद करीब हैं जिसमें महिलाओं और पुरुषों की लगभग बराबर की भागीदारी होने जा रही है।

उधर वैश्विक स्तर पर विशेषज्ञों ने अभी से चेतावनी देनी शुरू कर दी है कि सिकुड़ती युवा आबादी चीन की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करेगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगी। दूसरी ओर, भारत के 51 करोड़ से ज्यादा युवाओं में देश को अगले चरण में ले जाने की क्षमता है। अगर ये युवा स्वस्थ, शिक्षित, सशक्त और सक्षम बने रहते हैं तो विश्व गुरु बनने की हमारी आकांक्षा अवश्य फलीभूत होगी।

Also Read