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Raksha Bandhan 2023: ऐसे शुरु हुआ रक्षाबंधन का पावन त्योहार, जानें पौराणिक कथा

Raksha Bandhan 2023: रक्षाबंधन के त्योहार को लेकर कई सारी पौराणिक कहानियां भी प्रचलित हैं. माना जाता है कि इन्हीं कहानियों के आधार पर रक्षाबंधन के त्योहार की शुरुआत हुई.

Raksha Bandhan 2023: रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्रेम का अटूट पर्व है. वहीं न केवल सांस्कृतिक बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी इस त्योहार का काफी महत्व है. इस दिन मंदिरों में भी लोग भगवान को रक्षा सूत्र या फिर राखी बांधते हैं. वैदिक काल से ही रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा चली आ रही है. ब्राम्हण अपने यजमान को रक्षा सूत्र बांधते रहे हैं. रक्षाबंधन के त्योहार को लेकर कई सारी पौराणिक कहानियां भी प्रचलित हैं. माना जाता है कि इन्हीं कहानियों के आधार पर रक्षाबंधन के त्योहार की शुरुआत हुई. आइए जानते हैं ऐसी ही कहानी के बारे में.

देवासुर संग्राम और इंद्र-इन्द्राणी की कथा

रक्षाबंधन को लेकर स्वर्ग के अधिपति इन्द्र की कहानी भी जुड़ी हुई है. इस कहानी के अनुसार एक बर देवासुर संग्राम में असुर, देवताओं पर भारी पड़ने लगे थे और ऐसा माना जा रहा था कि देवता यह युद्ध हार जाएंगे. ऐसे में देवता अपनी व्यथा बताने गुरु बृहस्पति के पास गए. इसी दौरान देवताओं और उनके गुरु बृहस्पति के बीच हो रही बातचीत को इन्द्राणी ने भी सुन लिया. युद्द में अपने पति का संभावित हार को जीत में बदलने के लिए और इन्द्र की रक्षा करने के लिए उन्होंने यह निर्णय लिया कि मैं ऐसे रक्षा सूत्र का निर्माण करुंगी जो इंद्र की रक्षा कर सके. ऐसे में पूरे विधि विधान से इन्द्राणी ने रक्षा सूत्र तैयार किया और उसे ब्राह्मणों को सौंप दिया. ताकि वे उसे इंद्र की कलाई पर बांध सकें. इसके बाद ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार करते हुए इंद्र की कलाई पर इन्द्राणी द्वारा दिए गए रक्षा सूत्र को बांध दिया. इसके बाद इस युद्ध में देवराज इंद्र की विजय हुई. मान्यताओं के अनुसार इसके परंपरा का रुप ले लिया और हर साल सावन माह की पूर्णिमा पर इस त्याहोर को मनाने की शुरुआत हुई.

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श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कथा

एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण ने जब शिशुपाल का वध करने कि लिए अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग किया था. तब उनकी उंगली में घाव हो गया था. ऐसे में द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर लगे घाव पर बांध दी. यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी साड़ी की कीमत अदा करने का आशीर्वाद दिया था. जोकि कौरवों द्वारा द्रौपदी के चीरहरण के दौरान उन्होंने द्रौपदी की राखी की लाज रखते हुए पूरी की.

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