फोटो-सोशल मीडिया
First Proof Of Zero: दुनिया में पहले शून्य का लिखित प्रमाण अगर कहीं मिलता है तो वो है मध्यप्रदेश में मौजूद संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर के खूबसूरत और ऐतिहासिक दुर्ग में स्थित भगवान विष्णु के प्राचीन चतुर्भुज मंदिर में. इस मंदिर में मौजूद शिलालेख पर मिले शून्य को लेकर कई गणितज्ञों ने रिसर्च किए हैं और लगातार यहां पर रिसर्च के लिए गणित के तमाम विद्वान आते रहते हैं. यही वजह है कि यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की नजर में खास महत्व रखता है और इसीलिए इसे सिर्फ खास मौकों पर ही खोला जाता है.
ये तो सभी जानते हैं कि शून्य ही वह संख्या जिसकी वजह से भारत को दुनिया में अलग पहचान मिली है. भारत के महान गणितज्ञ आर्य भट्ट ने विश्व को शून्य की अवधारणा दी लेकिन अक्सर लोगों के मन में ये सवाल रहता है कि दुनिया में पहला शून्य अभिलेख कब मिला? ऐसे में ये लेख उन लोगों के लिए काफी उपयोगी हो सकता है जो इस तरह की जानकारी एकत्र करने में रुचि रखते हैं.
राजा भोजदेव ने कराया था मंदिर का निर्माण
बता दें कि ग्वालियर के खूबसूरत और ऐतिहासिक दुर्ग में स्थित भगवान विष्णु के प्राचीन चतुर्भुज मंदिर का निर्माण प्रतिहार राजा भोजदेव ने सन् 876 ई. में कराया था. इस मंदिर को बेहद खूबसूरत नक्काशी और मूर्ति शिल्प के नमूनों से इस तरह से सजाया गया है कि यह अपने आप में कला का एक बेहतरीन उदाहरण है. मंदिर के मुख मंडप के अंदरूनी भाग में कृष्ण लीलाओं के दृश्यों को उकेरा गया है. साथ ही यहां नृत्यरत गणेश, कार्तिकेय, पंचाग्निक पार्वती, नवग्रह, विष्णु त्रिवेंद्रम और अष्टदिकपालों का अंकन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. तो वहीं मंदिर के अंदर भगवान श्री हरि विष्णु की श्वेतांबर प्रतिमा के ठीक पास ही एक शिलालेख लगा हुआ है, जिसमें प्राचीन देवनागरी लिपि संस्कृत में कुछ जानकारी लिखी गई है जिसमें शून्य के बारे में भी जिक्र किया गया है.
आर्यभट्ट ने पहली बार शून्य से कराया था अवगत
ये तो सभी जानते हैं कि भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने विश्व को पहली बार शून्य से अवगत कराया था. इसको लेकर पूर्व पुरातत्व अधिकारी व इतिहास के जानकार लाल बहादुर सिंह सोमवंशी बताते हैं कि 11वीं शताब्दी में यूरोप में काल गणना हुई लेकिन भारत ने जो शून्य दिया शून्य के साथ गणना हुई और इसकी मान्यता लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी दी है कि ग्वालियर किले के नीचे स्थित चतुर्भुज मंदिर में मौजूद शून्य का अभिलेख प्राचीनतम है और भारत पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी 1903 में अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की है. इसलिए अब पूरी तरह से इसकी मान्यता भारत को मिल चुकी है.
अभिलेख में दो जगह पर दर्शाया गया है शून्य
बता दें कि इस मंदिर को लोग जीरो मंदिर के नाम से भी जानते हैं. इस मंदिर और शून्य के साक्ष्य को लेकर पूर्व पुरातत्व अधिकारी व इतिहास के जानकार लाल बहादुर सिंह सोमवंशी का एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें उन्होंने बताया है कि ”इस शिलालेख में यह बताया गया है कि प्रतिदिन इस मंदिर के लिए 50 मालाएं दी जाती थीं और इसके एवज में पुजारी को 270 हाथ जमीन दी गई थी. इस तरह उसे शिलालेख में दो जगह शून्य के उपयोग के साथ दर्शाया गया है. ” उन्होंने आगे बताया है कि पहले 50 की संख्या लिखने के लिए और दूसरा 270 में शून्य का इस्तेमाल किया गया. यह पहली बार था जब कहीं शून्य का अभिलेख पहली बार प्रमाणित हुआ.
-भारत एक्सप्रेस
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